ये तो मेरा भाई है...!
डूँगर पर चढ़ाना अति कठिन था | सभी यात्रालुओं के चहरे पे थकान साफ़
झलकती थी | सभी लोग ख़ाली हाथ, बिना कोई सामान या बोज लिए डूँगर पर चढ़ रहे थे, फिर भी हाँफने से साँसे फ़ूला रही थी | सब के बीच एक बारह वर्ष
की लड़की भी थी | उसने कमर में लगभग चार वर्ष के लड़के को बिठाया था |
किसी को दया आ गयी तो पूछा; "अरे छोरी ! इस लड़के का बोझ उठाकर चल
रही हो तो थकान नहीं लगती क्या ?"
लड़की ने उत्तर दिया; " बोझ....? नहीं रे... बोझ कैसा? यह तो मेरा भाई है !
This entry was posted on 10:10 AM
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प्रेरक प्रसंग
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2 comments:
well said............. in materilistric era we are losing our ethics. but few of us are still making new ideals.
Jitendra Kumar Soni ,
www.jksoniprayas.com.co.in
जितेंद्रजी,
आपका धन्यवाद
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