मौत को मैने बहुत करीबी से देखा है

जिन्दगी को बहुत रंगीनियत से जीया है

बात जीने मरने की नहीं है यारो यहाँ

जीते जी मरते लोगों को मैंने देखा है

बात न होने की फैलती है अफवाह बनकर

सच को भी अफवाह में बदलते हुए देखा है

मौजूदगी की परवाह किसे है यहाँ यारों

सूखे पत्ते को पेड़ से गिरते हुए देखा है

सहजता से आ जाये तो अच्छा हैं यारों

ग़र कविता हो या मौत हमने तो देखा है