बड़ी खामोशी से पाला है, आशियाना हमने |

ग़म के सायों से लदे पेड़, झुके है आँगन में ||


हमारी फ़ितरत ही कहाँ, ज़माने से ख़फा होना |

अँगारे से खेलना, मुस्कुराना, अच्छा भी नहीं ||


घर तुम्हारे भी जल रहे हैं, देखो लोग सहमे हुएँ |

दिल की गहराई से दबी, टीस एक सुनाई देगी ||


हसीं आती है हमें, भरोसे की बात पर |

खंजर है तुम्हारे हाथ में, और गोली है पीठ में ||


अब गांधी नहीं रहे, जो अहिंसा की करें बात |

आज़ाद है हम कहते हैं, फिर भी है क्यूं गुलाम !!