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महत्ता गुण से, धन से नहीं

मात्र धन से कोई महान् नहीं कहलाता। जो विनयादि निर्मल गुणों से सम्पन्न हो, वही महान् कहा जाता है। अर्थ-कष्ट से पीड़ित होते हुए भी अनेक गुणों के आगार होने से वसिष्ठ ऋषि महान् माने गए; पर मण्डूक (मेढक) धनिक होने पर भी गुणों के अभाव में क्षुद्र ही बने रहे।

'महत्त्वं धनतो नैव गुणतो वै महान् भवेत्। सीदन् ज्यायान् वसिष्ठोऽभून्मण्डूका धनिनोऽल्पकाः।।'

 इस संबंध में कथा यह है कि वसिष्ठ ऋषि ने पर्जन्य (वर्षा)- की स्तुति की। मण्डूक उसे सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और उन सभी मण्डूकों ने, जो कि गोमायु (गाय की तरह शब्द करने वाले), अजमायु (अजा की तरह शब्द बोलने वाले), पृश्निवर्ण (चितकबरे) और हरित-वर्ण के थे, ऋषि को अपरिमित गायें दी। बाद में ऋषि ने उनकी स्तुति भी की। इस तरह विपुल धन होने और दान देने पर भी मण्डूक गुणविहीन होने से क्षुद्र ही रहे, जबकि गुणी वसिष्ठ प्रतिग्रहीता होने पर भी महान् माने गए।

 'गोमायुरदादजमायुरदात् पृश्निरदाद्धारितो नो वसूनि। गवां मण्डूका ददतः शतानि सहस्त्रे प्र तिरन्त आयुः।।' (ऋक. ७।१०३।१०)

 अर्थात् वसिष्ठ ऋषि ने त्रिष्टुप् छंद से मण्डूकों की स्तुति करते हुए कहा कि ‘‘गोमायु, अजमायु, पृश्नि और हरित सभी प्रकार के मण्डूकों ने हमें अपरिमित गायें दी। (मैं कामना करता हूँ कि) वे वर्षा-ऋतु में खूब बढे।

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पूनम मटिया की कविता



होता है ,जिंदगी लगती है कभी बेमानी सी

पैरों में जंजीर और धडकनों पर पहरा


हर छोटा सा गम भी लगने लगता है अथाह गहरा


किताब--जिंदगी कुछ उलझी हुई सी लगती है


हर्फ़ बेसाख्ता धुंधले से नज़र आते हैं


हाथों की लकीरों में बस कालिमा सी छा जाती है

खुशियाँ जो थी कभी चिलमन तले छिप जाती हैं


होता है अक्सर ,पर दोस्त मेरे


अंत नहीं ये जिंदगानी के सफर का

मौका नहीं मय्यत की चाह भी करने का

रुको! देखो पलट के


चुने थे फूल भी कभी राहों में

थी घास भी मखमली कभी इन कांटे दार गलियारों में

हर ख्वाब की ताबीर हो ,ये ज़रूरी नहीं

उम्र भर गम से सरोबार दिन –रात हों ये ज़रूरी नहीं


उम्मीद की किरणों को आने दो जहन के रोशनदानों से


फिर खिलेंगे फूल ,महकेगी जिंदगी खुशनुमा अरमानो से


Poonam Matia
MaryKay Beauty Consultant
Pocket - A , 90-B
Dilshad Garden
Delhi-110095

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इमरोज़ की कवितायें


(१)
ज़िंदगी तस्वीर भी है
और तक़दीर भी

मन चाहे रंगों से
बन जाये तो तस्वीर
अनचाहे रंगों से
बने तो तक़दीर.....
(२)
जब तू चली जाती है
ज़िंदगी ग़ज़ल हो जाती है
और जब तू आ जाती है
तो ग़ज़ल ज़िंदगी हो जाती है....

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रूद्राक्ष : जितुभाई लखतरिया


रूद्राक्ष - प्राकृतिक वनस्पतियों में रूद्राक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत के अधिकांश भागों में रूद्राक्ष पाया जाता है तथापि नेपाल, मलाया, इण्डोनेशिया, बर्मा आदि में यह प्रचुर मात्रा उपलब्ध होता है। भगवान शंकर के नेत्रों से रूद्राक्ष की उत्पत्ति मानी जाती है। वृक्ष में रूद्राक्ष फल के रूप में उत्पन्न होता है। आकार भेद से रूद्राक्ष अनेक प्रकार के होते हैं। रूद्राक्ष दाने पर उभरी हुई धारियों के आधार पर रूद्राक्ष के मुख निर्धारित किये जाते हैं। एकमुखी दुर्लभ हैं और दो मुखी से 21 मुखी तक रूद्राक्ष होते हैं।

जब कभी रविवार-गुरूवार या सोमवार को पुष्य नक्षत्र पर चंद्रमा हों तो ऎसे सिद्ध योग में रूद्राक्ष का पूजन कर, रूद्राक्ष को शिव स्वरूप मानकर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। रूद्राक्ष को माला या लॉकेट के रूप में धारण किया जाता है। तंत्र शास्त्रों के अनुसार रूद्राक्ष धारण
रने पर भूत-प्रेतजनित बाधाओं, अदृश्य आत्माओं तथा अभिचार प्रयोग जनित बाधाओं का समाधान होने लगता है।

रूद्राक्ष दाने को गंगाजल में घिसकर प्रतिदिन माथे पर टीका लगाने से मान-सम्मान तथा यश और प्रतिष्ठा बढ़ती है। विद्यार्थी वर्ग इस प्रकार टीका लगाएं तो उनकी बुद्धि एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।

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दो- ग़ज़ल : संजय मिश्रा 'हबीब'

(1)

धू धू जलता हुआ जहां, अखबार उठाया तो देखा.
सुर्ख आसमां, गर्म फिजां, अखबार उठाया तो देखा.

चिथड़ा बचपन रस्ता-रस्ता, खुली हथेली लिए खडा,
बाल दिवस पर चित्र नया, अखबार उठाया तो देखा.

असासे मुल्क से संगे वफ़ा, जाने किसने खींच लिया,
चंद सिक्कों पर खडा जहां, अखबार उठाया तो देखा.

सूरत से इंसान सभी, सीरत की बातें बोलें क्या,
बेदार बिलखती मानवता, अखबार उठाया तो देखा.

इश्क खुदा है सूना कहीं था, खुदा खो गया देखा आज,
हर दिल में नफ़रत के निशाँ, अखबार उठाया तो देखा.

हबीब मेरा हाकिम हुआ, फरमान अजाब सा ये आया,
सच कहना भी जुर्म बना, अखबार उठाया तो देखा.

(2)
जाने कैसे वह दीवाना हो गया.
जिसे समझते थे कि सयाना हो गया.

दर्द सभी अपने छिपाते छिपाते,
दर्द का वह शख्श पैमाना हो गया.

ख्वाहिशे खैरअंदेशी ही ना रखो,
फिर ना होगा, वह बेगाना हो गया.

शम-ए-हकीकत में आज ख़्वाबों का,
ज़हां जला ऐसे, परवाना हो गया.

छा गईं घटाएं फिर यादों की हबीब
आँखों को बरसने का बहाना हो गया.


In:

ज़ख्म - पंकज त्रिवेदी


कौन कहता हैं तुम नहीं हो यहाँ पर
यही ज़ख्म खड़े हैं झुककर यहाँ पर !

यह ज़ख्म भी बड़े शरारती हैं मेरे यार !
तुम्हारे न होने के बिच रुलाता है हमें !

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गझल : दुष्यंत कुमार



तुम्हारे पाँवों के नीचे कोइ ज़मीन नहीं,

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं |

मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ,
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं |

तेरी ज़ुबान हैं झूठी जम्हूरियत की तरह,
तू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं |

तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें,
अदीब वों तो सियासी हैं पर कमीं नहीं |

तुझे कसम है खुदी को बहुत हलाक न कर,
तू इस मशीन का पुर्ज़ा है, तू मशीन नहीं |

बहुत मशहूर है आयें ज़रूर आप यहाँ,
ये मुल्क देखने के लायक तो है, हसीन नहीं |

ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो,
तुम्हारी हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं |

(साये में धूप - से साभार )

In:

कविता - रंजना फतेपुरकर



तुम्हारे गीतों ने मेरे अहसासों को
कुछ इस तरह छुआ है
जैसे बरसती बूंदों ने
कोमल पंखुरियों को छुआ है
जब भी गुनगुनाती है फिजाएं
लगता है रंगभरी बदलियों ने
इन्द्रधनुष छुआ है
खिलती कलियों ने
मुस्कराहट को इस तरह छुआ है
जैसे दिल में छुपे जज्बात को
किसी मीठी याद ने छुआ है
जब भी हवाएं आई हैं
तुम्हारी महक लेकर
लगता है जैसे किसी हसीं सपने ने
पलकों को छुआ है


In:

धड़कन - रंजना फत्तेपुरकर




लचकती शाखों पर खिलता गुलाब
याद तुम्हारी दिलाता है
सोचते हैं तुम्हारा नाम गुलाब रख दें
पर डरते हैं शाम के ढलते ही
कहीं तुम बिखर न जाओ
कजरारी बदली में छुपा चाँद
याद तुम्हारी दिलाता है
सोचते हैं तुम्हारा नाम चाँद रख दें
पर डरते हैं सितारों के दीप बुझते ही
कहीं तुम छुप न जाओ
आओ तुम्हारा नाम धड़कन रख दें
ताकि जिन्दगी के रहते कभी साथ छोड़ न पाओ


In:

लकीरें - पंकज त्रिवेदी



प्रिय दोस्त,
तुम्हारा न होना,
तुम्हारी मौजूदगी का गवाह बनाता हैं
हर पल...
तुम चाहे कहीं भी हो, रहो... खुश रहो... !
दोस्ती का अर्थ अपेक्षा या अधिकार नहीं
यह तो जनता ही हूँ..
मगर -
दोस्ती का अर्थ यह भी हैं कि
अपने दोस्तों के कंधे
दुःख-दर्द को सहन करने के लिए
अपने सर को विश्राम दे सकता हैं
अगर कोई साथ देता भी हैं तो अलग बात हैं मगर
साथ देने के भी तरीके होते हैं...
जरूरतों पर बने रिश्तें अपनी मंज़िल से
भटकने में ही साथ देता है.....
दोस्त,
जब कोई अपना बनाकर साथ निभाता हैं तो
उनकी मर्यादाओं को नज़रंदाज़ करते हुए
साथ निभाना चाहिए..
ये दोस्ती का रिश्ता बड़ा अजीब होता हैं न ?
न छोड़ सकते हैं और न कुछ कह सकते हैं
क्योंकि-
कहें तो भी क्या कहें और किसे कहें?
दोस्ती की मिसाल पर यह दुनिया प्रेरित हैं
मगर एक पल रूककर सोचना होगा
दोस्त के फैले हुए हाथों को 'मांगना' नहीं कहते
हो सकता हैं - उन खुले हाथों की लकीरें
सिर्फ तुम्हारे लिए ही हों...!

In:


फादर्स डे स्पेशल

मैंने गाँव देखा हैं, बैल गाडी देखी हैं और हरियाले खेतों में लहलहाते गेहूं के बालियाँ तोड़कर होला खाया हैं | मेरे पास अभी भी प्रकृति की पूंजी संरक्षित हैं | मेरी नौ वर्ष की छोटी-सी बेटी के बाल सँवारकर, उनमें आँगन में खिले गुलाब के फूल से शोभा बढ़ा सकता हूँ ! उसका हंसता चेहरा मुझे दादी माँ की याद दिलाता हैं | कभी-कभी बाल सँवारते समय एकाध जुल्फ सरक जाएँ तब बेटी मीठा उपालंभ करे- "क्या, आप भी पापा....! लाईये मैं खुद ही सँवार लूं....|"
तब आँखों में नमी के साथ उसे देखूं तो लगता है, मनो मेरी बेटी बड़ी हो गयी हैं | वह मुझे छोड़कर चली जाएगी, इसी डर से आँसूं के धुंधलेपन के बीच देखकर उसे कहूं- "अब तेरी जुल्फ नहीं निकलेगी बेटा, मैं ध्यान रखूँगा |" इतना कहकर उसे अपने साथ खाना खिलाकर स्कूल तक छोड़ने के लिए मैंने अभी भी अपना समय बचा रखा हैं | मेरी बेटी मेरा आ...का....श.... हैं |
(झरोखा निबंध संग्रह से)
-पंकज त्रिवेदी

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खामोशी की आवाज़ - गायत्री रॉय


एक खामोश सी आवाज़ से हम शिकवा क्या करें,
बुत बनी हुई इस ज़िन्दगी से हम रुसवा क्या करें...

सुनाने दर्द का किस्सा हमें उसीने मजबूर बनाया
दिल के करीब बुला कर भी ना कभी दिल में बसाया...

चुक का रेला ये वक़्त का उसने कुछ अरमान यूँ सजाये,
चमकते सितारों की सोच में हम पर यूँ एहसान ही जताए...

वफ़ा से शिकवा भी कर ले वो हर चाल में मज़बूरी थी,
खफ़ा हुई इस ज़िन्दगी में भी ज़ीने की मज़बूरी थी...

तड़पती हर शाम उम्मीदों में निगाहे दरबदर बहकी,
उम्मींदों के इंतज़ार मे ही साया देख कर यूं चहकी ,

नाचते मोरे के आंसूं देखकर भी रोया हैं,
देखो मौत के साये में यह रूह भी सोई हैं

तारीफ़ की आदत हमेशा, शिकवा न कर पाएँगे
बहे आंसूं भले ही पर इनारा भी ना कर पाएंगे...

टूटी हुई कश्ती के लिए शिकायत किससे करें?
उठे तूफान भी हम खुदा से इनायत क्या करे...

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न लगने दें ग्रहण जीवन में - जया केतकी शर्मा

आदरणीय जया केतकी शर्मा जी "विश्वगाथा" परीवार के साथ सहसंपादक के रूप में कार्यरत तो हैं ही, साथ ही हिन्दी साहित्य की जानीमानी वेबपत्रिका "सृजनगाथा" की सहसंपादक बनकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहीं हैं | हम सब की शुभाकामनाएं और बधाई |
- पंकज त्रिवेदी

आभा की सास उसे समझा रही थी कि जो भी बाहर का काम है जल्दी निबटाकर खाना खा लो। फिर घर के बाहर मत निकलना, ग्रहण का सूतक शुरु हो जाएगा। एकसी अनेक बातें गर्भवती महिलाओं को समझाई जाती हैं। हम में से बहुत से लोग इन्हें दकियानूसी कहकर अनसुना भी कर देते हैं। कारण है कि ग्रहण शब्द को ही हम विपरीत अर्थ में लेते हैं। र्षा का मौसम है कहीं कम तो कहीं अधिक होगी। उसे ग्रहण का प्रकोप माने। अपनी दिनचर्या प्रतिदिन की तरह ही करें।

भारत तथा विष्व के अनेक देश 15 जून को पूर्ण चंद्र ग्रहण के दृष्य का लाभ उठाएंगे। अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया भारत और पश्चिमी आस्ट्रेलिया से इस पूर्ण चंद्र ग्रहण के नजारे को देखा जा सकेगा। भारत में चंद्रग्रहण 15 जून की रात 10.53 पर शुरू होगा और 16 जून की सुबह 03.32 तक रहेगा। ग्रहण एक खगोलिय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्त्रोत जैसे सूर्य और पृथ्वी के बीच जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है।

इनमें मुख्य रुप से पृथ्वी के साथ होने वाले ग्रहणों में उल्लेखनीय हैं, चंद्रग्रहण - इस ग्रहण में चाँद या चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी जाती है। ऐसी स्थिती में चाँद पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। ऐसा पूर्णिमा के दिन संभव होता है। ग्रहण का देसरा रूप जिससे हम परिचित हैं सूर्यग्रहण है, इसमें चाँद सूर्य और पृथ्वी एक ही सीध में होते हैं और चाँद पृथ्वी और सूर्य के बीच होने की वजह से चाँद की छाया पृथ्वी पर पड़ती है। सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन होता है।
पूर्ण ग्रहण तब होता है जब खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी पर प्रकाश पूरी तरह अवरुद्ध हो जाये। इसी प्रकार आंशिक ग्रहण की स्थिती में प्रकाश का स्त्रोत पूरी तरह अवरुद्ध नहीं होता। चंद्रग्रहण में चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी जाती है। ऐसी स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही होता है। 15 जून को चंद्र ग्रहण होने वाला है। इस ग्रहण का असर सभी लोगों के कार्यक्षेत्र और बिजनेस पर पड़ेगा अगर इस ग्रहण पर अपने प्रोफेशन के अनुसार उपाय किए जाए तो बिजनेस और कार्यक्षेत्र में होने वाले नुकसान से बच सकते हैं। आकाशीय ग्रहों नक्षत्रों के निश्चित दिशा एवं चक्र में भ्रमण करते हुए ग्रह एक-दूसरे के निकट जाते हैं, तो कभी अपने आकार से आंशिक तो कभी पूर्णतः ढंक लेते हैं। इसे को चंद्रग्रहण लगना कहा जाता है। सूर्य के अदृश्य होने को सूर्यग्रहण और चंद्र के अदृश्य होने को चंद्रग्रहण कहा जाता है।

1 जून 2011 को हुए ग्रहण से इस महीने में आसमान में तीन ग्रहण होंगे। इनमें दो आंशिक सूर्यग्रहण और एक पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। पहला घटनाक्रम 1-2 जून की रात को आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में हुआ, जिसे भारत में नहीं देखा जा सका। वर्ष 2011 में छः ग्रहण लग रहे हैं, जिनमें चार सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण शामिल हैं। वर्ष का पहला ग्रहण भी सूर्यग्रहण अल्प खग्रास था, जो चार जनवरी को लगा था। दो जून के सूर्यग्रहण के एक पक्ष बाद 15 जून को खग्रास चन्द्रग्रहण होगा, जबकि उसके एक पक्ष बाद एक जुलाई को खग्रास सूर्यग्रहण होगा। इस प्रकार एक महीने में तीन ग्रहण, एक चन्द्रग्रहण और दो सूर्यग्रहण होंगे।

आकाश में ग्रहण की घटनाओं में रुचि रखने वाले 15 जून को पूर्ण चंद्रग्रहण देखने का लाभ ले सकेंगे। 15 16 जून को खग्रास चंद्रग्रहण पड़ेगा, जो भारत में मध्य रात्रि ११:51 बजे प्रारंभ होगा, जो 2:30 मिनट पर खग्रास स्थिति में समाप्त होगा। इस समय तक चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया से ढंका रहेगा। सूतक 15 जून की दोपहर 2 :54 मिनट से शुरू होगा। इस समय प्राकृतिक अस्थिरता के कारण मानसून कहीं कम, कहीं अधिक प्रभावी होने की संभावना हैं।

ग्रहण से संबंधित अनेक भ्रांतियों के चलते पंडित और पुजारियों का भला हो जाता है। मसलन पहले से ही संचार माध्यमों के सहारे जनता को आगाह कर दिया जाता है कि इस ग्रहण पर तांबे के बर्तन में गेहूं भर के दान दें। इस ग्रहण पर शिवलिंग का गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करना चाहिए। कुछ तो अपना भरण पोषण करने के उद्देश्य से उसे उत्सव मान बैठे हैं घोषणाकर दी है ग्रहण पर्व पर हनुमान मंदिर में तेल दीपक लगाएं। किसी मंदिर में पीले कपड़े में चने की दाल का दान दें। मंदिर में सफेद कपड़े में चावल के साथ रूई और घी का दान देना चाहिए। हनुमान मंदिर, शनि देव या भैरव मंदिर में तेल का दीपक लगाना चाहिए।

कुछ इसी प्रकार से जानवरों का भी भला हो जाता है। इस ग्रहण पर गाय को हरी घास खिलाएं। और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें पढ़े-लिखे लोग भी मान ही लेते हैं कि ग्रहण मोक्ष उपरान्त पूजा पाठ, हवन- तर्पण, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र- अनुष्ठान आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे कि अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि जो संभव हो सके, करना चाहिए।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण में ग्रहण का कोई आध्यात्मिक महत्त्व हो अथवा हो किन्तु दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता। बडे बडे शोधकर्ता एवं खगोलविद इसके इन्तजार में रहते हैं। क्योंकि ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्रह्मंाड में अनेक विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होती हैं जिससे कि वैज्ञानिकों को नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है। 1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक ने ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था। आईन्स्टीन का यह प्रतिपादन भी ग्रहण के अवसर पर ही सही सिद्ध हो सका, जिसमें उन्होंने अन्य पिण्डों के गुरुत्वकर्षण से प्रकाश के पडने की बात कही थी। चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। संसार के समस्त पदार्थों की संरचना सूर्य रश्मियों के माध्यम से ही संभव है। यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी रश्मियों के प्रभावों को समझ लिया जाए तो समस्त धरा पर आश्चर्यजनक परिणाम लाए जा सकते हैं। सूर्य की प्रत्येक रश्मि विशेष अणु का प्रतिनिधित्व करती है और जैसा कि स्पष्ट है,प्रत्येक पदार्थ किसी विशेष परमाणु से ही निर्मित होता है। अब यदि सूर्य की रश्मियों को पूंजीभूत कर एक ही विशेष बिन्दु पर केन्द्रित कर लिया जाए तो पदार्थ परिवर्तन की क्रिया भी संभव हो सकती है। इस प्रकार देखें तो अन्य सामान्य ब्रम्हाण्डीय क्रियाओं की तरह यह भी एक क्रिया है। अतः इसे सामान्य माने और अंधविश्वासों से परे रहकर कार्य करें।