कविता : ताने की चीटियाँ - पंकज त्रिवेदी

कोशिश...
रहती है एक छोटे से
घरौंदे को बनाने की...
तुम्हें याद है ? हम भी इसी तरह
मथते रहते थे...
एक-एक पैसे को जोड़ते और
जब हमारा घर बना तो
चिडिया ने शुरू किया
अपना घोंसला बनाने को...
फिर...
खुशी का दिन आया..
पालना रखा था, तैयार हमने...
मगर
खाली हाथ ही लौटना पड़ा था
हमें... बिना वारिश
और उसी शाम को चिडिया ने भी

गंवाया था अपना एक
बच्चा... !
जिस पर रेंगने लगी थी
ताने की चीटियाँ
.. !!