Posted by
Pankaj Trivedi
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चार लाइन
मैं डूबता रहा
क्या पता था कि तुम वो चांदनी हो?
मैंने तो तुम्हें सिर्फ जाते हुए देखा था
तुम भी तरसती रही लोगों की तरह
और मैं डूबता रहा हूँ सूरज बनकर
This entry was posted on 7:49 PM
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चार लाइन
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2 comments:
आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी
नमस्कार !
बहुत ख़ूबसूरत मुक्तक है …
क्या पता था कि तुम वो चांदनी हो …
… और मैं डूबता रहा हूँ सूरज बनकर !
कोमल जज़बात बांटने के लिए विनम्र साधुवाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेन्द्रजी,
आपने मेरे सर्जन में इतनी रूचि दिखाई और प्रतिक्रया भी दी... सौभाग्य है मेरे |
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