गुजरात का सुरेंद्रनगर जिला | यहाँ से 5 किलोमीटर दूर मूल वढवाण शहर में कईं एतिहासिक धरोहरे हैं |

उनमें से एक माधावाव |

लोकमान्यता के अनुसार वाव में पानी के लिएँ बलि दी गयी थी, उसके बाद से आज भी इस वाव में बारहों माह पानी भरा रहता है | लेकिन अब इसका उपयोग न होने के कारण इसके आसपास रहने वाले इसमें कूदा करकट फेंकते है | माधावाव के निर्माण पर यहाँ एक लोककथा प्रचलित है |

वढवाण में 1275-96 तक सोलंकी राजा सारंगदेव का शासन था | उनके मंत्री माधवजी थे | जो काफी दयालु जनता के प्रिय थे | वढवाण में पानी की किल्लत रहती थी | कोसों दूर पानी की तलाश में लोगों को भटकना पड़ता था | लोगों की परेशानी माधवजी से देखी नहीं गई तो उन्हों ने वढवाण में वाव बनवाने का तय किया | सन 1294 में माधवजी ने वाव का निर्माण कराया |

काफी गहराई के बाद भी वाव में पानी नहीं आया | इसके बारे में ब्राह्मणों से सलाह-मशविरा किया गया तो बात सामने आई कि नवयुगल के बलिदान के बाद ही वाव में पानी आएगा | यह बात सुनकर माधवजी चिंतित रहने लगे, लेकिन उनके पुत्र से यह देखा नहीं गया | माधवजी के पुत्र ने वाव में पानी लाने के लिएँ बलिदान देना तय कर लिया | माधवजी के पुत्र का कुछ समय पहले ही विवाह हुआ था |

पानी के लिएँ उन्हों ने बलिदान दिया और उसके बाद वाव लबालब हो गई | सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद आज भी माधावाव लबालब है | लेकिन बदकिस्मती यह है कि अब यह सिर्फ कूडादान बनाकर ही रह गई है | देश में ऐसी कईं एतिहासिक धरोहर को हम या हमारा पुरातत्त्व विभाग ठीक से संभाल नहीं पाते हैं, यही करूणा है | * (बावडी को गुजराती में वाव कहते हैं |)