यादें और हकीकत

उदास शाम के किनारों पर

यादों की रुनझुन करती

पायलें खनक रही हैं

थिरकती हुई यादों को

देख मन को उदासी

के सायों ने घेर लिया है..

यादों की आँखों में हैरानी के साए हैं

हैरान आँखों से वो पूछती है

में तो यहाँ हूँ,खुश हूँ, थिरक रही हूँ

तुम्हारी आँखों में तलाश फिर ये किसकी है?

उदास सी राहों पर ये सवालों की कतार क्यूँ लगी हैं

मन बोला , री नादान…!

ये तलाश है उन हकीकतों की

जिनसे तू वजूद में आई

उन आषीशी हाथों की

जो अपनी नर्म छाँव से सदा मुझे ढके रहे

वो हाथ जो मेरी ऊँगली थाम मुझे

जीवन की राहों पर चलना सिखाते रहे

जिनकी आँखें अपने जीवन से अधिक मेरे जीवन को आतुर थी

सुरक्षा का वो घेरा आज न जाने कहाँ चला गया

तू तो वजूद में आ गयी मगर वो खो गया

तभी , बस ठीक तभी

आँखों में दो आंसू भर गए हैं

शायद परमात्मा के दूत हैं ....समझाने आये हैं

हकीकतों से यादों के वजूद होते हैं

यादों से हकीकतें नहीं बना करतीं....

मत ढूंढ उन हकीकतों को

जो रेत सी फिसल कर वक़्त की धारा में जा मिली हैं

हाथ थाम ले उन यादों का

और एहसासों की पगडण्डी पर

अपना जीवन सफ़र फिर शुरू कर

और मैं फिर यादों की थिरकन को देखने लगती हूँ

खामोश सी ...कुछ स्तब्ध सी...!