डॉ. नूतन गैरोला की चार कवितायें
परिचय - डॉ नूतन

पेशे से स्त्रीरोग विशेषज्ञ | खुद का हॉस्पिटल | दूर दराज के गाँवों में जहां कोई सुविधा नहीं पहुँच पाती वहां सेवा | स्वयं के बलबूते पर स्वास्थ कैंप और पहाड़ियों की महिलाओं जरूरतें और दुःख-दर्द को समझना | लिखते समय भी उनकी भावनाओं को ही उजागर करने की कोशिश और कशिश | खेलकूद, पहेलिया सुलझाना, निशानेबाजी, संगीत,नृत्य , चित्रकला,वाक् -विवाद और लेखन का शोक बचपन से रहा है | व्यस्तता के कारण भी जीवन का आनंद ले रही हैं |
....... * सुस्वागतम *.......
पदार्पण मेरा प्रथम ,
शुभ हो मंगल उमंग |
खिल उठे फूल रंग बिरंग ||
ॐ से हो साक्षात्कार ,
सत्य से जुड़ा रहे नाता अपार
लिखने की चेष्टा करती हूँ ,
साथ रहे सरस्वती का वास हो ||
न चाहत है मन में
किसी यश की,
न ही चाहत किसी के संग की
बस तू देता रहे छाया प्रभू ,
अपने कल्याणकारी छत्र की ||
मंगल हो सुमंगल हो ,
सृष्टि का सृजन हो |
ले हाथ में छेनी तू
हर विनाश का विकल्प हो
माया ठगनी के कुरूप भंवर का
सुन्दर शिल्प में विलय हो
मोक्ष का उदय हो ||
प्रभु खुशियों से भरा
आसमां भूमि और जल हो
प्राणी और सांसारिक
हर में जीवन हो जीवंत हो
पदार्पण मेरा प्रथम,
शुभ हो, मंगल हो, उमंग हो ||

माँ का प्यार अवर्णनीय
समर्पण प्यार बलिदान
अंतहीन धेर्यवान
निस्वार्थ और सर्वदा क्षमादान
मोडे मुंह को दुनिया कभी
गोद में माँ की हर समस्या का समाधान
माँ बन जाती तब प्रेरणादायक और भी महान
ले कर अपने आलिंगन में
और कष्टों के आगे ढाल बन
खुद का कवच बना देती है,देती दुखो से निदान ...
माँ देवी का रूप, ईश्वर का है अनूठा वरदान
बाँध न सका जिसको कोई,
रोक ना सका जिसको कोई ,
मैंने बाँधा है और रोका है
उस समय को इक परिधि में |
टिक टिक चलती जाती हूँ मै
दिन हो या हो रात ,
चलती चक्की की तरह
अनवरत घिसती जाती हूँ |
कान ऐंठ कर कहते वो,
उठा देना जगा देना .
अपना अलार्म बजा देना,
दुनिया काम में या आराम में मशगूल,
और मैं पल पल चलती जाती हूँ |
खुद के लिए नहीं उनके लिए हूँ
आवाज लगाती -
बाबू उठ जाओ भोर भयी ,
मालिक उठ जाओ ऑफिस की देर भई
बच्चे उठ जाओ, पढ़ लो परीक्षा आ गयी
उठो मुसाफिर तेरे सफ़र का वक़्त आ गया
देखो ना दिन दोपहरी बीत गयी
और तुम भी कुछ थके अकुलाए
सो जाओ अर्ध रात्री आ गयी ,
मुझे तो अपने कर्मों पे जुते रहना है
रात और ना ही दिन कहना है
सुई की नोक के संग ढलते रहना है |
शिशु नवजात का जन्मसमय बताती
और जीवन को बांधती जन्मकुंडली में
बड़े बड़े ज्योतिषी करेंगे ताल ठोक कर
बड़ी बड़ी भविष्यवाणी
और खुद का भविष्य नहीं मैं समझ कभी पाती ||
पुरानी पड़ जाऊँगी
तो घर के किसी कोने में फैंक दी जाऊँगी ,
या किसी नए इलेक्ट्रोनिक उपकरण के बदले
बदल दी जाऊँगी |
मुझे इस्तेमाल किया बेहिसाब
समय के हिसाब से,
और मैंने वादा निभाया साथ निभाया
हर पल की टिक टिक के साथ
अब आप ही बताये कि
मै एक घडी हूँ ..या मै स्त्री हूँ ?
तेरी याद में दिन इक पल सा ओझल होने को है |
और अब शाम आई नहीं है के सहर होने को है ||
मेरे सब्र का थका परिन्दा टूट के गिर पड़ा है |
दीदार को तरसती आंखे और पलकों के परदे गिरने को है ||
चिरागों से कह दो न जलाये खुद के दिल को इस कदर |
के रोशनी का इस दिल पर अब ना असर कोई होने को है ||
मेरी ये पंक्तिया उन थके माता पिता को समर्पित है जिनके बच्चे बड़े होने पर गाँवों में या कही उनेह छोड़ कर चले जाते है अपनी रोजी रोटी के लिए और इस भागमभाग में कहीं बुढे माता - पिता उनकी आस में उनकी यादो के साथ उनका इन्तजार करते रह जाते है..
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31 comments:
nutan ji ke her bhaw sil kee gahraaiyon se utarte hain ......
तेरी याद में दिन इक पल सा ओझल होने को है |
और अब शाम आई नहीं है के सहर होने को है ||
सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई
नूतन , फूलों का ये गुलदस्ता विश्वगाथा को महका गया ... हमेशा की तरह सुन्दर कविताएँ ....
सभी रचनाएँ जीवन से जुड़ी हुई हैं!
--
सुन्दर लेखन के लिए साधुवाद!
sabhi rachnayen sundar hain....!
aapki lekhani yun hi chalti rahe nutan ji,
regards,
rchnayen bhavpooran hain,badhai!
Bahut hi sundar-Sundar kavitaye nutan ji..
डाक्टर साहिबा बड़ी सहजता से और बड़े ही सुन्दर ढंग से
शब्दों को पिरोया है I पूरी कविता अपने आप में पूर्ण है
लेकिन मुझे जो अंस सबसे अधिक पसंद आया वो नीचे है I
बहुत बहुत बधाईयाँ और परम स्नेह I
न चाहत है मन में
किसी यश की,
न ही चाहत किसी के संग की
बस तू देता रहे छाया प्रभू ,
अपने कल्याणकारी छत्र की ||
माँ तो माँ होती है जितना कहे सराहे कम है I
ले कर अपने आलिंगन में
और कष्टों के आगे ढाल बन
खुद का कवच बना देती है,देती दुखो से निदान ...
माँ देवी का रूप, ईश्वर का है अनूठा वरदान
नूतन बहुत बहुत साधुवाद I नूतन
क्या कहने ? एक घडी को एक घडी
पढ़ कर यों झटका लगा की कब बीत गई
वो घडी ? कहाँ हु मैं ?
मुझे इस्तेमाल किया बेहिसाब
समय के हिसाब से,
और मैंने वादा निभाया साथ निभाया
हर पल की टिक टिक के साथ
अब आप ही बताये कि
मै एक घडी हूँ ..या मै स्त्री हूँ ?
चिरागों से कह दो न जलाये खुद के दिल को इस कदर |
के रोशनी का इस दिल पर अब ना असर कोई होने को है ||
बागवान को देखने के बाद आज आपकी
इस रचना को पढ़ कर आँखों में पानी का
छलकजाना स्वाभाविक है I
.मुझे इस्तेमाल किया गया बेहिसाब,समय के हिसाब से,और मैंने वादा निभाया,साथ निभाया ,हर पल की टिक टिक के साथ ..अब आप ही बताये की मै एक घडी हूँ या एक स्त्री हूँ और दूसरी रचना ...मेरे सब्र का थका परिंदा टूट के गिर पड़ा है,दीदार को तरसती आँखें और पलकों के परदे गिरने को है...बहुत अच्छी लगी सादर धन्यवाद्..
सबसे अधिक जो मन को मोह गयी वो थी....माँ .....दिल के किसी कोने में छलक उठा वो स्नेह जिस से हम अब महरूम हो चुके है...वो मेरा इंतज़ार करती आँखें वो प्रश्न कब आ रही हो...कहीं खो सा गया है कुछ.....नूतन जी आप इसी तरह से अपनी सुंदर लेखनी से हमे विभोर करते रहिये...
बहुत गंभीर कवितायें.. जीवन को गहराई से अभियक्त करती हुई...
जीवन दर्शन कराती सार्थक अभिव्यक्तियां।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
नूतन जी बहुत खूब.. वैसे सभी आपके ब्लाग मे देखी है/पढी है.. शुभकामनाये
मनोभावों का सुंदर चित्रण...कविताएं मन को गहराई तक प्रभावित करती हैं।
विश्वगाथा में मेरी कविताओं का तमाम गुणी जनों के सम्मुख ये परिचय और अतिथि के रूप में आप सभी ने जो सत्कार किया, मैं अभिभूत हूँ | किसी के अभ्युत्थान में मंगलकामनाओ का जरूर स्थान होता है .. और विश्वगाथा के सोपान में आना बहुत अच्छा लगा .. आप सभी को, पंकज जी को और विश्वगाथा को मेरा हार्दिक धन्यवाद |
आदरणीय पंकज जी को प्रणाम ! आपकी इस परिष्कृत साहित्यिक मुहीम के लिए आपका साधुवाद ! 'अतिथि देवो भव' .... साहित्य में भी संस्कृति की मिसाल है आपके ये पहल जो आप हर रविवार और गुरुवार को अतिथि के रूप में इतने उम्दा व्यक्तित्वों से परिचय करवाते हैं. ! आज सम्मानिया नूतन जी को पढना एक सुखद अहसास रहा ! नूतन जी को बधाई कि इतनी बेहतरीन रचनाओं में व्यक्त भावों से हमे भी सरोबार कर दिया..!! आभार !!
सभी रचनाएं बहुत भाईं.. नूतन जी को ४ बार बधाई.. :) हरफनमौला व्यक्तित्व देखकर खुशी हुई.
dr.sahiba m kuch khne k layak to nai hu kyunki ao bhi sochengi ki itni si ladki ko sahitya ki kya smjh lekin jitna m janti hu usi sanchit gyan ki samjh ko istemal krte hue kh rhi hu ki apne shbdon k roop m aise moti piroye hai ki kahna padta hai unka koi viklp ho hi nai skta tha aur rhi bat pasand krne ki sari kavitayen ak s bdkar ak hai soch rhi hu ki sbse km kan si pasand karun great...
सभी रचनाएँ बेहद अच्छी हैं.... जीवन दर्शन को समेटे
नूतनजी को मेरा हार्दिक अभिनन्दन एवं प्रस्तुतियों के लिए धन्यवाद.
सृजन एवं प्रस्तुतियाँ संवेदनापूरित मन का परावर्तन होती हैं.
आपकी रचनाओं को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए पंकजजी का आभार.
बेहद सशक्त काव्याभिव्यक्ति, आपकी चारों रचनाएँ एक से बढकर एक हैं जोकि आपकी प्रबुद्ध साहित्यक सोच की परिचायक हैं ! ज़िन्दगी से जुडी आपकी कविताएँ पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा !
gehere bhaav liye hue hain aapkee kavitaayen aur saral aur sachchee baaton ko sundartaa se aapne vyakt kiyaa hai. achchee lageen...
भाई साब प्रणाम !
डॉक्टर साहिबा नूतन मेम को नमस्कार !
मेम आप कि कविताए पढने का अवसर प्राप्त हुआ , चारों कविताए अलग अलग में मिजाज़ कि है , साधुवाद ! हलाकि लगा भी कि कविताओ को आप और माँज सकती है जो और प्रभावी लगे , आप कि भाव अभिव्यक्ति अच्छी लगी , बधाई !
साधुवाद !
सादर !
आपके प्रथम कविता के एक एक शब्द में मैं अपने शब्द मिलाती हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ की सार्थक लेखन की यह आपकी यह यात्रा निष्कंटक हो और ईश्वर आपकी अभिलाषा पूर्ण करें...
आपके लेखन से आपके सवेदनशील ह्रदय की झलक भली भांति मिल रही है...यह यूँ ही निष्कलंक बनी रहे और आप ऐसे ही सुन्दर लिखती रहें,यही शुभकामना है...
रश्मि जी ,
सुनील जी
अपर्णा जी ,
डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी
अनुपमा जी
अशोक जी
विनोद जी
लक्ष्मीनारायण जी
आपका ह्रदय से आभार ..और करवाचौथ पर शुभकामनाये
मुद्रा जी,
अरुण जी ,
प्रतिबिम्ब जी
महेन्द्र वर्मा जी
नरेंद्र व्यास जी
दीपक जी
रेनू जी
मोनिका जी
सौरभ पाण्डेय जी
योगराज प्रभाकर जी
अरविन्द जी
सुनील जी
रंजना जी
आपका ह्रदय से आभार ..और करवाचौथ पर शुभकामनाये
नूतन जी, घड़ी और स्त्री की मनोदशा और अंतर्द्वंद को चित्रित करती कविता बरबस ही ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है| आप की लेखनी पर टिप्पणी करना आसान नहीं है, फिर भी इतना ज़रूर कहूँगा कि मुझे और ज़्यादा आपको पढ़ने की इच्छा हुई है| गाँव में जीने को छोड़ दिए गये माँ-पिता की दशा पर भी आपने क़लम से बखूबी काम लिया है| बहुत बहुत बधाई| आपका स्नेह बनाए रखिएगा नूतन जी|
Sabhi rachnayein bahut sundar hain ....hriday ke bhavon ko aur jeevan ki vastviktaon ko pradarshit karti hui .....'Maa' ne man ko chho liya ....aap aise hi is kavya-yatra ko jaari rakhen ...shubhkamnayein .....
नूतन जी का यह परिचय बहुत ही अच्छा लगा ..हालांकि में लिंक पर देर से पहुंचा हूँ फिर भी समयाभाव होने के बावजूद भी वो अन्या जिम्मेदारियों के साथ न्याय भी करती है...और सुन्दर रचनाओं का सृजन भी करती हैं...उनके लिए मेरी शुभकामनाएं ! विश्व्गाथा ब्लॉग का आभार !!
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