मालवेश्वर भोज सुबह-सुबह रथ पर सवार होकर जा रहे थे । रास्ते में एक ब्राह्मण दिखा । उसे देखकर राजा भोज ने रथ रोकने का आदेश दिया । भोज ब्राह्मणों का आदर करते थे । उन्होंने ब्राहमण का अभिवादन किया तो ब्राह्मण ने आँखें मूँद ली ।

ऐसा करने पर राजा ने ब्राह्मण से कारण पूछा; "आपने आशीर्वाद देने के बदली आँखें क्यों बंद कर दी...?"

ब्राह्मण ने कहा; "आप वैष्णव है, अनजाने में भी किसी हो नुकसान नहीं कर सकते । ब्राह्मण के प्रति तो हरगिज़ नहीं । इस कारण मुझे आपसे कोइ भय नहीं है । सच बात यह है कि आप किसी को दान नहीं देते । कहते हैं कि सुबह-शाम किसी कंजूस का मुँह देखें तो आँखे बंद कर देनी चाहिए । मैंने भी यही किया । दधीचि और कर्ण भी अपनी दान-वृत्ति के कारण मृत्यु के बाद भी अमर हो गये ।"

राजा भोज ने कहा; "हे ब्राह्मण, आपने मेरी आँखें खोल दी... मैं आपको दंडवत प्रणाम करता हूँ ।"

यूं कहकर राजा भोज ने ब्राह्मण के सच बोलने की तारीफ़ की और एक लाख मुद्राओं का दान भी दिया । साथ ही अपने राज्य में से ज़रूरतमंद को दान देने की भी घोषणा कर दी । सत्य को सहस के साथ बोलना चाहिए । सत्य भाषण करनेवाला सच्चे सुननेवालों को नया मार्ग दिखाता है।