कमल के फूल की याद आती है तो सर्वप्रथम हमारे मन में दो चित्र उभर आतें है | पानी से छलाछल सरोवर में फैले बड़े से पत्तों के बीच में बहुत ही बड़े बड़े लाल, गुलाबी और सफ़ेद कमल के फूल | और साथ याद आता है देव-देवियों के आसन... यानी बड़े से कमल के फूल की पंखुड़ियों के बीच विराजमान माता महालक्ष्मी या श्वेत रंगी कमल पर विराजमान माता सरस्वती....| कमल के फूल हमारी प्रकृति से भी बढकर हमारे धर्मप्रतीक के रूप में ज्यादा परिचित है | सामान्य रूप से हर किसी के आँगन में दूसरे बहुत फूल- पौधे हो सकते है मगर कमल....! उसे देखना है तो देव-देवियों की तसवीरों में या किसी बड़े से सरोवर या तालाब में... | हमारा राष्ट्रीय फूल ही कमल है | उसमें सुगंध नहीं होती |

एकबार भगवान विष्णु को लगा की ऐसी दुनिया रचाई जाएं जिसमें पृथ्वीलोक पर सभी मनुष्य का जीवन संभव हो | ईश्वर हमेशा अपने कार्य में किसी न किसी को माध्यम ज़रूर बनातें है | पृथ्वी की उत्पत्ति की कथा का वर्णन श्रीमद भागवत के द्वितीय और तृतीय स्कंद में मिलता है | भगवान विष्णु ने अपनी नाभी में से कमल की उत्पति की | और उसी कमल के फूल से ब्रह्माजी की उत्पति हुई | आखिरकार ब्रह्माजी के द्वारा ही पूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ |

एक बार ब्रह्माजी को अभिमान आ गया और उन्होंने ने सोचा की ईस समग्र विश्व का रचयिता तो मै हूँ | मगर मैं किसके आधार पर हूँ, ये भी तो देखूं ! वह खुद तो कमल के फूल विराजमान थे | उन्हों ने सोचा की ये कमल का फूल किस आधार पर है? उसी कश्मकश में ब्रह्माजीने सूक्ष्म रूप धारण किया और कमल की डंडी में प्रवेश कर गएं | ब्रह्माजी धीरे धीरे डंडी में उतारने लगे | उन्हें पता भी न चला की कितना समय बीत गया है ! लाखों-करोडो वर्षों तक वह डंडी में ही चलते रहे मगर डंडी का मार्ग खत्म ही न हुआ | आखिर ब्रह्माजी कमल की उस डंडी में ही फंसें हो एसा एहसास हुआ | वह अन्दर ही अन्दर घबराने लगे | उन्हें कमल के उस फूल की डंडी का अंतिम छोर मिलना तो दूर की बात, बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा था | जब हम ईश्वर का मूल देखने की कोशिश करे तो कभी भी सफल नहीं हो पाते | यह प्रतीकात्मक बात है |

जिस ईश्वर ने या किसी ऐसी परम शक्ति है, जिसने ये समग्र सृष्टि के रचयिता का भी निर्माण किया है, उसे हम कैसे ढूंढ पायेंगे ? आखिरकार थके-हारे ब्रह्माजी डंडी से बाहर तो निकले और देखा तो अपने ही उसी कमल के आसन पर खुद को पाया | ही मन उन्हों ने प्रायश्चित किया और अपने अभिमान का नाश किया |

जो सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी है, उससे पहले भी कमल के फूल का अस्तित्त्व था | मतलब की कमल का फूल हमारे लिएँ पौराणिक धरोहर है और वह खुद ईश्वर यानी भगवान विष्णु से मिला अनमोल प्रसाद भी है | ईसी कारण कमल की पवित्रता का बड़ा ही महत्त्व है | भगवान विष्णु की पत्नी यानी महालक्ष्मी देवी का आसन भी कमल का फूल है | ईसी कारण से महालक्ष्मी को कमला भी कहतें है | उसी नाम को जोड़कर कला, संगीत और ज्ञान की देवी माता सरस्वती के लिएँ भी कमलासन सरस्वती शब्दों का उपयोग होता है | महालक्ष्मी के लिए लाल-गुलाबी रंग का कमल और सरस्वती के लिएँ सफ़ल कमल का आसन होता है | क्यूंकि महालक्ष्मी तो विष्णु भगवान की पत्नी है मगर सरस्वती तो कंवारी है | इसलिए उनकी पूर्ण पवित्रता का प्रतीक सफ़ेद कमल का फूल है | कमल तो देवी-देवताओं ने पसंद किया हुआ सर्वप्रथम और पवित्र फूल यानी आसन माना जाता है | कमल की पवित्रता और शुद्धता ही उनकी विशेषता है |

सामान्यत: कमल के फूल जलाशयों में ही देखने मिलतें है | उसके पत्तों की विशेषता यह है की कद में बड़े होतें है | पत्ते लम्बे नहीं मगर गोलाकार होतें है | उसके हरे रंग के पत्ते के ऊपर हलके गुलाबी रंग का मिश्रण भी होता है | वह गुलाबी रंग पत्ते का सौन्दर्य बढ़ता है | दूसरा एक शब्द है कुमुदिनी, जिसे गुजराती में "पोयणी" कहतें है | जो कली के ही स्वरूप में है और खुलना-खिलाना बाकी है, ऐसा सफ़ल कमल का फूल | कमल सहस्त्रदल, शतदल, अष्टदल भी होतें है |

श्रीमद भागवत में ही दशम स्कंद में चन्द्रवंशकीकथामें कंसवध से पहलेएक कथा का उल्लेख है | जब कंस राजा को अपनी मृत्यु का भय लगा तब की बात है | कंस राजा अधम था | देववाणी के अनुसार उसकी बहन देवकी और वासुदेव के संतानों को वह न मारे तो खुद की मृत्यु निश्चित थी | दूसरा तर्क यह भी है की देवकी के पुत्र को बचाया न जाएं तो कंस के द्वारा कईं पाप होने थे | ईस कारण महर्षि नारद मूनिने राजा कंस को अष्टदल कमल का फूल दिखाया था | तब कंस राजाने महर्षि नारद को पूछ की ये अष्टदल कमल दिखाने का अर्थ स्पष्ट करें |

तब नारदजी ने उत्तर दिया था की देववाणी तो देवकी के पहले संतान के जन्म समय ही हो चुकी है की उसका आठवां संतान के हाथों तुम्हारी मृत्यु निश्चित है ! अभी तो पहले संतान का ही जन्म हुआ है, जिसे तुमने मार दिया |"

तब राजा कंस ठहाके लगाते हुए बोला; "वो तो ठीक है महर्षि ! अभी तो आठवां बेटा हो तब ने? अभी से डराने की कोई आवश्यकता नहीं है मुझे !"

नारदमूनी ने उत्तर देते हें कहा; "ईस कमल के फूल को गौर से देख | ये अष्टदल कमल है | इन में से किसी भी दल पर अंगूली रखकर तुम गिनती शुरू करो तो आठवां क्रम कहीं भी आ सकता है | जिस किसी भी दल से तुम गिनती करो... आठवां क्रम तो अपनाप बदल जाएंगा ? यह तो देववाणी है, जो हर किसी के अर्थघटन की मोहताज नहीं होती | देवकी को प्रथम संतान बेटा था और उसका नाम कीर्तिमान था | इसका एक अर्थ यह है की जो कीर्ति के लिएँ दौड़ता है, जो अपने मान-सम्मान बढ़ने की लालसा रखता है और उसी को पाने के लिएँ अधम कार्य भी करता है तब खुद ईश्वर को जन्म लेना पड़ता है | जहां अधम है वही अधर्म है |" ईस तरह पौराणिक कथाओं में कमल के फूल का स्थान विशिष्ट है |

कमल के कईं पर्याय शब्द भी है | जैसे की - पंकज, जलज, अबज, अंबुज, अंभोज, अरविंद, पद्म, नलिन , पुष्कर, पुन्दारिक, महोत्पल, सहस्त्रपत्र, शतपत्र, कुशेशय, तामरस, सारस, सरोज, कुवलय, कुञ्ज, पंकेरुह, सरसीरुह, बिह, प्रसून, राजीव आदि नाम है |

कमल के फूल का आयुर्वेद में भी बड़ा महत्त्व है | वह कईं बिमारीयों को जड़ से निकालने में सक्षम भी है | जैसे की - रक्तपित्त, श्रम, कफ़, पित्त, जलन, रक्तदोष, अर्श, नाक से और स्त्रीयों को रक्तस्त्राव होने पर अकसीर औषधि है | कमल का फूल तापनाशक, वर्नाकर और तृप्तिकर है |

लाल कमल को कोकनाद, सफ़ेद को कुमुद या पुन्दारिक, काले कमल को नीलोत्पल अथवा ईंदिवर, पीले कमल को पीत्ताकमल कहतें है | कमल तीन प्रकार के है जो अलग अलग समय पर खीलातें है - रात्री विकासी, दिन विकासी और संध्या विकासी | कमलाक्ष नामक कमल के पत्ते छाते जैसे बड़े होतें है | जो वन भोजन में काम आतें है | झील के कमल को ही सरोज कहतें है | किसी पेड़ के नीचे उगानेवाले कमल को "नागफ़नी" कमल कहते है | जिसका सिर्फ एक ही पत् होता है और वह भी नाग की फ़न की तरह लगता है |

"कमल" शब्द बोलने से ही भगवान प्रसन्न होतें है | हर किसी को अपना सर्जन प्यारा होता है, चाहे वो कैसा भी हो ! भगवान विष्णु का स्व-सर्जन है इसीलिए भी "कमल" प्यारा है | उनके यही गुण हम इन्सानों में भी उतारा है | क्यूंकि हम सब भी परम ब्रह्म विष्णु और ब्रह्म यानी ब्रह्मा के वंशज ही है | भगवान को कमल प्यारा है इसी कारण से मानव शरीर के सभी अंगों को भी कमल शब्द से जोड़ दिया गया है | जैसे की - मुखकमल, हस्तकमल, नेत्रकमल, हृदयकमल, नाभिकमल, चरणकमल आदि | विष्णु का एक नाम है कमलकांत | भगवान स्वामीनारायण की आँखें कमल जैसी है | उनकी आँखों को एकाग्रता से देखो तो कमल का चित्र मन में उभरता है | इस कारण उनकी कीर्तन स्तुति में "कमल लोचन" शब्द मिलता है | स्वामीनारायण भगवान ही कृष्ण है और कृष्ण यानी राम और राम यानी भगवान विष्णु | इस तरह से जीव सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, सृष्टि के पालक विष्णु और सृष्टि संहारक शिव के ये तीनों स्वरूप मूल रूप में एक ही ईश्वर है, जिसे हम त्रिमूर्ती भी कहतें है |

कमल के फूल की कोई सुगंध नहीं होती | उसका एक अर्थ यह भी है कि ईस दुनिया से तो सभी को जाना है, मगर अपने नाम और प्रसिद्धि के लिएँ हम कुछ भी करने को तैयार हो जातें है | वास्तविकता यह है कि कुछ भी शाश्वत नहीं है | ईस तरह से देवी-देवताओं का प्रिय कमल का फूल सब के लिएँ सम्माननीय है | उसका एक अर्थ यह भी है की सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी का प्रगटीकरण कमल से हुआ है और खुद नरनारायण भगवान विष्णु की नाभि में से उसका उद्भव हुआ है | दूसरे अर्थ में देखें तो जिसका आधार भगवान की नाभि में हो, उस ब्रह्मा का और उस ब्रह्मा के द्वारा रचित यह सृष्टि का संचालन खुद ईश्वर के हाथों में है... | हमारे शाश्त्रो और पौराणिक आधारों पर तो यह देश आज भी विश्व में सर्वोपरित स्थान पर है | मगर हमें कमल से ये समझना चाहिए कि पानी के बीच रहने के बावजूद वह पानी से अलग है, उसकी खुद की ऊंचाई है | जो जलकमलवत है, वह दोष रहित है | सबके साथ रहकर भी अपना अलग स्थान और मान-सम्मान ! ईसी तरह संसार में रहकर भी कर्म के बंधनों से अलिप्त रहने का प्रतीकात्मक बोध भी हमें कमल से मिलता है | ईस तरह से कमल हमारा पूर्वज भी है |

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