याद है मुझे !
याद है मुझे !
पिछला सावन
जमकर बरसी थी घटाएँ
मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ
फूल, पत्तियां मानो
लौट आया हो यौवन

सब-कुछ हरा-भरा
भीगा-भीगा सा
ओस की बूँदें
हरी डूब से लिपट
मोतियों सी
बिछ गई थी
हरे-भरे बगीचे में
याद है मुझे !

गिर पडा था मैं
बहुत रोया
माँ ने लपक कर
समेट लिया था
उन मोतियों को
अपने आँचल में
मेरे छिले घुटने पे
लगाया था मरहम
पौंछ कर मेरे आँसू और
मुझे बगीचे के

खिले फूलों को दिखा कर
कहा था
देखो ! कितने अच्छे लग रहे हैं
मुस्कुराते हुवे
तुम भी अच्छे लगते हो
ऐसी ही हँसते हुवे
मोतियों की माला
आँचल से निकल
छिटक पड़ी थी
हरे-भरे बगीचे में
उस पल
पूरा सावन सिमट आया था
मेरे घर के बगीचे में
याद है मुझे !
***

आंसू की नदी

गिरता हुवा
झरना देखकर
पर्वत ने कहा
मेरे सीने में भी
आँसू की नदी बहती है
नदी ने सुन लिया
एक धुँध सी उठी
पूरा जंगल
नम हो गया !!
***