Posted by
Pankaj Trivedi
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कविता
झुग्गीयाँ - पंकज त्रिवेदी
बढ़ रही थी
मरनेवालों की तादात
जो रहते थे झुग्गियों में
पास में ही इमारत थी, दस मंजिला
जो ढह गयी थी अचानक
भूकंप में बेघर हो गें थे कईं लोग
ईमारत का मलबा झुग्गियों पर
और
मलबे से लाशों का कारवां...
नेताओं ने तुरंत किया दौरा, उस घटना स्थल का
कुछ झुग्गीवालों से मिले भी, और
मोहर लगा दी, उस प्रत्येक लाशों पर
पूरे एक लाख रुपये की....
बच गाएँ थे, कुछ लोग
जो दस मंजिला ईमारत में ही रहते थे
सोचने लगे वह भी-
काश,
झुग्गेयों में रहते होते हम भी...!
This entry was posted on 9:39 AM
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कविता
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2 comments:
sochne laayak.....
A Silent Silence : Shamma jali sirf ek raat..(शम्मा जली सिर्फ एक रात..)
Banned Area News : Bollywood Actress Priyanka Chopra to host 'Khatron Ke Khiladi 3'
सोनल, सही कहा...
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