ये तड़पन ख़त्म कैसे भी नहीं होती भला

तुम हो कि बीजली सी चमक जाती हो

कैसे पिरोऊँ मैं प्यार के इस मोती को भला,

पल आधी पल में ही तुम यूं चली जाती हो