1) मुझे स्वीकार नहीं
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मुझे वो गुंबद मत दिखा..
वो मीनारें
वो इबादतगाहें
उनसे जुडी कहानियाँ
युद्ध के किस्से
मज़हब की खाल में घुसे
वो सियासी हमले
वो फ़ौजी छावनियाँ
वो फ़ौज़ी अभियान
घोडों की टापों से रौंदा गया
धरती का एक बडा भू-भाग
जिसे नाम दिया था
तुम्हारे दंभ ने - दुनिया
उद्घघोषित किया था तुमने अपने से पूर्वकाल को
अंधकार और जहालत..
मैं डरता हूँ उन खूनी किस्सों से
सीना पीटती सालाना छातियों से
गली-चौराहों पर इंसानी खून बहाते जवान खू़न से
कभी न खत्म होने वाली इस रिवायत से
बढती हुई दाढ़ियों से
वक्त को बदलने से रोकने की
तुम्हारी दुस्साहसी कवायद से
तुम्हारे अंहकार से
तुम्हारे अंतिम सत्य से
तुम्हारी कब्र की प्रताड़ना के प्रवचनों से
मृत्युपरांत तुम्हारे ईश्वर के पैशाचिक रुप से
उसके यातना-शिविर, उसकी लहु-पिपासा से
मैं नहीं डरता तुमसे
मैं डरपोक नहीं
मैं बस डरता हूँ तुम्हारे खतरनाक इरादों से.
तुम्हारे चलाए ये डर के उद्योग कब तक चलेंगे ?
कब समाप्त होंगे ये जहालत, ये अज्ञान ?
घमण्ड, भ्रम का दुष्प्रचार ?
घिनौनी सियासत का खोटा सिक्का कब तक चलेगा..?
ये आदिकालीन मूर्छा कब टूटेगी जिसके तहत
सजा रखे हैं तुमने
दुनिया को जीत लेने के ख़्वाब..?
पीढी-दर-पीढी सौंप रहे हो
इस दिवास्वप्न की छड़ी
जिसे ढोते-ढोते इंसान के जहन में
बन चुका है नासूर
ये सिलसिला, ये दुष्चक्र
अब मुझे स्वीकार नहीं.
क्योकि फ़तह सियासत है
और फ़न्हा होना है मज़हब
तुमने इस सार्वभौम मर्म को उलट दिया है
यह, मुझे स्वीकार नहीं.


2)
ग़ज़ल

गली गली अजब तमाशा हो गया है
हिमाकत जैसे सवाल पूछना हो गया है.
वायज़ का ये कहना है कि जियो जैसे मैं कहूँ
उठायी मैंने जो उंगली तो फ़साना हो गया है.
वो भरता रहा ज़हर मेरी रगों में अपने फ़िरके का
छोडा जो फ़िरका मैंने तो मुआशरा बेगाना हो गया है.
वो कहते रहे कि आयेगा अमन का इंकलाब एक दिन
और बात कि रस्मे जीस्त मुश्किल निभाना हो गया है.
जब से हुई है नाफ़िज़ हुकुमते मुल्लाह मेरे शहर में
इंसानियत के नातों से घर मेरा अंजाना हो गया है.
गिर गिर के "शम्स" खुद संभल जायेगा एक दिन
रोना हुआ है ज़्यादा कम हंसना हंसाना हो गया है.
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Shamshad Elahee Ansari
शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"
126, Blackfoot Trail (Basement) Mississauga ON
Canada L5R 2G7
Res: 905 890 5893