गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में ऐतिहासिक ईमारतों को ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है। हम जहां कहीं से भी गुंजरते हैं वहीं कोई न कोई गाथा पथ्थरो में अंकित दिखाई देती है।


ऐसा ही पौराणिक शिल्पकारी का उत्कृष्ट नमूना है ऐतिहासिक नवलखा मंदिर, धूमली! जामनगर जिले के भाणवड़ तहसील के मोडाणा के पास हराभरा बरड़ा का जंगल है, जिसे 'छोटा गिर अभयारण्य' भी कहा जाता है। नंजदीक ही जामबरड़ा से उत्तर दिशा में बसा है यह गांव 'धूमली'


सुरेन्द्रनगर जिले के पांचाल क्षेत्र के चोटिला शहर से दक्षिण दिशा में आनंदपुर नामक सुंदर नगर बसा हुआ था। कुछ पुरातत्वविद्दों
का मत है कि यह शहर मैत्रक काल के आरंभ में बसा होगा। वर्तमान में यह आनंदपुर-भाड़ला के नाम से ही प्रचलित है। भारत के स्वतंत्र होने से पहले कई शताब्दियों तक यह शहर काठी जाति के लोगों के हाथ में रहा था।

दूर से देखने पर लगता है कि यह मंदिर करीब दो सौ साल पहले बनाया गया होगा। मगर नजदीक जाते ही यह काफी पुराना लगता है। इस मंदिर को देखकर लगता है कि उसका पुनरोद्धार भी किया गया होगा। हो सकता है कि इस मंदिर को मुस्लिमों ने ध्वंस कर दिया हो और बाद में काठी जाति के क्षत्रियों ने इसका पुनरोद्धार करवाया हो।

इस मंदिर के बार में एक लोककथा है। कहा जाता है कि इस नवलखा मंदिर को बाबरा भूत ने एक ही रात में बनाया था। मंदिर की चारों ओर नग्-अर्द्धनग् नव लाख मूर्तियों के शिल्प हैं। पूरा मंदिर सोलह कोने वाली जगति (नींव) के आधार पर बनाया गया है। यह शिवमंदिर सोलंकी काल में बने प्रमुख महाकाय मंदिरों में से एक है, ऐसा हम कह सकते हैं। पुनरोद्धार हुए इस नवलखा मंदिर का पुराना-मूल भाग आज भी सीना तानकर खड़ा है, जब कि नये हिस्से में परिसर काफी छोटा है और आसपास ऊंचे मकान होने के कारण तसवीर लेना कठिन है।

धूमली में फिलहाल जो अवशेष प्राप्त हैं, वे बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के माने जाते हैं। जेठवा राज्य की सब से पहली राजधानी धूमली पर्वतमाला के बीच में संकरी घाटी में स्थित थी। उसके कई खंडहर आज भी मौजूद हैं। जेठवा राज्य के इन मंदिरों का निर्माण कार्य दसवीं शताब्दी में हुआ था, ऐसी लोक मान्यता है।

यह मंदिर गुजरात के द्वादश ज्योतिलिंग में से एक सोमनाथ मंदिर की तरह ही काफी ऊंचा है। इस नवलखा मंदिर की छत और गुम्बज के भीतरी हिस्से में जो सुशोभन और नक्काशी दिखाई देती है वह अलग-अलग कालखंड की नंजर आती है। मंदिर के अंदर बड़ा सा सभा मंडप, गर्भगृह और प्रदक्षिणा पथ अन्य मंदिरों की भाँति ही है। इस मंदिर में प्रवेश के लिए तीन दिशाओं में प्रवेश चौकियां है। तीनों दिशा में पगथार भी हैं। तीन खिड़कियों से हवा और प्रकाश के कारण पर्यटकों के लिए इस मंदिर को देखना काफी रोचक अनुभव माना जाता है।

मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और उसके ईर्द-गिर्द प्रदक्षिणा पथ है। इस नवलखा मंदिर की छत का गुम्बज अष्टकोण आकार का है। उनके ऊपर विविध पक्षिओं की आकृति पथ्थरों में तराशी गई हैं, जिसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। सभा मंडप की दोनों मंजिलों के स्तम्भों के उपरी हिस्से को वैविध्यपूर्ण आकार दिया गया है। उसमें ंखासतौर से मानव मुखाकृति, हाथी की मुखाकृति, वृषभ, मत्स्य युगल, सिंह की मुखाकृति, वानर, दो मुखाकृति वाला वानर, हंस युगल और कामातुर नारी के शिल्प कलात्मक दृष्टि से बड़े नमूनेदार हैं।

मंदिर के पीछे पीठ क्षेत्र में दो हाथियों का शिल्प है, जिसमें दोनों को अपनी सूंढ के द्वारा आपस में लड़ाई-मस्ती करते दिखाया गया है। मंदिर के बाहरी क्षेत्र में उत्तर दिशा में लक्ष्मी-नारायण, दक्षिण दिशा में ब्रह्मा-सावित्री और पश्चिम में शिव-पार्वती के शिल्प दिखाई देते हैं।

इस मंदिर के स्थापत्य में हमें भरपूर वैविध्य दिखायी देता है। धूमली में जेठवा साम्राज्य की दसवीं से बारहवीं-तेरहवीं शताब्दियों के बीच की समृद्धि को मंदिर की शिल्पकारी बंखूबी प्रदर्शित करती है, यह आज भी खंडहरों को देंखकर लगता है।
संदर्भ - पत्थर बोले छे! 1988 / चित्र : मुकेश त्रिवेदी