तुम दीप जला-के तो देखो...





हमने अँधेरा देखा है

एक अहसास बुराई का

ये दोष अँधेरे का नहीं

ये दोष हमारा है..........

हमने क्यों मन के कोने में

इक आग सुलगाई अँधेरे की

खुद का नाम नहीं लिया हमने

बदनाम किया अँधेरे को........

एक पक्ष अँधेरे का है गुणी

कुछ गुणगान उसका तुम करो

अँधेरा है तो दीया भी है

अँधेरे का निर्विकार प्रेम

दीये संग देखो

दीये के अस्तित्व को लाता है

फिर मिटा देता है खुद को ही

दीये से रोसन जहाँ के लिए| ......

पूजा जाता है दीया

और बलिदानी अँधेरा

बदनामी की कालिख लिए,

खो जाता है

गुमनामी के अंधेरो में |

तुम अँधेरा सा रोशनी के लिए

त्याग करके तो देखो

एक चिंगारी सुलगा के तो देखो

तुम दीप जला-के तो देखो

अँधेरा मिटा के तो देखो |