"हमारा जीवन मूल्यवान होना चाहिए"- इस विधान को हमने कईं बार विद्वानों के द्वारा सूना है | मगर इसे समझाने के लिएं पहले तो हमें मूल्य को खोजना पडेगा | मूल्य की सही परख होने के बाद ही हम मूल्यवान बन सकतें है | मूल्यवान बनाने के लिएं किसी जगह पर खोज करने की ज़रूरत नहीं होती | मूल्य तो संक्सार का ही एक हिस्सा है और संस्कार परंपरा से मिलतें है | मूल्य की खोज तो "स्व" से "सर्वस्व" तक पहुँचाने की एक प्रक्रिया है जो निरंतर चलाती है | हकीकत यह है की जीवन के हर कदम पर मूल्य हमारे साथ ही चलता है | मूल्य को संभालने का कार्य मुश्किल जरुर है, वह किसी भी पल फिसल जाएं तब मूल्य में से अवमूल्यन प्रकटते ही हमारा पूरा अस्तित्त्व जोखिम में पड़ जाता है |

एक सेल्फ फईनांस बी.एड. कोलेज के अध्यापक मेरे साथ अहमदाबाद से आते थे | मेरी ही कार में मैंने उन्हें लिफ्ट दी तो उसी विषय से मानवीय मूल्यों की बात भी चली | उनकी कीं बातों से मुझे यह पता चला की उनकी दृष्टी में मूल्य का जीवन में महत्त्व क्या है? उनका मुख्य सूर ऐसा था की अभ्यासक्रम के साथ मूल्यनिष्ठा के बारेमें भी क्लासरूम में बातें होनी चाहिए | जिसमें राष्ट्रीय और सामाजिक भावनाओं का जातां हो | हमारे यहाँ राष्ट्रीय और सामाजिक चारित्र्य की बातें तो ढोल बजाकर बड़े-बड़े शिक्षाविद कह रहें है | ऐसी बातें राजकीय और शिक्षा क्षेत्र के दिग्गजों को कहतें सुनकर बड़ा आनंद आता है | उस माहौल में तो ऐसा ही लगता है की इसी वक्त सेवाकार्य के लिएं हम दौड़ पड़ें | इस मनोवृत्ति के पीछे वक्ता की बोलने की खूबी और नाट्यात्मक पेशकश श्रोताओं को आकर्षित करती है | इस कारण से उत्साह उफ़ान बन जाता है | गांधीयन विचारधारा की संस्थाओं के पास समाज को कुछ अपेक्षाएं रहेती है | फिर भी एक पी.टी.सी. कोलेज में राष्ट्रीयपर्व के अवसर पर उलटा राष्ट्रध्वज लहराने का साक्षी बना था | कई स्कूल-कोलेज में आचार्य-शिक्षकों की ही बातें होती रहती है | मगर चपरासीओं की इंसानियत को सराहने के बदले उसे अनदेखा करें तो भी दुःख होता है | क्यूंकि अच्छा कार्य करनेवाला चाहे छोटा हो या बड़ा, उनके प्रति सम्मान का भाव दिल से प्रकट हो तो समज लो कि हमारे व्यवहार में भी मूल्य का अंश है |

वर्त्तमान समय में तो मूल्य का चित्र बिलकुल धुंधला दीखता है और ऐसी स्थिति में हमलोग जी रहें है | सांप्रत समय में मूल्य को बचाने के लिएं हमें क्या करना होगा ? किसी बीज को बो ने के बाद उसे पौधा बनाने का अनुकूलन भी मिलना चाहिए | मूल्य को सिर्फ शब्दों के रूपमें जानने से आगे अपने व्यवहार से नई पीढी में उसके बीज को निरंतर बोते रहने की प्रक्रिया होनी चाहिए और यही मूल है और मूल्य भी ! भारतीय संस्कृति में आश्रम व्यवस्था थी | जिसमें प्रत्येक कार्य गुरु और गुरुमाता खुद करतें थे | शिष्यों को विविध कार्यों की ज़िम्मेदारी देने के साथ शिक्षा-समाज के द्वारा सीधे अनुभवों के द्वारा मूल्य की पूंजी दी जाती थी | वाली से ज्यादा व्यवहार की प्रभावकता होती है | वर्त्तमान शिक्षा को प्रतिशत के मापदंड से देखा जाता है | उसका मूल्यांकन कागज़ पर सही मगर जीवन के अवमूल्यन की और भी अग्रेसर करता है | अहमदाबाद में कुछ समय पहले बजरंगदल और दुर्गावाहिनी के कार्यकारों ने कोलेज छात्राओं के हाथों में बेझबोल के बेट, लाठी और होकीस्टीक थमा दी थी | उन्हों ने सरेआम छेड़खानी करते सडकछाप रोमियों को बेरहमी से पीटकर कोहराम मचा दिया था | उसमें कुछ निर्दोष युवकों की भी धुनाई हुई थी | यह है हमारी शिक्षा और कायदे-क़ानून का नग्न स्वरूप !

मुझे याद आ रहा है, अपने से आगेवाली पीढीयों की बातें | उनहोंने जो शिक्षा के पाठ सीखे थे वह आजतक नहीं भूले | उनके समय की कवितायेँ आज भी याद है और प्यार से गातें भी है | उस ज़माने में शिक्षक पाठक्रम के साथ जीवनोपयोगी उदाहरणों, प्रतीकों और घटनाओं का समन्वय करके शिक्षक पढ़ाते थे | यही कारण था कि ऐसे शिक्षक छात्रों के बिच काफी लोकप्रिय होते थे और अच्छे परिणाम भी प्राप्त करते थे | मेरी दृष्टी से ऐसी शिक्षा से सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर के चारित्र्यवान नागरिक हमें मिलते थे, जो आजकल बहुत ही कम मिलतें है |

शिक्षा की खोखली बातों के बीच शिक्षाविदों को सोचने का समय आ गया है | ऐसे कईं जीवनलक्षी और शिक्षालक्षी मूल्य हमारे आसपास ही है, मगर हमारे पास वो दृष्टी ही कहाँ की हम उन्हें देखें ! या फिर समय का बहाना तो हमेशा होता है | शायद हमारे अंदर छीपा सूक्ष्म अहंकार या किसी के प्रति रही कटुता हमारे व्यक्रित्त्व को निस्तेज कर देता है | किसी इंसान में रहे अवगुण की और देखने बजाय उनके अंदर रही अच्छाई को देखकर उसे समाज के सामने रखनी चाहिए | हमारे गुरुओं को तो सिर्फ अन्गूलिनिर्देश करके गड़े हुएं मूल्यों को हमारे सामने रखना होगा | इस सत्कार्य को करनेवाला शिक्षक सामाजिक-राष्ट्रीय चरित्र्यों का गढ़ने वाला मसीहा बन सकता है |

मूल्यवान इंसान विचारों से समृद्ध हो, न्यायी हो, समर्पित हो, निखालस हो, तात्विक हो और सात्विक भी होना चाहिए | शुरू में मैंने कहा कि मूल्य तो संस्कार का ही एक हिस्सा है इसीलिए अपेक्षा भी वहीं पर होगी | हमारे समाज की बुनियादी तालीम देने वाली संस्थाओं के लिए भी निजी मूल्यांकन का समय हो गया है | क्यूंकि सुधर करने की क्षमता भी उन्हीं में है | हमें मूल्यवान राष्ट्रीय-सामाजिक चारित्र्यों का निर्माण करना है तो सुरुआत हमारे माहौल में से ही करनी पड़ेगी और उसमें भावपूर्ण समर्पण भी !

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