वह चुप थी ... ज्योत्सना पाण्डेय
वह चुप थी,
उसकी आंखों में कुछ प्रश्न बोलते रहे.
उम्र सोलह अभी थी और
पिता समझा रहा था----
बेटी!
आपा जो रिश्ता लायी हैं,
लड़का परदेसी है.
उम्र में मुझसे ज़रा सा छोटा है
वो कहती हैं----
"तू खुश रहेगी,
तेरा भाई भी पढ़ लिख जाएगा,
तेरी बीमार माँ का खर्च भी वो उठाएगा.
थोड़ा घबरा रहा हूँ,
परदेस में तू कैसे रह पाएगी?
क्या तू उसके साथ निभा पायेगी?"
वह चुप थी.
उसकी आंखों में- - - - -
उसका मौन उसकी स्वीकृति मानी गई
ब्याह कर वो चली परदेस गई- - -
अभी गुज़रे थे चंद रोज़ कि,
एकदिन,
विवाह का शव लिए झुके कन्धों पे,
वह लौट आई.
आपा चिल्ला रही थीं---------
"इसने किसीको चैन से जीने न दिया,
तंग आकर ही शौहर ने इसे तलाक दिया!"
फ़िर भी--------
वह चुप थी
उसकी आंखों में- - - - -
वह आई थकी-थकी सी
चुप चाप वही बैठ गई.
पिता का क्रोध, खीझ और तिरस्कार झेलने के लिए--------
"तुझे मेरी मान मर्यादा, भाई कि शिक्षा,
माँ की बीमारी का ख्याल न आया?
तूने तो मुझे जीते जी दफनाया!"
वह चुप थी,
उसकी आंखों में- - - - -
बिना कुछ बोले, वह उठी,
मेहर की रकम पिता के हाथ पर रख दी.
फिर कांपते पैरों से सरकती,
भीतर चल दी.
उसकी टांगों के बीच फफक पड़ा उसका दर्द,
और पीछे खींचती गई
एक रक्त की लकीर!
वह चुप थी,
अब उसकी आंखों में कोई प्रश्न नही था.
प्रश्न अब झर रहे थे
पिता की आंखों से......
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24 comments:
सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत मार्मिक रचना , बधाई
उफ़!निर्ममता की हद थी और वेदना ने रौंगटे खडे कर दिये…………कितनी सूक्ष्मता से नज़र डाली है………………कितना कटु सत्य !!!!
aisi hi sachchaiparak kavitaon ki jaroorat hai hindi sahity ko...
kori laffaji ya kalpana ke pankhon se ham samaj ko kuchh nahi de sakte ..
samaj ko iyna dikhati hai aapki marmik rachna...
sarthak 100pratishat...
उफ़ !!
khamoshi ko khamosh hi rahne de
ओह ....बहुत मार्मिक चित्रण...नि:शब्द कर दिया है ..
maarmik............
samvedna ka shaashwat aur sakaar swaroop sajeev kar diya aapne
aapko badhaai !
ओह
आदरणीय
श्री देवेन्द्र नाथ मिश्रा जी टेकनिकल कारण से कमेन्ट नहीं दे पाएं तो "फेसबुक" पर दिया था, जिसे यहाँ सादर...
Devendra Nath Misra December 5 at 2:12am Reply • Report
बहुत हृदयस्पर्शी तथा मार्मिक कविता. कई बार विवाह का सम्बन्ध केवल एक आर्थिक समझौता हे इ बन पाता है. और लड़की की पीड़ा कोई समझने की कोशिश ही नहीं करता. ज्योत्स्ना को इस
कविता के लिए बधाई |
ye kavita kisi ka sach na bane... ye duaa hai.
अत्यंत मार्मिक रचना....बधाई !
Ak Ladki ki Majaburi ki kahanee .... Hraday ko chhu layaa ....
पिता और पुत्री के संवाद के शब्दों की मार्मिक रचना जी ...बहुत है सुन्दर वेवेचन किया है ...बधाई जी !!!!!!!!!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 07-12 -2010
को छपी है ....
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
बहुत सार्थक और अच्छी सोच ....बधाई।
maarmik abhivyakti!
अरब देशों के अमीर कहे जाने वाले पुरुष हमारे देश में आकर कम उम्र की गरीब लडकियों से विवाह के नाम पर यह घिनौना छल करते हैं, इस कार्य में तथाकथित समाजसेविका सहयोग करती हैं...बात पुरानी हो गयी है पर यह दुखद सत्य ही रचना का मूल है.....
इसे पढने के लिए आप सभी को धन्यवाद!
-सादर
bahut maarmik ! heart touching ... ye chup rahana .. marmaantak peeda aur boye hue aansun ! kya kahen is samaj ki ? kis se karen shikayat ?
adbhut rachna!
विवाह का शव लिए झुके कन्धों पे,
kamal kartin hain aap to..........
बहुत ही अच्छे से बयान की है जीवन की मार्मिक सच्चाई
अत्यंत मार्मिक, समाज में बहुतायत सच्ची घटनाए जिन्होनें अनगिनित सुकुमारियों की जिन्दगी जीने ही नही दी. आज इन सब संकीर्णताओं से उबरना होगा व् समाज के ऐसे वर्ग को भी उबारना होगा I यही आज की सच्ची सेवा है I
दर्दनाक सच्चाई ! उफ़ ....उफ़.......उफ़ !
बेहद मार्मिक लिखा आपने ! लिखते वख्त कितना जी कड़ा किया होगा आपने !
समझना मुश्किल है !
maarmik.
achi kavita pad>h kar hamein tahreek milti hai , achi kavita ki yehi visheshta hai .
हरियाली ओंर आग तमाशा
.......................................
इक रुत कहने लगी जंगल से
रात जो चल कर उस पगडण्डी से
रोती बिलाकती
सर को झुकाए
घोंघट काढ़े
इक दुल्हन की
गुजरी थी डोली
न जाने किस हाल में होगी
इस जंगल के पार
किसी छोटे से गाँव में
....................
हरे भरे ओंर
सब से ऊँचे पेड ने अपने सर को उठाया
दूर बहोत ही दूर
नदी के पार ये देखा
आग की लपटों में लिपटा
इक बदन
नदी के तट की और
दौड़ रहा था
गाँव के वासी
बस चौपाल से देख रहे थे
आग तमाशा........................
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