मैंने ही तुम्हें दो-तीन बार कहा

अब तुम जाओ
और तुम चली भी गई
तुम्हारे जाने के बाद मानों
अँधेरा सा छा गया
एक उदासी भरा ये कमरा
और कमरे में
घोंटते दम-सा बैठा मैं अकेलेपन की
चादर लपेटे
अचानक सिसकने लगा
आँखें बरस रही थी किसी
अकथ्य भय से
दोनों घुटनों पर अपना
सर छुपाकर बैठा, बिलखता
सिसकता मैं...
ऐसे में सर पर हाथ फेरती हुई
आ गई अचानक तुम !
माथे को चूमकर अपने
दोनों हाथो में लिएँ मेरा सर
अपनी भरी हुई छाती से दबाकर
खींच लेती
तुम नहीं मानोगी -
घुटन चली गई और चला गया वह
अकथ्य भय
सिसकियाँ बंद हो गई और
यह वही कमरा है -
जहां दम घूँटने लगा था मेरा
अब यही कमरे में
सुख के फूल बिछाएं हैं
तुम्हारे आने से न जाने
कितना कुछ बदल जाता है...