आज तुम्हारी
एक छोटी सी बात ने मुझे

ईस तरह विचलित कर दिया कि

मेरे पास कहने को कुछ नहीं !

तुम्हारे ईन शब्दों
के कारण
मेरा दिल कितना
दु:खी हो गया...
शायद तुम सही अर्थ में

मुझे जान नहीं पाई हो.. !!

*
* *
मेरे दिल ने कहा
, मुझे ही --
"क्यूं प्यार करते हो इंसानियत से...

मैंने तुम्हारे शरीर में

स्थान लिया
, वही मेरा अपराध?
मेरे कारण तुम्हें क्या नहीं मिला
?
तुम्हारे पास संवेदना है
, भावनाओं का स्फूट है,
अभिव्यक्ति है
, शब्द है, दृष्टी है, ज्ञान है,
आकांक्षा है
, ईच्छा है, लड़ने की ताकत है -
यह सब मेरे कारण तो है...

सोचो जरा... अगर मैं नहीं
तो तुम कौन हो?"
*
* *
अब मैं अपने दिल को क्या जवाब दूं
?