आशा निराशा के चौराहे पर, हुएँ प्रज्वल्लित दीप प्रणय के...
कुछ मदमाते कुछ मुस्काते, पलकों को बोझिल कर जाते
कभी ह्रदय को झंकृत करते, कभी सहवास में घुलमिल जाते

धूमिल होते पथ जब सरे, पंछी उड़ते पंख पसारे
भरे नयन के मदिरालय से, छलकते अधरों के प्याले

कभी प्रफुल्लित हो लहराएँ, कभी संकुचित हो बलखाएं

कभी कालिमा में प्रकाश बन, अमृतरस का पान कराएँ