मैं जानता हूँ, तुम नाराज़ हो
द्दूर
हूँ तुमसे, और...

बात
भी कहा हो पाती है ठीक से...!
कल
से तुम रूठ गई !
काले
बादल छा गए है और
बारिश
मूसलाधार
बाहर
की ये ठंडक...?
गुस्से
से तुम सो गयी रोते रोते...
आंसूओं
के निशाँ तुम्हारे गोरे गालों से
जो
बहते अब सूख गए है...
मैं
बस
रातभर
जगता रहा, यहाँ ....!

24 , जूलाई, 2010