रचनाकार परिचय
नाम : योगराज प्रभाकर
जन्म : 18 नवम्बर 1961 , पटिआला (पंजाब)
शिक्षा : एम.ए (भाषा विज्ञान), एम.बी.ए
सम्प्रति: एक प्रतिष्ठित कम्पनी में कमर्शियल मैनेजर
साहित्य क्षेत्र: ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा, आलोचना !
भाषा क्षेत्र : हिंदी, पंजाबी और उर्दू
प्रधान सम्पादक : ओपन बुक्स ऑनलाइन
मेरे हाथों की लकीरों का ये मंज़र क्यों है ,
मेरे पैरों के मुक़द्दर में ये चक्कर क्यूँ है ! (1)


हाशिये पे यहाँ जंगल का धनुर्धर क्यूँ है !
सुर्ख़ियों में सदा शहर का आर्चर क्यूँ है, (2).


क्यूँ है छोटी ये मेरी भूख से थाली मेरी,
कोई देता नही इस बात का उत्तर क्यूं है !(3)


याद रहता है सदा चित्र मोनालीसा का,
भूल जाता हमें अपना ही बस्तर क्यूँ है ! (4).

नौजवाँ कोई भगत सिंह न होना चाहे,
रोल मॉडल सभी का ही तेंदुलकर क्यों है ! (5)

जब कभी वक़्त मिले सोचना ऐ माँ गँगे,
तेरे होते हुए ये मीलों का बंजर क्यूँ है ! (6)


तेरे दिल में तो फ़क़त जंग ही की चाहत है,
फिर तेरे हाथ में सफ़ेद कबूतर क्यूँ है ! (7)


तेरी नगरी में सुकूँ अमन दिखे है हर सू ,
तो छुपा लोगों के दस्ताने में ख़ंजर क्यूँ है ! (8)

बाढ़ ले आई जटायों से निकलकर गंगा,
इस तबाही को देख मौन सा शंकर क्यूँ है ! (9)

क्यूं ज़मीं से जुड़ा इंसान अनाड़ी है यहाँ.
जो हवा में उड़े कहलाए धुरंधर क्यूँ है ! (10).

लाख ढूँढा कोई पोरस ही दिखाई न दिया,
अब ये जाना कि दुखी आज सिकंदर क्यूँ है ! (11).

क्यूँ दिखाई नही देता है तुझे राम लला,
तेरी आँखों में बसा आज भी बाबर क्यूँ है ! (12).