राष्ट्र भाषा हिन्दी : कल, आज और कल - पंकज त्रिवेदी
किसी देश की अपनी एक अलग राष्ट्र भाषा होती है | जिसके गौरव के लिए हर आदमी सोचता रहे, यही उस भाषा के अस्तित्त्व का प्रमाण सिद्ध करता है | भाषा और संस्कृति सिक्के के दो पहलू समान है | किसी भी राष्ट्रभाषा का कार्य एकता के सूत्र में पिरोनेवाले मोतीयों से कम नहीं होता | पिछले 500 से ज्यादा वर्षों तक हमारे देश की भाषाएँ प्राकृत, संस्कृत, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी भी रही है |
मातृभाषा, व्यक्ति को अपनी जन्मभूमि के प्रति ह्रदय की भाषा सिखाती है | जिसके लिए सिर्फ दिल की धड़कन ही जरुरी है | जब कि राष्ट्रभाषा तो हमारे पूरे राष्ट्र की एकता, समानता और गौरव का प्रतीक बनकर हमारे जीवन के धागों को बुनती है | और उसी के बलबूते पर किसी भी राष्ट्र का नया निर्माण होता है |
जापान और चीन जैसे कईं देशों ने अपनी ही भाषा का सदैव प्रयोग किया है | फिर भी उनकी तरक्की में कभी भी बाधा नहीं आई | हमारे कुछ राजनीतिज्ञों ने हिन्दी भाषा को केन्द्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है | फिर भी राजनीतिज्ञों को बख्शा भी नहीं जा सकता | दक्षिण भारत में जो प्रांतीय भाषा का प्रयोग हो रहा है, वो तो ठीक है मगर राष्ट्रीय फ़लक पर भी वहा लोग हिन्दी का अस्वीकार कर रहे हैं, वो तो हम जानते ही है न !
यह बात पहली नज़र में राजकीय मुद्दा भले ही लगे, फिर भी भाषा विज्ञानी, साहित्यकार, शिक्षक और संस्कृति के प्रहरियों को कुछ ठोस कदम उठाना जरुरी हो गया है | अगर यही बात चलती रही तो सभी प्रांत के लोग अपनी ही भाषा को महत्त्व देने लगेंगे | मुम्बई में भी "हमची मुम्बई" के मुद्दे के साथ "मराठी मानुष" की मराठी भाषा भी प्रभावक है | राजनीतिज्ञों की नीति-अनीतियों के कारण भी जनमानस में दुविधा बढ़ती है और राष्ट्रीय एकता की माला के मोती बिखर जाते हैं |
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है और हर भारतीय के

अमरीका में कुछ अरसे से हिन्दी के प्रति सम्मान की भावना से देखा जाता है | वहां की 27 युनिवर्सिटीओं में हिन्दी अभ्यास के लिएँ सुविधा उपलब्ध की गयी है | अपनी अंग्रेजी को समृद्ध करने के लिए उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा के शब्दों का विपुल मात्रा में उपयोग शुरू कर दिया है | भारत की कईं प्रादेशिक भाषाओँ में से बंगाली, तमिल, मराठी और मलयालम के बहुत से शब्दों को वहां के शब्दकोश में स्थान दिया गया है | शायद सन 2000 में ही "वेबस्टर" की "न्यू वर्ल्ड कोलेज डिक्शनरी" में भारतीय भाषाओँ के शब्दों को शामिल करके "हेल्लो" और "हाय" के बदले "नमस्ते" शब्द चमकता हुआ दिखाई देता है | जैसे कि "हमिर्टेज " के बदले "आश्रम" ही कहा जाता है | अमरिकन शब्दकोष में "हरिजन" शब्द के अर्थ में बताया गया है कि - "भारत में वह अछूत थे और बाद में अनुसूचित जातिओं में शामिल किए गए | चेंबर ऑफ़ 21st सेंचुरी डिक्शनरी, कोलिन्स मिलेनियम एडिशन और ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में भी हिन्दी शब्द दिखाई पड़ते हैं |
यह भी सच है कि दुनिया के सरेराश 43.7 करोड़ लोग हिन्दी भाषा में बात करते हैं | हिन्दी अथवा हिन्दुस्तानीयों ने उर्दू और हिन्दी दिल से सम्मान दिया | दोनों का व्याकरण एक ही आधार पर है | मगर उर्दू, फारसी लिपि में और हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है | अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी भाषा का विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाया है | फिर भी कईं साहित्यकारों और भाषा विज्ञानीओं ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है | हमारे राष्ट्र की विविध भाषा और विदेशी भाषा में से हिन्दी अनुवाद विपुल मात्रा में आज भी हो रहा है | मगर हमारी भाषा में से विदेशी भाषा में कम मात्रा में अनुवाद हो रहे हैं |
हमारे साहित्यकारों ने अंगरेजी, पोलिश, जर्मन, हंगेरियन, डेनिश तथा चीनी जैसी कईं भाषाओँ का अनुवाद करके विश्वस्तरीय एकता का परिचय दिया है | हमारे पास भी बड़ी मात्रा में संस्कृति-साहित्य का खजाना है | क्यूं न हम उसे विश्व के सामने रखें? हाल ही में जानीमानी लेखिका शोभा डे अपने पुस्तकों के गुजराती अनुवाद के लोकार्पण कार्यक्रम में अहमदाबाद आई है | उन्हों ने गुजराती चेनल को दिए इन्टरव्यु में कहा कि - "मै अंग्रेजी में पढी और लिखती हूँ | मगर प्रादेशिक भाषा की समृद्धि न होने के कारन मैंने क्या गँवाया है, यह अब समज में आया" | गुजरात में थीं तो कहा - "गुजराती भाषा में इतने बड़े साहित्यकार है मगर एक कमी यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुस्तक मेले में उच्च स्तरीय अनुवाद के साथ प्रादेशिक साहित्यकारों को उपस्थित रहना चाहिए |" शोभा डे ने ये बहुत ही बड़ी बात कह दी है |
हमारे रोज़मर्रा के व्यवहार में प्रांतीय भाषा का ही उपयोग होता है | मगर केंद्र सरकार के हस्तगत जो भी कचहरी या संस्थाएं है, कम से कम उसमें तो हिन्दी भाषा का प्रयोग अवश्य होना चाहिए | मगर वहां सिर्फ सूचना लिखी जाती है, अमल खुद कर्मचारी भी नहीं करते | अंग्रेज शासन के दौरान तो अंग्रेजी का ही वर्चस्व था | मगर "भारत छोडो" आन्दोलन के वक्त राजनेताओं ने हिन्दी में ही जन

अब तो सायबरयुग में कंप्यूटर का बोलबाला है | उसमें भी हिन्दी भाषा का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है | हम कंप्यूटर में प्रांतीय और अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का ज्यादा ही उपयोग करेंगे तो राष्ट्रीय भावना का संतोष मिलेगा और देश की एकता में भी हम शामिल हो जायेंगे |
किसी भी युग में परिवर्तन के लिए राष्ट्र का कूटनीतिज्ञ, कुशाग्र बुद्धि प्रतिभा, राजनीतिशास्त्र के प्रणेता और आजीवन शिक्षक चाणक्य आज भी प्रस्तुत है | विश्व आज प्रलय की चोखट पर खड़ा है | हम सब मिलकर चाणक्य की दिखाई राह पर चलाकर राष्ट्र की एकता का नया निर्माण करें | क्यूंकि, आज हमारा भारत उस बुलंदी को छू रहा है, जहां पर विश्व के प्रत्येक देशों को महासत्ता बनाकर छूना है |
हमारे जवानों ने अपने प्रेम की बलि चढ़कर भी राष्ट्रप्रेम को महत्त्व दिया है | राष्ट्र के लिए शहीद हुए हैं | उनकी भी बीवी थी, बच्चे थे | और हम खुशी बाँट रहे थे | अब हम सबको साथ मिलकर ही आगे बढ़ना होगा | हमारे पास प्यार के मोटी और राष्ट्रभाषा का धागा होगा तो अवश्य साथ-साथ रह पाएँगे | हम वह करके दिखायेंगे | हम भरातीय है, हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है और हमें उन पर नाज़ है |
"ॐ", गोकुलपार्क सोसायटी, 80 फूट रोड, सुरेंद्रनगर-363002 Gujarat
pankajtrivedi102@gmail.com
This entry was posted on 10:40 AM and is filed under आलेख . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.
0 comments:
Post a Comment