गुजरात के कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, लोकसाहित्य साधक, सम्पादक, आलोचक, पत्रकार और अनुवादक के रूप में क़रीब 100 से भी अधिक पुस्तक लिखनेवाले अमर साहित्यकार - स्वर्गीय झवेरचंद मेघाणी की जन्मतिथि में विसंगतता ज़रूर है उनके पौत्र गोपाल मेघाणी कहते हैं - 17, अगस्त, 1897 को उनका जन्म हुआ था, मगर कुछ लोग 18, अगस्त को भी मानते हैं
मूल गुजराती साहित्यकार मेघाणीजी को राष्ट्रपिता गांधीजी ने "राष्ट्रीय शायर" कहकर सम्मान दिया था उन्होंने कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजली" का गुजराती अनुवाद भी किया था गुजराती साहित्य में विविध विधाओं पर कईं पुस्तक देने वाले झवेरचंद मेघाणी का जन्म गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के चोटीला शहर में हुआ था उनकी माता धोलीमा और पिता कालीदास थे 1918 -21 तक कोलकाता में एल्युमिनीयम की फ़ैक्ट्री में मैनेजर रहे 1922 में बोटाद से "सौराष्ट्र" साप्ताहिक के सम्पादन मंडल में और फिर 1936-45 तक सौराष्ट्र और गुजराती भाषा का लोकप्रिय अख़बार और "जन्मभूमि ट्रस्ट" के "फूलछाब" दैनिक के तंत्री रहे बाद में मुम्बई से "जन्मभूमि" गुजराती अख़बार भी निकलने लगा
1930 में आज़ादी की लड़ाई में जेल गए और अदालत के बीच "छेल्ली प्रार्थना" कविता बुलंद और सुरीले स्वर में गाकर सुनाई 1931 में गांधीजी जब गोलमेजी परिषद् में जा रहे थे तब "छेल्लो कटोरो" काव्य सुनाया मेघाणीजी की आवाज़ काफ़ी बुलंद थी उनके द्वारा संपादित लोकगीत और मौलिक गीतों को गुजराती स्वर्गीय हेमू गढ़वी ने गुजरात के घर-घर में पहुँचाकर मेघाणीजी को शिखर पर बिठाया 1933 में कविवर टैगोर से उनकी भेंट हुई उन्होंने 1941 में शांतिनिकेतन में अपने व्याख्यान दिया वे 1946 में गुजराती साहित्य के अध्यक्ष बने
मेघाणीजी का वतन गुजरात के ही अमरेली जिले का बगसरा गाँव है उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा लोकचेतना को जगाने के लिए बुलंद अभियान छेड़ा था जिसमें समाज के पिछड़े, पीड़ित और दलित वर्ग के लोगों की संवेदना अपनी क़लम और कविता और लोकगीतों के द्वारा लोगों के सामने रखा था उन्होंने अकेले ही सौराष्ट्र के गाँव-गाँव जाकर लोकसाहित्य का सम्पादन किया था
गुजरात के जूनागढ़ जिले में गिर का जंगल है, जहाँ शेरों की आबादी 400 से अधिक है और एशिया में यही एक जगह है, जहाँ शेर हैं मेघाणीजी ने गिर के जंगल में एक घटना का सीधा अनुभव किया, जो रोंगटें खड़े कर देनेवाला था मवेशियों को चराने वाली एक 14 वर्षीय चारण जाति की लड़की ने देखा की एक खूँखार शेर मवेशियों पर हमला कर रहा है.... और फिर उस छोटी-सी लड़की ने उस खूँखार शेर को ललकारते हुए हाथ में लाठी लेकर सामना किया क़रीब आधे घंटे की लड़ाई में उस चारण कन्या ने शेर को भगा दिया गिर के जंगल की यह घटना ने मेघाणीजी को प्रेरित किया अपनी कविता - चारण कन्या लिखने के लिए जो आज भी शौर्यगान के रूप में घर-घर गूँजता है
झवेरचंद मेघाणी ने अपनी साहित्य यात्रा में ख़ासकर गाँवों में महिलाओं के द्वारा गाये जाते गीत, किसी ख़ास अवसर पर या लोक मेले के गीतों पर काफ़ी संशोधन और सम्पादन का भगीरथ कार्य भी किया झवेरचंद मेघाणी का कालखंड 1897-1947 होने के बावजूद, इतने वर्ष बीतने पर भी गुजराती भाषा और लोगों के दिल में आज भी अमर "राष्ट्रीय शायर" ज़िंदा है ! उनके जन्मदिन सप्ताह पर शत शत नमन

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पंकज त्रिवेदी
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