ये आसमान देखा होता या होते पाँव ज़मीं पर,
कौन सोचता यहाँ मुसलमाँ और हिन्दू ज़मीं पर

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फट जाएँगी धरती, टूट पडेगा आसमाँ,
फिर कौन रहे यहाँ हिन्दू या मुसलमाँ