'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युथानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥’
शास्त्रों के अनुसार साढ़े तीन हजार वर्षों पूर्ण परम पिता श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था। उनका अवतरण एक विशेष युगसन्धि काल में हुआ था। मानवता उस समय एक अत्यन्त वेदनादायक परिस्थिति से होकर काल व्यतीत कर रही थी। महाभारत की रचना के माध्यम से उन्होंने उस युग की आर्त मानवता का परित्राण किया था। उन्होंने समग्र आश्वासन देकर कहा था कि जब भी धर्म की ग्लानि दिखाई देगी, अधर्म का अभ्युत्थान होगा, उसी समय वे धरा पर अवतीर्ण होकर उनके परित्राण की व्यवस्था करेंगे। कृष्ण की इस उक्ति को समझन की चेष्टा करो। यहाँ अर्जुन को ‘भारत’ कहकर सम्बोधित किया गया है। साधारणत: 3वर्ष तक मनुष्य का शरीर वृद्धि प्राप्त करता है। उसके बाद इसका क्षय शुरू होता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में जीवन के अन्तिम मुहूर्त तक मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति हो सकती है। जिस देश में इस प्रकार की बात होती है, उस देश का नाम है ‘भारतवर्ष’। ‘वर्ष’ शब्द का अर्थ है इस पृथ्वी का एकांश। वे चाहते थे, अजरुन इस देश के मनुष्य की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का दायित्व ग्रहन करें। ‘ग्लानि’ शब्द का अर्थ क्या है? किसी वस्तु का जो स्वीकृत मानदण्ड है, उससे नीचे होने से उसे ‘ग्लानि’ कहेंगे। धर्म का जो स्वीकृत मानदण्ड है, उसकी नीचे चले जाने से उस कहेंगे धर्म की ग्लानि। जैसे मानो, राजमुकुट धारण का स्वीकृत स्थान है मस्तक। यदि कोई सिर पर मुकुट नहीं पहन पाता है, पैर में पहनता है तो उसे कहेंगे राजमुकुट की ग्लानि। इसीलिए श्रीकृष्ण ने हम लोगों को आश्वासन देकर कहा है, जब भी धर्म की ग्लानि दीख पड़ेगी, अधर्म का अभ्युदय होगा, जब मनुष्य के सिर का मुकुट मस्तक ही शोभा न बढ़ाकर पाँव की शोभा बढ़ाता है, और पाँव का जूता सिर की शोभा बढ़ता है, तभी वे धर्म का गौरव स्वस्थान में पुन: प्रतिष्ठित करन के लिऐ तारक ब्रह्म के रूप में मर्त्यभूमि में जन्म लेंगे।
ऐसे श्री हरी के दशावतारों की हम वंदना करते हैं-

वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद् बिभ्रते दैत्यान् दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते।

पौलस्त्य जयते हलं कलयते कारुण्यमातन्वते म्लेच्छान् मूर्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः।।

श्रीकृष्ण! आपने मत्स्य रूप धारणकर प्रलय समुन्द्र में डूबे हवे वेदों का उद्धार किया, समुन्द्र-मन्थन के समय महाकूर्म बनकर पृथ्वीमण्डल को पीठपर धारण किया, महावराह के रूप में कारणार्णव में डूबी हुई पृथ्वी का उद्धार किया, नृसिंह के रूप में हिरण्यकशिपु आदि दैत्यों का विदारण किया, वामन रूप में राजा बलि को छला, परशुराम के रूप में क्षत्रिय जाति का संहार किया, श्रीराम के रूप में महाबली रावण पर विजय प्राप्त की, श्री बलराम के रूप में हल को शस्त्ररूप में धारण किया, भगवान बुद्ध के रूप में करुणा का विस्तार किया था तथा कल्कि के रूप में म्लेच्छों को मूर्छित करेंगे। इस प्रकार दशावतार के रूप में प्रकट आपकी मैं वन्दना करना हूँ।

-पंकज त्रिवेदी