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Pankaj Trivedi
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नज़म
सारे शहर में - पंकज त्रिवेदी
यार मै तुजे मयखाना पिलाती रही,
फिर तुजे ही ज़िंदगी पिलाती रही |
सारे शहर में अजनबी वो फिरता रहा,
मै अधूरी सी मुझ में खुद को ढूँढती रही |
यार बदला तो मयखाना भी बदल गया,
मगर तेरी तन्हाई में रातभर जागती रही |
तुमने बीज बोया अपने आप पल गया,
अब उसे में तेरा चेहरा ढूँढती रही |
शीशमहल सा तेरा चेहरा टूट गया,
मेरे जिश्म की हर बूँद पिघलती रही |
This entry was posted on 9:13 AM
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नज़म
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