आइए दीपोत्सव मनाएं . . . . नरेन्द्र व्यास
मनुष्य उत्सवप्रेमी है। जहाँ रहता है, वहीं उत्सव अवश्य मनाने लग जाता है। प्राकृतिक और ऐतिहासिक रूप से पर्व के दो रूप होते हैं। कुछ पर्व प्राकृतिक रूप से घटने वाली घटनाओं के कारण से मनाये जाते हैं। कुछ त्यौहारों का कारण कोई ऐतिहासिक घटना बन जाती है तथा कुछ पर्व ऐसे होते हैं, जिनमें दोन घटनाओं का समावेश होता है। प्रत्येक पर्व अपना धार्मि, सामाजिक और ऐतिहासिक और सांस्कुतिक महत्व रखता है। हमारे देश में नेक पर्व मनाये जाते हैं। श्रावणपूर्णिमा, जन्माष्टमी, विजयादशमी, दीपोत्सव, मकरसंक्रान्ति, होलिकादहन इत्यादि। हमारे त्यौहारों में प्रमुख त्यौहार दीपावली है। भारत में इस का विशेष महत्व है। इसके अलावा ईद, कि्रसमस और गुरुनानक जयंती आदि भाईचारे की दृष्टि से मनाए जाने वाले पर्व हैं। दीपावली पर्व शरद ऋतु के आरम्भ में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। वर्ष में एक शाम ऐसी आती है कि जब पूरा देश रोशनी में डूब जाता है। दिये अब भी रोशन होते हैं, लेकिन कम। उनका स्थान बिजली के रंगीन बल्ब ले रहे हैं। दीपावली के उत्साह और जोश में कोई फर्क नहीं। दीपोत्सव भारत के कोने-कने में अनेक कारणों से मनाया जाता है। राजा बलि का विष्णु को भूमि दान, महाकाली का भगवान शंकर के स्पर्श से क्रोधाग्नि शान्त, श्रीरामजी द्वारा रावण का वध कर अयोध्या आगमन, श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर का वध, विष्णु द्वारा नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकशिपु का वध, २४वें जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वांण, स्वामी शंकराचार्य का जन्म, स्वामी रामतीर्थ का जन्म, महर्षि दयानन्द सरस्वती का बलिदान दिवस आदि। महाभारत के बाद दीपावली के वास्तविक स्वरूप को छोडकर अने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा। वर्षा ऋतु में वर्षा कारण घरों में पानी भर जाता है, गन्दगी भी बढ जाती है, मकानों में नमी जाती है, अनेक कीटाणु पैदा हो जाते हैं। नए अन्न जाते हैं। सर्दी की ऋतु तथा अन्न की खुशी में और मकानों तथा सभी स्थानों की शुद्धि के लिये दीपावली का पावन पर्व मनाया जाता है। दीपावली वाले दिन पकवान बनाये जाते हैं। मकानों को सफाई करके सजाया जाता है। आतिशबाजियाँ, पटाखे जलाए जाते हैं। जीवन में फैले हर प्रकार के अंधकार का दमन कर प्रकाश करने प्रेरणा देने वाला दीपावली का त्यौहार आता है में सन्देश देने के लिए। तमसो मा ज्योतिर्गमय हम प्रकाश की ओर बढें यह प्राकृतिक परिवर्तन हमें प्रेरणा दे रहा है कि जीवन में कुछ दोष जाते हैं तो उन दोषों का अन्त कर दें। जीवन में एक नवनिर्माण की क्रान्ति लाएं। दीपावली के समय लोग घरों को साफ करते हैं। सफेदी और उज्ज्वल करते हैं, दीपक जलाते हैं। पर क्या इसी तरह संस्कारों पर, आचरण में छाई अनेक बुराइयों को उसे भी नहीं साफ करना चाहिए ? दीपक आज वास्तव में मन के अन्दर रखने की आवश्यकता है। जिससे अपनी संस्कृति, अपने संस्कार और अपने राष्ट्र को गुमराह होने से बचा सकें। यदि समय रहते हम जागृत हुए तो दीपावली की रात को जले दीपकों के बुझते ही और भी अधिक अंधकार फैला देता है, वैसे ही हमारे चारों ओर कुसंस्कार और असभ्यता का अंधकार फैल जाएगा। आज दीपावली के दिन हमें इस क्यों का उत्तर खोजना होगा।