डूँगर पर चढ़ाना अति कठिन था | सभी यात्रालुओं के चहरे पे थकान साफ़
झलकती थी | सभी लोग ख़ाली हाथ, बिना कोई सामान या बोज लिए डूँगर पर चढ़ रहे थे, फिर भी हाँफने से साँसे फ़ूला रही थी | सब के बीच एक बारह वर्ष
की लड़की भी थी | उसने कमर में लगभग चार वर्ष के लड़के को बिठाया था |

किसी को दया आ गयी तो पूछा; "अरे छोरी ! इस लड़के का बोझ उठाकर चल
रही हो तो थकान नहीं लगती क्या ?"

लड़की ने उत्तर दिया; " बोझ....? नहीं रे... बोझ कैसा? यह तो मेरा भाई है !