दोस्त ! आज मिलाया है तुमसे मुझे

ईश्वर ने...पता नहीं क्या मकसद है?

न सोचा कभी, न मान सकता हूँ मैं

कुछ तो होगा रिश्ता ये जानता हूँ मैं

तू कौन है और क्यूं मिली हो मुझसे

बात यह नहीं, बस तुम हो और हूँ मैं

तुम्हारा रूठना और मनाना हमें क्यूं?

क्यूं जिद्द अभी भी क्यूं मंजिल हूँ मैं

बात मानने की नहीं, न समझाने की

कुछ हो रहा है बस, यूंही खड़ा हूँ मैं