पता नहीं है क्यूं
आज उदासीने डेरा डाला है

ऐसा भी क्या हुआ
, हर कोई पूछता रहता है
और क्या कहूं मैं उनसे
,
ढूँढता हूँ मैं भी इस प्रश्न का उत्तर

याद आती है जब भी उनकी

हर पल
, हर लम्हें
यहाँ से वहां तक पटकता है मेरे पूरे अस्तित्त्व को

और

लाचार बनाकर देखता हूँ खुद को

एक कोने में खडा होकर
, जैसे कोई अजनबी सा हूँ मैं !
और
, किसी के साथ हो रहा मज़ाक..!
कौन सी पल होगी
, जिसमें
उसकी यादें न हो और न उसका साया...

बात सिर्फ यादों की ही क्यूं हो भला
,
वो खुद भी समाई है मुझमें...

शायद मेरे
इन शब्दों को वही लिखवाती है और
न दिखाकर भी वो साक्षात है मेरे अन्दर-बाहर

एक अहसास बनाकर...!

कहती है -

आज तुम्हारा जन्मदिन है और मैं हूँ की

उनके ही शब्दों को संजोकर बैठा
हूँ आजतक
जो अब मोतीओं की भाँति बिखरता हूँ आप लोगों के सामने

क्यूंकि -

वो अहसास है भी और नहीं भी...

पता नहीं
,
आप कहाँ तक पहुंचकर समज़ पाते हैं

ईसी अहसास को...


जन्मदिन : 11 मार्च
को