Posted by
Pankaj Trivedi
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चार लाइन
तड़पन
ये तड़पन ख़त्म कैसे भी नहीं होती भला
तुम हो कि बीजली सी चमक जाती हो
कैसे पिरोऊँ मैं प्यार के इस मोती को भला,
पल आधी पल में ही तुम यूं चली जाती हो
This entry was posted on 7:34 PM
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चार लाइन
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अप्रतिम अभिव्यक्ति... छुए-मुए अहसासों को बड़ी नाजुकता के साथ भावों की डोर से पिरोकर बड़ी सुन्दर सी रचना गूंथी है आपने..मन को एक मीठी सी सुगंध से सरोबार कर गई..साधुवाद ! प्रणाम !!
छोटी सी रचना लेकिन बहुत कुछ कह जाती है.. बहुत सुन्दर
वह कमाल है! चार पंक्तियों में दिल की कशक की इतनी गहन अभिव्यक्ति...आभार..
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