Posted by
Pankaj Trivedi
In:
कविता
कविता सुख - पंकज त्रिवेदी
आँगन में खडा है मौन
अरे ! देखो तो...
उसकी ऊंगली पकड़कर
आया हुआ दर्द
कराहता है लाचार बनाकर...
दरवाज़े पे दस्तक दे रहे
मौन को देखकर
धड़कन चुका मेरा यह दिल
कराहते हुए उस दर्द को देखकर
याद दिलाता है...
थोड़ा-सा कार्य और उसी में से मिले
अमूल्य नाम और शौहरत...
अर्धदग्ध अहंकार...
मैं थम जाता हूँ, खोजता हूँ
खुद मुझा में से ही छूटे हुए
उस मौन को...
जिसे मैंने कुछ पलों के लिए
प्रगति या प्रसिद्धि के नाम पर
गिरावे रखकर पाया था आभासी
सुख...!!!
This entry was posted on 9:08 AM
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कविता
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