Posted by
Pankaj Trivedi
In:
अतिथि-कविता
दो कवितायेँ - नरेन्द्र व्यास
याद है मुझे !
याद है मुझे !
पिछला सावन
जमकर बरसी थी घटाएँ
मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ
फूल, पत्तियां मानो
लौट आया हो यौवन
सब-कुछ हरा-भरा
भीगा-भीगा सा
ओस की बूँदें
हरी डूब से लिपट
मोतियों सी
बिछ गई थी
हरे-भरे बगीचे में
याद है मुझे !
गिर पडा था मैं
बहुत रोया
माँ ने लपक कर
समेट लिया था
उन मोतियों को
अपने आँचल में
मेरे छिले घुटने पे
लगाया था मरहम
पौंछ कर मेरे आँसू और
मुझे बगीचे के
खिले फूलों को दिखा कर
कहा था
देखो ! कितने अच्छे लग रहे हैं
मुस्कुराते हुवे
तुम भी अच्छे लगते हो
ऐसी ही हँसते हुवे
मोतियों की माला
आँचल से निकल
छिटक पड़ी थी
हरे-भरे बगीचे में
उस पल
पूरा सावन सिमट आया था
मेरे घर के बगीचे में
याद है मुझे !
पिछला सावन
जमकर बरसी थी घटाएँ
मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ
फूल, पत्तियां मानो
लौट आया हो यौवन
सब-कुछ हरा-भरा
भीगा-भीगा सा
ओस की बूँदें
हरी डूब से लिपट
मोतियों सी
बिछ गई थी
हरे-भरे बगीचे में
याद है मुझे !
गिर पडा था मैं
बहुत रोया
माँ ने लपक कर
समेट लिया था
उन मोतियों को
अपने आँचल में
मेरे छिले घुटने पे
लगाया था मरहम
पौंछ कर मेरे आँसू और
मुझे बगीचे के
खिले फूलों को दिखा कर
कहा था
देखो ! कितने अच्छे लग रहे हैं
मुस्कुराते हुवे
तुम भी अच्छे लगते हो
ऐसी ही हँसते हुवे
मोतियों की माला
आँचल से निकल
छिटक पड़ी थी
हरे-भरे बगीचे में
उस पल
पूरा सावन सिमट आया था
मेरे घर के बगीचे में
याद है मुझे !
***
गिरता हुवा
झरना देखकर
पर्वत ने कहा
मेरे सीने में भी
आँसू की नदी बहती है
नदी ने सुन लिया
एक धुँध सी उठी
पूरा जंगल
नम हो गया !!
***
This entry was posted on 9:47 AM
and is filed under
अतिथि-कविता
.
You can follow any responses to this entry through
the RSS 2.0 feed.
You can leave a response,
or trackback from your own site.
Posted on
-
5 Comments
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
सराहनीय रचना है .
बहुत सुन्दर कविताएँ ..
aansu ki nadi ke vimb hridaysparshi hain...
dono rachnayen atyant prabhavshali!
regards,
haan bachpanki ghata aur chata yaad hai mujhe ab nahi dekh pata hoon .
एक धुँध सी उठी पूरा जंगल नम हो गया !! hoth silgaye hai
व्यास जी,
एकदम नई जमीन पर कविता लिखी है आपने, बधाई।
Post a Comment