तुम आज जिस तरह से छटपटाने लगी
वो ही तुम्हारा प्यार है
किसीने भर दिया है बारूद तुम्हारे ज़हन में
नहीं तो तेरे मुंह से कोइ शब्द प्यार के सिवा
निकलता ही कहाँ?
तू तो प्यार की गंगा थी
जो निरंतर बहती रहती थी और
अपनी पवित्रता से दूसरों की सेवा करती
आज लगता है कि -तुम्हारे भीतर बहती
वह गंगा भी मैली हो गई है....
क्यूंकि -
हमारे प्यार पर दुनिया कतराती थी
इंसानी ताक़त तो प्यार के आगे फिकी थी
मगर इंसानों की शैतानी के आगे
प्यार पर भी फीकेपन के पतर चढ़ गएँ
अब तू दिखती तो है, मगर
धुंधली सी .....
अपनेआप को टटोलकर देखो तुम
जहां मिट्टी का ढेर लगा है, वह मेरे
प्यार की कब्र है मगर मैं मरा नहीं हूँ ......
जीते जी कब्र बनाई गई है मेरी
इसी दुनियावालों ने
जो आज तुम्हें घीरे हुएँ हैं
तुम्हारा वह प्यार, वह किताबें,
अपने गुरूजी की वह माला...उसके बीच में
एक-एक मनके जैसा तुम्हारा
इंतज़ार....
आज ईतनी कठोर क्यूं ? जानता हूँ तुम्हें....
मगर तुम भी अंदर ही अंदर मर रही हो
तेरी रूह तड़प रही है हौले हौले
शरीर तो एक दिन ख़त्म होगा
रूह कभी मरती नहीं, पगली !
तुम खुद से ही बात करती रहो,
अपनी रूह को जगाती रहो
हो सकता है तुम्हें शांति मिले और
ज़हन में भरे उस बारूद का सफाया हो
खुद को जानो कि तुम कौन हो
तुम ही कह रही थी मुझे, याद है...?
आज वोही बात मैं तुम्हारे लिएँ दोहराता हूँ
खुद को समजना मुश्किल होता है, मगर
असंभव नहीं, जानो अपनेआप को...
मैं तो बुझी हुई शम्मा को जलाने आया था
मुझे क्या पता था कि लोग आएँगे
आंधी बनकर......!