Posted by
Pankaj Trivedi
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नज़म
खड़ा हूँ मैं !
दोस्त ! आज मिलाया है तुमसे मुझे
ईश्वर ने...पता नहीं क्या मकसद है?
न सोचा कभी, न मान सकता हूँ मैं
कुछ तो होगा रिश्ता ये जानता हूँ मैं
तू कौन है और क्यूं मिली हो मुझसे
बात यह नहीं, बस तुम हो और हूँ मैं
तुम्हारा रूठना और मनाना हमें क्यूं?
क्यूं जिद्द अभी भी क्यूं मंजिल हूँ मैं
बात मानने की नहीं, न समझाने की
कुछ हो रहा है बस, यूंही खड़ा हूँ मैं
This entry was posted on 2:46 AM
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नज़म
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बहुत सुन्दर तरीके से कविता में एक प्रश्न उठाया गया - जाने क्यों ईश्वर ? एक प्रश्न -
डॉ. नूतन, सच कहा? प्रश्नों के जाल में है जीवन....
तू कौन है और क्यूं मिली हो मुझसे
बात यह नहीं, बस तुम हो और हूँ मैं
क्या बात हे ? जीवन हे तो .....एक बात में जानती हूं की हम इस दुनिया में लकीरों में लिखा के लाते हे ऒर वही निर्घारित योजना से चलते हॆ.
मिलने पर इतना द्वंद्व क्यों ?
"तुम्हारा रूठना और मनाना हमें क्यूं?
क्यूं जिद्द अभी भी क्यूं मंजिल हूँ मैं
बात मानने की नहीं, न समझाने की
कुछ हो रहा है बस, यूंही खड़ा हूँ मैं "
गहरे प्रेम के भाव हैं इस कविता में.. प्रश्न पूछने से प्रेम को स्थापित किया जा रहा है.. बधाई एवं शुभकामना !
आदरणीय पंकजजी,मधुर और प्रेमाल कृति है आपकी,शुभकामनाओं के साथ बस इतना ही कहूँगा -अपने प्रभुनिर्धारित प्रेयस-प्रेयसी से मिलने के इत्तेफाक का ही नाम "ज़िन्दगी का प्रेमगीत है"..जब दो प्यार करनेवाले प्रभुकृपा से मिल जाएँ तो एक-दूसरे के इंतज़ार में खड़े- खड़े सारी उम्र गुज़र जाती है..आपके स्नेह और आशीर्वाद की प्रतीक्षा में..आपका सुभेक्षक..chetan pandey
Kyaa baat hai Pankaj jee... Bahut khoob...!! :-)
मेरे दोस्तों,
इस कविता में मैंने जीवन के कीं प्रश्नों के बीच जी रहे प्रेम की अभिव्यक्ति को प्रश्नों के द्वारा गहराई देने का प्रयत्न किया था | आप सब का प्यार मिलता है तो बड़ी खुशी मिलती है... धन्यवाद
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