तीन कवितायें - डॉ. सुधा ओम ढींगरा (यू. एस. ए )
(१) पतंग
परदेस के आकाश पर
देसी मांजे से सनी
आकाँक्षाओं से सजी
ऊँची उड़ती मेरी पतंग
दो संस्कृतियों के टकराव में
कई बार कटते -कटते बची
शायद देसी मांजे में दम था
जो टकरा कर भी कट नहीं पाई
और उड़ रही है .....
विदेश के ऊँचे- खुले आकाश पर ....
बेझिझक, बेखौफ ....
(२) प्रतीक्षा
पुस्तकों से लदी- भरी
दुकान में
ग्राहकों को देख कर
कोने में दुबकी पड़ीं
धूल से सनी
दो तीन हिन्दी की पुस्तकें
कमसिन बाला सी सकुचातीं
विरहणी सी बिलखतीं
अँगुलियों के स्पर्श को तरसतीं
पाठक प्रेमी के हाथों में
जाने की लालसा में
प्रतीक्षा रत हैं
पर अंग्रेज़ी दादा का वर्चस्व
प्रेमियों को
उन तक पहुँचने नहीं देता......
(३) सच कहूँ
सच कहूँ,
चाँद- तारों की बातें
अब नहीं सुहाती .....
वह दृश्य अदृश्य नहीं हो रहा
उसकी चीखें कानों में गूंजती हैं रहती |
उसके सामने पति की लाश पड़ी थी,
वह बच्चों को सीने से लगाए
बिलख रही थी ....
पति आत्महत्या कर
बेकारी, मायूसी, निराशा से छूट गया था |
पीछे रह गई थी वह,
आर्थिक मंदी की मार सहने,
घर और कारों की नीलामी देखने |
अकेले ही बच्चों को पालने और
पति की मौत की शर्मिंदगी झेलने |
बार -बार चिल्लाई थी वह,
कायर नहीं थे तुम
फिर क्या हल निकाला,
तंगी और मंदी का तुमने |
आँखों में सपनों का सागर समेटे,
अमेरिका वे आए थे |
सपनों ने ही लूट लिया उन्हें
छोड़ मंझधार में चले गए |
सुख -दुःख में साथ निभाने की
सात फेरे ले कसमें खाई थीं |
सुख में साथ रहा और
दुःख में नैया छोड़ गया वह |
कई भत्ते देकर
अमरीकी सरकार
पार उतार देगी नौका उनकी |
पर पीड़ा,
वेदना
तन्हाई
दर्द
उसे अकेले ही सहना है
सच कहूँ,
प्रकृति की बातें
फूलों की खुशबू अब नहीं भरमाती......
डॉ. सुधा ओम ढींगरा (यू. एस. ए )
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14 comments:
बेहद प्रभावशाली कविता.. मन को छू गईं तीनो कवितायेँ..
bahoot sundar rachana
पहली कविता के बारे में क्या कहूं? :)
दूसरी हिन्दी की दशा को और तथाकथित आधुनिक समाज के मन में उसके घटते सम्मान को बखूबी दर्शाती है..
तीसरी कविता मर्म को ना सिर्फ स्पर्श करती है बल्कि अंतर्मन को झंकझोर देती है... एकदम सटीक तरीके से मंदी निर्मित एक विधवा के दर्द को उकेरा गया है..
कवयित्री की इन तीनों रचनाओं को अनुपम कहें तो कम ही होगा.. आपका आभार..
Sudha ji, Badhaai
Seedhee - saadee bhasha mein seedhe - saade
bhaav hon to kavita mun ko bharpoor sparsh
kartee hai . Sudha Dheengra ji kee in teenon
kavitaaon mein seedhee - saadee bhasha bhee
hai aur seedhe - saade bhaav bhee . Ve mun
ko sparsh kiye binaa rah sakee hain . Unkee
pahlee kavita to kamaal kee hai . Satyam ,
shivam aur sundaram kee amit bhavna usmein
nihit hai. Shubh kamnaaon ke saath .
अत्यंत ही संवेदनशील रचनाएँ...मन को अंतर तक स्पर्श करती ...पहली कविता अपनी माटी की सुगंध से रची बसी...अपनी संस्कृति की पतंग को सबसे ऊपर उड़ाने की भावना युक्त...डॉक्टर सुधा साहिबा को अपार शुभ कामनाएं ...
सादर अभिनन्दन...
अत्यंत ही संवेदनशील रचनाएँ...मन को अंतर तक स्पर्श करती अत्यंत ही भावुक प्रेम मई रचना डॉक्टर सुधा आपको अपार शुभ कामनाएं
teenon hi kavitayen apne bhav ko pathakon tak pahunchane me kamyab rahi...samvedansheel rachnayen.
बेकारी और महंगाई
मन मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूठों के घर पंडित बाचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की!
प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोलो बेईमान की!
महंगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेल,
पंख लगाकर उड़ गए चीनी-मिट्टी-तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़े बंद हुईं दुकान की,
जय बोलो बेईमान की!
डाक-तार-संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम,
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम।
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की,
जय बोलो बेईमान की!
चैक कैश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बांकी झांकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,
जय बोलो बेईमान की!
वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,
छहसौ पर दस्तख्त किए, मिले चारसौ-बीस
मन-ही-मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की,
जय बोलो बेईमान की!
खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायँ,
पांच रुपे की भेंट में, टूटायर मिल जायँ।
हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी. टी. भगवान की,
जय बोलो बेईमान की!
बेकारी औ भुखमरी, महंगाई घनघोर
Sudhaa Jee, Sundar rachanaayen. Meree taraf se badhaayee. Meraa aagrah ki Abhay Deepraaj Sir ke rachanaayen padh kar apne vichaar den. Dhanyavaad
ssabhi pravaasi bharatiyon ko apni aur US ki sanskriti ke takaraav ke daur se guzarnaa padtaa hai.Adhikansh apni sanskriti ko apne aur apne parivaar ke liye bachaa paate hain .Parantu apne desh ke sahitya ko abhi tak vahaan koi sthaan nahin dilaa paaye.
Bhartiya pravaasiyon ko vahaan hameshaa saphalataa nahin milti auur kabhi kabhi hataash hokar vyakti apne ko itna asamarth aur vivash mahsoos karta hai ki atmahatyaa par majboorpar majboor ho jaataa hai.Aur uske parivaar ka kya hota haai, patni kis yaatanaa ka bojh sahnaa padtaa hain , yeh bhi vichaarniya hai.
Sudha ki yeh rachnaayen sashakta dhang se likhi gayi hain aur apne uddeshya mein saphal hain.Unko badhaai
प्रवासियों को अपने देश से दूर रह कर अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है पर गहरी जड़ें इस वृक्ष को सदा हरित बनाए रखती हैं
'विश्वगाथा' के सभी दोस्तों का स्वागत के साथ आभारी भी हूँ | प्रत्येक उत्तम रचनाओं पर आप अमूल्य समय देकर भी प्रतिक्रया
देते हैं | मुझे खुशी हैं कि हमारा परिवार दिन-ब-दिन बढ़ता ही रहता हैं |
jeevan ke bahut se pahlu hain aaur un sab ko samvednaon me dhalna shbdon ka jama pahna kar kavita ke rup me ya kahani ke rup me dhalna aap se sikhna chahiye
bahut bhini bhini si kavitayen
tisri kavita man ko hila si gai
saader
rachana
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