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Pankaj Trivedi
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कविता
कविता : ताने की चीटियाँ - पंकज त्रिवेदी
This entry was posted on 9:59 PM
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कविता
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खुशी का दिन आया..
पालना रखा था, तैयार हमने...
मगर
खाली हाथ ही लौटना पड़ा था
हमें... बिना वारिश
और उसी शाम को चिडिया ने भी
गंवाया था अपना एक
बच्चा... !
जिस पर रेंगने लगी थी
ताने की चीटियाँ.. !!
बहुत ही भावुक पंक्तियाँ. इस कविता में जान है, सजीव है, कोई काल्पनिकता कही से नहीं लगती. कहते हैं कि कविता लिखी नहीं जाती बल्कि जी जाती है. ये ऐसी ही जीवंत कविता है. ऐसा लगता है जैसे लेखक ने अपना कलेजा निकाल कर रख दिया है...बहुत भावुक हो गया मैं पढ़ते-पढ़ते. बड़ी मुश्किल से सम्हला. बस इतना ही कह पाऊंगा कि ''जा के पैर ना फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई.'' रचना को पढ़कर आपको आपकी ही एक कवता याद दिलाना चाहूँगा जो आपने बेटियों पे कही थी...बस उससे बड़ा वारिश और कोई नहीं हो सकता... कल्पना चावला, महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा जी, किरण बेदी ऐसी बेटियाँ हैं जिन्होंने अपने कर्म से अपने माता-पिता का नाम रोशन किया और एक अमिट आदर्श रखा बेटियों का जो दुनिया रहते सम्पूर्ण जगत में विश्व-गाथा का पर्याय बन गया और रहेगा. बेटियाँ जो वारिश है माता की सीख का, संवाहक है पिता के संस्कारों की. बेटियाँ ही दो घरानों के संस्कारों का समन्वय कर एक सपनो से भी प्यारी दुनिया का सृजन करती हैं..उनसे बड़ा वारिश और कोई नहीं हो सकता.
आदरणीया पंकज भाई साहब को शत-शत प्रणाम !
मेरे छोटू भाई नरेन्द्र,
कविता के मर्म की तह तक जाकर इतनी ही संवेदनात्मक प्रतिक्रया देने से मैं कुछ देर उस अतीत में खो गया...
जहां से ये कविता आई है |
आगे कुछ भी कहना, मेरे बस की बात नहीं | आशीर्वाद |
bhai saab pranam !
shayad ye kavita padhe ke baad laga ki main aap ke man ko choo sakta hoo . alag hi bimbo prateeko ke zariye ek bhavook drishay hamare samne rakha . ye shabd nahi saanse hai shayad .
naman !
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