Posted by
Pankaj Trivedi
In:
कविता
हाँ, तुम ही..... !
आधी रात हुई है
आँगन सूना सा
कुछ सितारे चमक रहे है....
बादल घिरे है...
ठंडी हवा से मन मुस्कुराता है
जैसे नशीला बहाव
शांत खडा ये पारिजातक
ठंडी लहर के साथ करवट बदलती
टहनियाँ तुम्हारी याद दिलाती
सफ़ेद चादर से फैले फूलों के देखकर
तुम्हारी सादगी और शांत-स्वस्थ मन
जो जीवन की कठिनाईयों से
लड़ने के लिए मुझे स्थिरता देता है
हर पल...
कानाफूसी करती हुई...
मगर तुम हमेशा कहती हो...
यही जीवन है, जिसके बीच हमें
रहना है खुश...
तुम नहीं जानती...
मेरे लिए तो तुम हो...
यही अहसास जीने का मकसद है
हर्षोल्लास से भरे
तुम्हारे विचारों ने
हमेशा मुझे खुश रखा
जीने का नया तरीका और बदल दी
मेरी पूरी ज़िंदगी को तुमने..
जिसे मैं चाहता था...
वही तुम हो...
हाँ, तुम ही..... !
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This entry was posted on 11:01 AM
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कविता
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4 comments:
शांत खडा ये पारिजातक ---- तुम्हारी याद दिलाती -- सफ़ेद चादर से फैले फूलों के देखकर -- तुम्हारी सादगी और शांत-स्वस्थ मन -- really marvelous. so sensitive ---- Thanks
बहुत सुंदर भाव हें मेरे घर में भी एक पारिजात का पेड़ है ये फूल बहुत अच्छे लगते हें |बधाई अच्छी प्रस्तुति के लिए
आशा
मन को सात्विक शांति देने वाली बहुत सुन्दर रचना..जीवन में खुश रहने का नायब तरीका..बहुत सुन्दर...
तुम नहीं जानती...
मेरे लिए तो तुम हो...
यही अहसास जीने का मकसद है
हर्षोल्लास से भरे
तुम्हारे विचारों ने
हमेशा मुझे खुश रखा
जीने का नया तरीका और बदल दी
मेरी पूरी ज़िंदगी को तुमने..
जिसे मैं चाहता था...
वही तुम हो...
हाँ, तुम ही..... !सुन्दर विवेचन आप ka पंकज जी
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