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Pankaj Trivedi
In:
कविता
लोग आएँगे आंधी बनकर......!
वो ही तुम्हारा प्यार है
किसीने भर दिया है बारूद तुम्हारे ज़हन में
नहीं तो तेरे मुंह से कोइ शब्द प्यार के सिवा
निकलता ही कहाँ?
तू तो प्यार की गंगा थी
जो निरंतर बहती रहती थी और
अपनी पवित्रता से दूसरों की सेवा करती
आज लगता है कि -तुम्हारे भीतर बहती
वह गंगा भी मैली हो गई है....
आज लगता है कि -तुम्हारे भीतर बहती
वह गंगा भी मैली हो गई है....
क्यूंकि -
हमारे प्यार पर दुनिया कतराती थी
इंसानी ताक़त तो प्यार के आगे फिकी थी
मगर इंसानों की शैतानी के आगे
प्यार पर भी फीकेपन के पतर चढ़ गएँ
अब तू दिखती तो है, मगर
धुंधली सी .....
अपनेआप को टटोलकर देखो तुम
जहां मिट्टी का ढेर लगा है, वह मेरे
प्यार की कब्र है मगर मैं मरा नहीं हूँ ......
जीते जी कब्र बनाई गई है मेरी
इसी दुनियावालों ने
जो आज तुम्हें घीरे हुएँ हैं
तुम्हारा वह प्यार, वह किताबें,
अपने गुरूजी की वह माला...उसके बीच में
एक-एक मनके जैसा तुम्हारा
इंतज़ार....
आज ईतनी कठोर क्यूं ? जानता हूँ तुम्हें....
मगर तुम भी अंदर ही अंदर मर रही हो
तेरी रूह तड़प रही है हौले हौले
शरीर तो एक दिन ख़त्म होगा
रूह कभी मरती नहीं, पगली !
तुम खुद से ही बात करती रहो,
अपनी रूह को जगाती रहो
ज़हन में भरे उस बारूद का सफाया हो
खुद को जानो कि तुम कौन हो
तुम ही कह रही थी मुझे, याद है...?
आज वोही बात मैं तुम्हारे लिएँ दोहराता हूँ
खुद को समजना मुश्किल होता है, मगर
असंभव नहीं, जानो अपनेआप को...
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!
This entry was posted on 6:44 PM
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कविता
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मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!
बहुत ही सुन्दर शब्दों की माला आपने कविता के रूप में प्रस्तुत की है. दिल से बधाई भाई.
अपनेआप को टटोलकर देखो तुम
जहां मिट्टी का ढेर लगा है, वह मेरे
प्यार की कब्र है मगर मैं मरा नहीं हूँ ......
जीते जी कब्र बनाई गई है मेरी
इसी दुनियावालों ने
जो आज तुम्हें घीरे हुएँ हैं
तुम्हारा वह प्यार, वह किताबें,
अपने गुरूजी की वह माला...उसके बीच में
एक-एक मनके जैसा तुम्हारा
इंतज़ार..वाह जी वाह बहुत खूब शब्दों का तालमेल...सुन्दर ..इन्सान भी के है ? ?? कहाँ कहाँ सोच लेता है और अक्भी कभी कितना जी लेता है और ये
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!!!!!!!!!!!! दुन्य में कोई जेने दे तब न ......बहुत सुन्दर जी पंकज जी बधाई आप को सुनदर गाथा का परिचय करने केलिए और शेयर करने केलिए !!!!!!!!!Nirmal Panei
नमस्कार !
अलोक जी को प्रणाम !
निदा साब को आदाब !
बेहतरीन लगी , आभार कि हमे पढने का सौभाग्य मिला .
साधुवाद !
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!
बहुत देर तक चुप हो इन पंक्तियों को निहारता रहा.....
अपनेआप को टटोलकर देखो तुम
जहां मिट्टी का ढेर लगा है, वह मेरे
प्यार की कब्र है मगर मैं मरा नहीं हूँ ......
जीते जी कब्र बनाई गई है मेरी
इसी दुनियावालों ने.....
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!
बहुत ही सुन्दर मन को अंदर तक छू जाने वाली भावभीनी अभिव्यक्ति..हर पंक्ति अपने आप में एक सुन्दर नज़्म है..बधाई
eceelent
किसीने भर दिया है बारूद तुम्हारे ज़हन में
नहीं तो तेरे मुंह से कोइ शब्द प्यार के सिवा
निकलता ही कहाँ?
आदरणीय पंकजजी,प्रेम-पिपासा को अभिव्यक्त करती आपकी रचना दिल को छू जाती है..सत्य कहा है किसी ने..``प्रेम ही ईश्वर है``
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!
बहुत सुन्दर रचना ... और बहुत भावपूर्ण
बहुत सुन्दर.............
sundar rachna!
शरीर तो एक दिन ख़त्म होगा
रूह कभी मरती नहीं, पगली !
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!
बहुत ही सुंदर और अन्तेरात्मा को छूती हुई पंक्तियाँ....शक्रिया टेग करने के लिए....
भाई साब
प्रणाम !
अपनी रचनाओं में अनाम प्रेयसी को सामने रख सुंदर कल्पना आप शब्दों में ढालते है , प्रेयसी का चित्र सामने उभर आता है , कही सुंदर रूप में तो कही श्रृंगार करती , कही मन पे चोट पहुचाती , , प्रेम का कोई विशेष रूप नहीं होता , हां इक बात अवश्य कि आप कि कविताएँ अगर इक साथ पढो तो यूँ लगेगा मानो श्रंखला बध हो .
साधुवाद !
नरेशचन्द्रजी, ट्रवेल, सुनील, मनोजजी, कैलाशचंद्रजी, नाविनजी, चेतनजी, डॉ. नूतन, उड़नजी, अनुपमाजी और रेणु... आप सबका मैं ह्रदय से आभारी हूँ |
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