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घोटाला ही घोटाला .-दिलशाद नजमी


घोटाला ही घोटाला ...
क्या सफ़ेद और क्या काला
हर गर्दन पर झूल रही है, रिश्वत खोरी की माला

घोटाला ही घोटाला .......घोटाला ही घोटाला

नक्शे पास हुवे हैं ज़मीनें घुस गई ऊंचे मकानों में

बाज़ारों के तंग रास्ते , कैसे खिसके दुकानों में

आँखें मूंद ली प्रशासन ने , रूई ठूंस ली कानो में

फुटपाथों को लांघ के सामने आने लगा गन्दा नाला

घोटाला ही घोटाला ......

शायद कुछ दम बचा नहीं है गाँधी वाद के मंतर में

जनता पिस कर चीख रही है रोज़ दलाली टक्कर में

जिस को देखो घिरा हुवा है बन्दर बाँट के चक्कर में

कभी नहीं दफ्तर में अफसर , दफ्तर में है कभी ताला
घोटाला ही घोटाला ........

ठेकेदारों;न , चपरासी , बाबु , अफसर का राज हुवा

जल की हाय ताव्बा मची है. पयसा पूरा समाज हुवा

नक्शे में तालाब ,कुवें ,ओंर नहेरों का इन्द्राज हुवा

किसे है चिंता चौड़ा दरया , कैसे बन गया है नाला

घोटाला ही घोटाला..........

खूब खनीज की लूट मची है ,कोएयले की है दलाली
छुट भैये दरबारी राग में गाने लगे हैं कव्वाली

काले धन की परसेंटेज से गालो पर आई है लाली

किस में दम है साफ़ करे जो कालि मकड़ी का जाला

घोटाला ही घोटाला ........

पता नहीं है कौन सराती , कौन यहाँ पे बाराती है

सचाई खुद असमंजस में ,खोपड़ी अपनी खुजाती है
जांच कमेटी घोटाले के बाद बिठा दी जाती है
अफसर जी जा के टेंडर पर ,हिस्से दार हुवा साला

घोटाला ही घोटाला ...............
पटरी पर गुज्जर आन्दोलन , रेल का चक्का जाम हुवा

टेक्स की चोरी और दो जीबी का रेक्केट सारे आम हुवा

स्विज़ेर लैंड का जमा खज़ाना आने में नाकाम हुवा

चीखे अपोजिसन में मोगेम्बो ,चुप सत्ता में मधुबाला ....

घोटाला ही घोटाला ......

भूके टीचर , खुशहाली का सबक पढाओगे कैसे

और किसान जी , सूखे खेत में धान उगाओगे कैसे

अस्पताल में दावा नहीं है , जीवन पाओगे कैसे

डोनेशन , और पैरवी से मजबूर हुवा पढने वाला

घोटाला ही घोटाला ..........

सब कुछ चुप चुप सहते सहते समय बहोत बर्बाद हुवा

हर दिन बढती महंगाई का मंतर सब को याद हुवा

घोटाले पर गीत लिखा तो नजमी का दिल शाद हुवा

सिस्टम सारा बह जाएगा , फूटने वाली है जवाला

घोटाला ही घोटाला .........
घोटाला ही घोटाला
क्या सफ़ेद और क्या कला
हर गर्दन पर झूल रही है रिश्वत खोरी की माला

घोटाला ही घोटाला ......................

In:

पूनम मटिया की कविता


लाचारगी झलकती है आँखों में
माथे पर शिकन कुछ ज्यादा हैं

जिंदगी थोड़ी छोटी है ,
और
काँधे पर बोझ कुछ ज्यादा है
नकली सी मुस्कान चेहरे पर आती है

जब खुशी पल भर के लिए दरस दिखाती है

उम्र का क्या ,
यूँही बढती चली जाती है

ताउम्र तलाशता है
पल भर का विश्राम
ये आम आदमी ,
जानते हुए भी कि

मिलेगा वो दुष्ट सिर्फ मृत्यु –शय्या पर.............

In:

कदमों के निशाँ - पंकज त्रिवेदी


मैं जनता हूँ कि -

तुम्हे अपने पैरों पर खड़ा होना है

तुम्हें अपनी पहचान बनानी हैं

तुम हो कि उसके लिए

चाहे कुछ भी क्यूं न करना पड़े !

ज़िंदगी के आयामों को अपने

कब्ज़े में करना और

आसमाँ को छूने की तुम्हारी

हसरत हमेशा से रही हैं !

मगर ज़िंदगी यही हैं आज के दौर में

किसी के सर को कुचल दो

किसी की इज्ज़त को सरे आम निलाम कर दो

किसी की भावनाओं से खेलो...

या फिर -

किसी के आगे अपने अस्तित्त्व को झुका दो

खुद को भूलकर दूसरों में खुद को ढूंढों

फिर जो असर होगा उसको भी भूल जाओ

दुनिया वाले हैं, कहेंगे यार !

कुछ दिनों की तो बात हैं... सुन लेना....

यही तो है शोर्टकट !

यही तो हैं सफलता की पायदान

यही तो हैं खुद को रौशन दिखाने की चाह

मगर -

जो छूटता है, जो छोड़ता हैं, वोही आखिर जीतता हैं !

शायद यही सबसे बड़ी सफलता पर

चाहे कितनी भी धूल झोंक दो...

सफलता किसीकी मोहताज नहीं होती

न उसे सीढीयों की जरूरत होती हैं न किसी की

तारीफ़ की...!

सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की

ऊंगली पकड़ती हुई,

खेलनी चाहिए हमारे आँगन में...

जहां हमारे कदमों के निशाँ को

कोई मिटा नहीं सकता और वहीं पर तांता लगता हो...!!

In:

प्रतिशोध - पंकज त्रिवेदी


प्रतिशोध की ज्वाला
भड़क रही है मेरे अंदर
घुटन सी महसूस होती है
निराशा भी हैं,
धोखा भी हैं,
आशा-अपेक्षा की नींव पर
खड़ी थी सपने की ईमारत
वो भी अब गिर चुकी हैं
किस तरह से जीना होगा मुझे
यह भी नहीं पता था मगर
हर पल सबको साथ लेकर
किसी के एक बोल पर दौड़ता रहता
और
जाने क्यूं ? कुछ नहीं कहना हैं मुझे......
जाने दो उस बात को.........
अब मैं -
जो भी हो.... ख़त्म होना हैं मुझे
लोग चाहें जिस तरह भी ख़त्म करें
मैं उन्हें सहयोग देता रहूँगा
मगर -
अपनी इंसानियत को,
अपनी आत्मा को,
कभी भी ख़त्म नहीं होने दूंगा... !!

In:

श्री नन्दकिशोर आचार्य की कविताएँ


१. पत्ता वह क्या करे लेकिन
खिलाता है हरे पल्लव
सूखे पत्तों को लेकिन
गला देता है-
प्यार है
मृत्यु भी है जल
किसी के लिए

पत्ता वह क्या करे लेकिन
जो जल की कामना में
सूख जाता है।

२. खोजती है जो

खोजती है किसको यह
खामोशी से निसरती आवाज
सूने आकाश में
खुद
गुम हो जाती हुई

खामोशी जो व्याप्ति है
खुद
उस तलाश की
खोजती है जो
खुद से निसरती आवाज।

३. मृत्यु खुद भी

अगर मैं काल में हूँ
तो अनन्त क्यों नहीं
अगर मैं दिक में हूं
तो लौट-लौट
क्यों आता नहीं यहीं

बाहर हूँ दिक्काल से
तो मृत्यु फिर क्या कर लेगी मेरा

अगर दिक्काल में है वह
ते मृत्यु खुद भी
मर्त्य कैसे नहीं ?

४. मरुथल भी

हवा के हर मिजाज के साथ
बदल जाता है
उसका रूप

यह मरुथल भी
क्या प्यार करता है
हवा को !

५. कुछ नहीं बोलता है पेड

खिलता है हर लम्हा
तुम-सा
मुर्झा कर झर जाता
मुझ-जैसा

कुछ नहीं बोलता है
पेड
महकाता रहता केवल
झर गये फूल की खुशबू
खिलते फूल में
चुपचाप !

६. तुम्हें क्या

मानी हो मेरा तुम
इससे तुम्हें क्या करना

मानी को मतलब क्या इससे
कौन है शब्द उसका
पूर्ण है खुद में वह
निश्शब्द
चाहे भटकता ही रहे
विकल
उसकी तलाश में शब्द

कविता
शब्द की विकलता है क्या ?

In:

होली विशेषांक.... अलका सिन्हा, विनय वेद, सुजीत सिंह और नवीन सी.चतुर्वेदी


रंग डालें बासंती अलका सिन्हा

अबकी ऐसे फाग मनाओ

दीवारों पर रंग लगाओ

रंग भरी भीगी दीवारें

महक उठें सोंधी दीवारें

नरम पड़ी गीले रंगों से

जहाँ-तहाँ टूटें दीवारें.

दीवारें घर के भीतर की

दीवारें मंदिर-मस्जिद की

दीवारें झोंपड़-महलों की

दीवारें मानस-मानस की

रंग डालें बासंती.

बरसे अबकी इतना रंग

बह जायें गलियारे तंग

दीवारों से राह बने

आने का हो आमंत्रण.

दीवारें घर को जोड़ें

घर में दीवारें तोड़ें

रंग भरी दीवारों से

अबकी हम भी गले मिलें

दीवारों के गीले रंग

हमको भिगा-भिगा कर के

रंग डालें बासंती.

************************ ************ ************

अलका सिन्हा

जन्म : 09 नवम्बर, 1964

भागलपुर, बिहार

शिक्षा : एम. बी. ए., एम. ए., पी. जी. डी. टी.,

केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, गृह मंत्रालय द्वारा संचालित अनुवाद प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में रजत पदक

रचना - कर्म कविता - संग्रह

* काल की कोख से

* मैं ही तो हूँ ये ( पुरस्कृत)

* तेरी रोशनाई होना चाहती हूँ

कहानी - संग्रह* सुरक्षित पंखों की उड़ान

कविताओं का पंजाबी, उर्दू और मराठी अनुवाद देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशितआकाशवाणी की विदेश प्रसारण सेवा द्वारा दर्जनों कहानियां नेपाली में अनूदित और प्रसारितप्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों के हिन्दी विषय के पाठ्यक्रम में कहानी सम्मिलितकविताएं, कहानियां और समीक्षात्मक निबंध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से प्रसारितकविताएं बी. बी. सी. से प्रसारित आकाशवाणी के इंद्रप्रस्थ चैनल पर प्रसारित धारावाहिक 'संस्कार' के लिए शीर्षक - गीत लेखनकविता, कहानी और निबंध के अनेक संग्रहों की सहयोगी रचनाकार

विशिष्ट गतिविधियां

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के सौजन्य से वर्ष 2008 में ब्रिटेन के विभिन्न शहरों में काव्य पाठवर्ष 1999 में लंदन में आयोजित छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में शोधपत्र का पाठगत बारह वर्षों से गणतंत्र-दिवस परेड का आँखों देखा हाल सुनाने का गौरव और राष्ट्रीय महत्व के अन्य कार्यक्रमों की रेडियो कमेंटेटरदिल्ली दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम 'पत्रिका' की विशिष्ट श्रृंखलाओं की प्रस्तोताआकाशवाणी की विदेश प्रसारण सेवा में पूर्व हिन्दी उदघोषकएयरलाइन्स कर्मियों को उदघोषणा संबंधी जानकारी देने के लिए आयोजित वॉइस कल्चर ट्रेनिंग में फैकल्टी पर्सन अंतरराष्ट्रीय लेखन से जुड़ी हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका 'अक्षरम् संगोष्ठी' की सह-संपादक (मानद और अवैतनिक)मासिक पत्रिका 'भारतीय पक्ष' के स्त्री - विमर्श पर केन्द्रित मई, 2010 अंक की अतिथि संपादकअनेक मूर्धन्य साहित्यकारों से साक्षात्कार प्रकाशित एवं प्रसारितबाल-पत्रिका 'नंदन' के स्थायी स्तम्भ 'विश्व की महान कृतियां' के लिए अनेक हिन्दीतर कृतियों का हिन्दी कहानी रूपांतरणराष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) के श्रव्य-दृश्य शिक्षण कार्यक्रमों का प्रस्तुतीकरणकेन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की सूचीबद्ध साहित्यकारदिल्ली विश्वविद्यालय से अनुवाद की अतिथि प्राध्यापक के रूप में संबद्धकेन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद की पूर्व 'साहित्य एवं संस्कृति मंत्री'परिचय साहित्य परिषद की सचिव एशियन अकैडमी ऑफ आर्ट्स (ऐन इनिशिएटिव ऑफ एशियन सोसाइटी ऑफ फ़िल्म एंड टेलीविजन), फिल्म सिटी, नोएडा की सदस्यविभिन्न साहित्यिक - सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संयोजन-संचालन

सम्मान कविता - संग्रह 'मैं ही तो हूँ ये' पर हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा साहित्यिक कृति-सम्मान- २००२ सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था 'उद्भव' द्वारा साहित्य के लिए मानव सेवा सम्मान - २००४ प्रवासी संगठन, नई दिल्ली द्वारा साहित्य के लिए प्रवासी रत्न सम्मान - २००४ समकालीन साहित्य मंच, मुंगेर द्वारा लाला जगत ज्योति स्मृति सम्मान - २००८ संसदीय हिन्दी परिषद द्वारा संसद के केन्द्रीय कक्ष में राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान - २००९ विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा 'विद्यावाचस्पति' की उपाधि–२०१० अखिल भारतीय साहित्य परिषद् एवं कारवाने-अदब, करनाल द्वारा श्रीमती दयारानी स्मृति सम्मान – २०११ महात्मा फुले रिसर्च अकादमी, नागपुर द्वारा अमृता प्रीतम राष्ट्रीय पुरस्कार - २०११

संप्रति : एअर इंडिया में कार्यरत

संपर्क : 371, गुरू अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. - 2, सेक्टर - 6, द्वारका

नई दिल्ली : 110075

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होली रहने दो : विनय वेद

न बहे हुआ सब लाल, सो गुलाल रहने दो !

कयामत है या है यह सैलाब, सवाल रहने दो !!

काश दान कर सकता जापान को सब रंग,

अभी गीला है वहाँ काला, सो लाल रहने दो !

कैसे मनाऊँ होली, इतना हाहाकार है मचा,

कुछ न बचा सकी दुआ, यह ढाल रहने दो !

बरसों लगे थे बनने में, अब फिर बरसों लगेंगे,

पल में तो बस प्रलय होती है, कमाल रहने दो !

लगाने हैं अगर रंग, तो ख़ुदा को ही लगा लो,

छीन के सब कुछ कह रहा यही हाल रहने दो !

Copyright @ Vinay Ved

Vinay Sharma
Flat No. 103, Chinar Heights, Peer Muchhaila, Adjoining Sector 20,
NAC Zirakpur,
Dist. Mohali
Punjab
Mobile : +91-9855071888
Email : zenvinay@gmail.com

() दो- कविता : सुजीत सिंह

रंग की फुहार है , गीत की बहार है
बॉंटता जो प्यार है , होली का त्यौहार है
धूम ही मचायेंगे , होली यूं मनायेंगे
यारों की टोली में , गॉंव की होलीमें
हाथों में रंग लिये , पिचकारी संग लिये
झूमझूम गायेंगे . होली यूं मनायेंगे
गॉंव की जो गोरियॉं , भाभी और छोरियां
देख रंग हाथों में , घुस गई अहातों में
दरवज्जा तुडवायेंगे , होली यूं मनायेंगे
रंग लगा गालों में , भर अबीर बालों में
बीती बात भूल गये, हम गले से झूल रहे
भेद सब मिटायेंगे ,होली यूं मनायेंगे
पंहुचे नदी के घाट पर , भंगिया को बॉंट कर
छान कर डटाई है , मस्ती खूब छाई है
गीत गुनगुनायेंगे ,होली यूं मनायेंगे
कधे पर शर्ट टॉंग , धर के विचित्र स्वांग
होंठों पर गीत फाग . ढपली पर बजे राग
तुमको नचवायेंगे , होली यूं मनायेंगे
बाटी और दाल है , चूरमा कमाल है
पत्तों की थाली है , गंध भी मतवाली है
डट के खूब खायेंगे , होली यूं मनायेंगे
रंग की फुहार है , गीत की बहार है
बॉंटता जो प्यार है , होली का त्यौहार है
धूम ही मचायेंगे , होली यूं मनायेंगे

()

आओ मिलके खुशियाँ मनाएँ,
खेलें सब संग, होली है.

उडाये पिचकारी, लगाए गुलाल
रंगीन बनाएं होली है

लकडियों का ना नाश करें हम
पौधें लगाएं, होली है

बहनों को ना चेडें कोई
गुलमिलके मनाएं होली है

भगवान् का हम नाम जपेंगे
भस्म करें धरिंदों को, होली है

छुए ना भांग, खाए पकवान
मनाएं मस्ती, होली है

टेस ना पहुंचाएं, किसीको
साथ में खेले होली है

हास्य का कविताएं सुनेंगे
जी भर के हँसेंगे होली है

बौरा गया नवीन नवीन सी चतुर्वेदी
==================================

कुछ ज़्यादा ही पड़ रही, महँगाई की मार|
प्रेम रंग में डूब के, होली खेलो यार||

होठों पे मुस्कान हो, मन में बजे सितार|
दिल से दिल का मेल हो, दिलदारा इस बार||

सब के जीवन में पड़े, संस्कारों की छाप|
कुविचारों का हो दमन, जलें पाप-संताप||

होली में हो लालिमा, हर मुख पर द्रष्टव्य|
गाली भी दो इस तरह, सब जन को हों श्रव्य||

प्रीत लगे पकवान सी, नैन लगें नमकीन|
रसना रसगुल्ला लगे, बौरा गया नवीन||

आखर कलश डुबोय के, विश्व कथा के रंग|
पंकज भाई झूमते, पी हो जैसे भंग||

सब कवि कवियत्रियाँ, दो कमेंट के गिफ्ट|
क़ानूनन है दोस्तो, लेना-देना लिफ्ट||