परिचय : जन्म स्थान : केसरीसिंहपुर, श्रीगंगानगर, राजस्थान, भारतकु प्रमुख कृतियाँअंतस री बळत(1988),कुचरणी(1992),सबद गळगळा(1994),बात तो ही (2002)'कुचरण्यां (2002) पंचलडी (२०१०) आंख भर चितराम(२०१०)सभी राजस्थानी कविता-संग्रह मीठे बोलो की शब्द परी(१९८६),धूप क्यों छेड़ती है (१९८६),आदमी नहीं है(१९९५),थिरकती है तृष्णा (१९९५) सभी हिन्दी कविता-संग्रह जंगल मत काटो(नाटक-२००५),राधा की नानी (किशोर कहानी-२००६),रंगों की दुनिया(विज्ञान कथा-२००६),सीता नहीं मानी( किशोर कहानी-२००६),जंगीरों की जंग (किशोर कहानी-२००६)तथा मरुधरा(सम्पादित विविधा-१९८५)विविधराजस्थानी,हिन्दी और पंजाबी भाषाओं में समान रूप से लेखन। राजस्थान साहित्य अकादमी का पुरस्कार, राजस्थानी भाषा साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर का पुरस्कार।

1.

याद आता है बचपन

आज भी

याद आता है बचपन;

वो दौड़ कर तितली पकड़ना

आक के पत्ते झाड़ना

पोखर में नहाना

और फिर

धूल में रपटना

मां की डांट खा कर

नल पर नहाना।

कभी-कभी

मां के संग

मंदिर जाना

खील-बताशे खाना

स्कूल जाने के लिए

पेट दर्द का

बहाना बनाना

फिर मां का दिया

चूर्ण चटखाना

होम वर्क की कॉपी

छुपाना-जलाना

कुल्फी से

होंठ रंगना।

बिल्ली जैसा

म्याऊं करना

कभी रोना मचलना

कभी रूठना मानना

मन करता है

बचपन फिर आए

मां लोरियां सुनाए

दु: हो

दर्द हो

हर भय की दवा

मां बन जाए

मैं लम्बी तान कर

सोऊं दोपहर तलक

मां जगाए-खिलाए

मैं खा कर सो जाऊं

दफ्‍तर की चिंता

अफसर का डर हो

बस लौट आए

वही बचपन

वही मां की गोद।

2.
फिर वैसी ही चले बयार

फिर वैसी ही
चले बयार
जिसके पासंग में

पुहुप बिखरे महक
महक में बेसुध
गुंजार करते भंवरे
पुहुप तक आएं।
फिर हो
वैसा ही अमां की रात
जिस में ढूंढ लें

जुगनू वृंद
नीड़ अपना
फिर हो
वैसा ही निशा
निशाकर की गोद में
सोई निशंक
जिसकी साख भरता
खग वृंद
छोड़ अपना नीड़
बतियाएं दो पल
मुक्ति गगन तले।
फिर हो
चंदा और चकौरी में
उद्दात वार्तालाप
जिसे सुन सके
ये तीसरी दुनिया
फिर हो वैसी ही
स्नेह की बरखा
जिस के जल में
भीग जाए
यह सकल जगती।