क दिन घनश्यामदास बिडला अपनी ऑफ़िस जा रहे थे | घर से ही देरी हो चुकी थी, इस कारण ड्राईवर गाडी को तेज़ी से चला रहा था | ऐसे में एक तालाब के पास लोगों की भीड जमा थी | ड्राईवर ने जाँच की तो पता चला की एक बच्चा तालाब में डूब रहा है और लोग हाथ पर हाथ बांधे देख रह हैं । कोई भी आदमी उसे बचाने को तैयार न था | लोग सिर्फ़ बचाओ... बचाओ...की बूम लगा रहे हैं | तब घनश्यामदास बिडला गाडी से उतरे और सीधे गहरे पानी में कूद पडे | बच्चे को पानी से निकालकर उसे अस्पताल भी ले गये | बच्चे के पेट में काफ़ी पानी भर गया था | थोडी दर के बाद वह जब स्वस्थ हुआ तो गिले कपडों में ही बिडलाजी अपनी ऑफिस पहुँचे | उन्हें इस स्थिति में देखकर ऑफ़िस के सभी कर्मचारी हक्के-बक्के रह गये |

जब कर्मचारीयो को बच्चे को बचाने की जानकारी मिली तो एक ही स्वर में बखान करने| किसी ने कहा; " सर, आप महान हैं |" तो घनश्यामदास जी ने विनम्रता से जवाब दिया; "इसमें महानता कहाँ ? मैने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है |"

बात सिर्फ़ इतनी है कि इंसानियत का सवाल हो तो छोटा-बडा या अमीर-ग़रीब कोई नही होता | यही तो मानव धर्म है न?


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