'विश्वगाथा' के सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार |
हमने 1-सितम्बर (जन्माष्टमी) को ही ब्लॉग शुरू किया और पत्रिका का स्वरूप तो डेढ़ महिने से ही ! आप सबके स्नेह की दौलत आज सिर्फ 2 -महिने में ही 'विश्वगाथा' ने अपनी अलग छवि बनाई है | आप लोगों का साथ न होता तो ये संभव नहीं होता| मैं आप सबका आभारी हूँ |

अभी तक हमने साहित्य-संस्कृति-इतिहास-परम्परा और अन्य विधाओं को सम्मिलित करने की कोशिश की है | हमारे देश के मानव जीवन में कईं रंग भरे हैं | कईं धर्म और रीति-रिवाज भी है | धर्म, पर्व और मेले हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है | अन्य भाषाओं के अनुवाद से हमारी एकता और वैचारिक क्षमता भी बढ़ेगी | संकुचितता की कोठारी से निकालकर हम खुली हवा में जी सकेंगे | बुराईयों के बीच भी अच्छाई है | हमें उसे संभालकर जीना है और आनेवाली नस्ल को उम्दा विरासत भी देनी है |

मैं चाहूँगा कि आप भी ज्यादा से ज्यादा दोस्तों को इस मंच पर ले आएं | प्रस्थापि और नए रचनाकारों ने 'विश्वगाथा' को अपना ही समझकर सहयोग दिया है | मेरे साथ मेरे प्रिय - श्री नरेन्द्र व्यासजी और सम्माननीया जया केतकी जी का अमूल्य योगदान रहा है |