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Pankaj Trivedi
In:
अतिथि-लघुकथा
सुनिल गज्जानी की दो-लघुकथाएं
{१}
यथार्थ
''माँ कितना अच्छा होता कि हम भी धनी होते तो हमारे भी यूही नौकर-चाकर होते ऐशोआराम होता''
''सब किस्मत कि बात है, चल फटा फट बर्तन साफ़ कर, और भी काम अभी करना पड़ा है!''
माँ-बेटी बर्तन मांझते हुए बातें रही थी !
''माँ! इस घर की सेठानी थुलथुली कितनी है, और बहुओं को देखो हर समय बनी-ठनी घूमती रहती हैं, पतला रहने के लिए कसरतें करती है .. भला घर का काम-काज, रसोई का काम, बर्तन-भांडे आदि माँझे तो कसरत करने कीज़रूरत ही नहीं पड़े, है ना माँ?
''बात तो ठीक है.., बस हमे भूखो मरना पड़ेगा!"
''सब किस्मत कि बात है, चल फटा फट बर्तन साफ़ कर, और भी काम अभी करना पड़ा है!''
माँ-बेटी बर्तन मांझते हुए बातें रही थी !
''माँ! इस घर की सेठानी थुलथुली कितनी है, और बहुओं को देखो हर समय बनी-ठनी घूमती रहती हैं, पतला रहने के लिए कसरतें करती है .. भला घर का काम-काज, रसोई का काम, बर्तन-भांडे आदि माँझे तो कसरत करने कीज़रूरत ही नहीं पड़े, है ना माँ?
''बात तो ठीक है.., बस हमे भूखो मरना पड़ेगा!"
{२}
सौदा
''साहब! मैंने ऐसा क्या कर दिया जो मुझे बर्खास्त कर दिया'' वृद्ध चपड़ासी बोला!सौदा
"तुमने तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया था, जिससे मुझे आघात पंहुचा'' अधिकारी बोला!
''साहब ! मैं समझा नहीं?''
''ना तुम बारिश में कई दिनों से भीग कर ख़राब हो रहे फर्नीचर को महफूज़ जगह रखते और ना ही नया फर्नीचर खरीद की जो स्वीकृति मिली थी, वो ना निरस्त होती. अधिकारी ने लाल आँखें लिए प्रत्युत्तर दिया.
This entry was posted on 7:50 AM
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सुनील जी की दोनों ही लघुकथाएँ आज के सामाजिक परिवेश की दो अलग-अलग विकृतियों को सामने लाती है. अंत में कमाल का पंच छोडती पहली कथा ने अधिक प्रभावित किया तो दूसरी कथा कम शब्दों में गहरे तक असर छोडती है. सुनील जी की लेखनी में उनका चिर-परिचित अंदाज़ भी मिला.. साधुवाद सुनील जी ! बधाई !
सुनिलजी,
आपने "विश्वगाथा" पर पहलीबार अपनी लघुकथा देकर हमारा सम्मान बढाया | लघुकथा में आपका सर्जन उम्दा ही हैं | हम आभारी हैं |
यहाँ पर टिपण्णी देना कैसे छूट गया .. क्यूंकि ये लघु कथा लघु होने के साथ साथ वस्तुस्तिथि के सन्देश पहुचाती है.. मुझे बहुत अच्छी लगी थी ...मैंने घर में भी सुनाई .. पर आज फिर इस पेज पर पहुची.. टिपण्णी देर से है ..क्षमा चाहूंगी..किन्तु कहानी बहुत सुन्दर है..
sunil ji kee ye kathayen vishvgatha shukrvaar ko chrachamnch par hoga..
बहुत ही अच्छी कहानियां , सुनील |
सारगर्भित , शिक्षाप्रद!!
भाई सुनील गज्जानी जी, दोनों लघु-कथाएं हर दृष्टि से बेहतरीन है - दिल से मुबारकबाद देता हूँ आपको !
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