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Pankaj Trivedi
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अतिथि-कविता
रश्मि प्रभा
दोस्तों,
आपका स्वागत है | वैसे तो "विश्वगाथा" को मेरे द्वारा सर्जित साहित्य को प्रकाशित करने हेतु शुरू किया था | मगर हमें अकेला रहने-जीने की आदत ही कहाँ? तो फिर हमने सोचा कि प्रत्येक रविवार को हम किसी एक अतिथि को "विश्वगाथा" की चौखट पर बुलायेंगे और उनके विचारों को खुशी के साथ सब को बांटेंगे | आज पहले ही रविवार को "अतिथि" के रूप में सुप्रसिद्ध कवयित्री रश्मि प्रभा हमारे बीच है | मेरे लिएँ उनकी सद्भावना हमेशा साथ रही है | मैं दिल में उनके लिएँ पूरा सम्मान है | ब्लॉग जगत में रश्मि प्रभा का नाम एक लकीर की तरह अंकित हो चुका है और वह मेरी दोस्त है ! मैं इसे ईश्वर का आशीर्वाद मानता हूँ | - पंकज त्रिवेदी
आपका स्वागत है | वैसे तो "विश्वगाथा" को मेरे द्वारा सर्जित साहित्य को प्रकाशित करने हेतु शुरू किया था | मगर हमें अकेला रहने-जीने की आदत ही कहाँ? तो फिर हमने सोचा कि प्रत्येक रविवार को हम किसी एक अतिथि को "विश्वगाथा" की चौखट पर बुलायेंगे और उनके विचारों को खुशी के साथ सब को बांटेंगे | आज पहले ही रविवार को "अतिथि" के रूप में सुप्रसिद्ध कवयित्री रश्मि प्रभा हमारे बीच है | मेरे लिएँ उनकी सद्भावना हमेशा साथ रही है | मैं दिल में उनके लिएँ पूरा सम्मान है | ब्लॉग जगत में रश्मि प्रभा का नाम एक लकीर की तरह अंकित हो चुका है और वह मेरी दोस्त है ! मैं इसे ईश्वर का आशीर्वाद मानता हूँ | - पंकज त्रिवेदी
लौट आओ : रश्मि प्रभा
वर्षों से संजोया
तिनका-तिनका
अपनी आँखों से बरसते नेह का
बनाया एक अदृश्य घर...
तुमने देखा तो होगा
बरसते नेह की मजबूत दीवारों को
पहचाना तो होगा ...
दिन बिता शाम हुई
शेष है रात
मेरे साथ कुछ भी तो नहीं हरी
अब क्या सोचना !
रात के इस शेष प्रहर में
जहाँ मोह की बुलंद दीवारों ने
अपने बुलंद दरवाज़े बन्द कर दिए हैं
इस घर में आ जाओ
यहाँ तो जो कुछ है
तुम्हारा है ....
एक लम्हें का साथ
दरो दीवार पे यूँ सिमट जाये
होता तो है
एक आवाज़ हमसफ़र बन जाये
ऐसा होता तो है
पर सरेराह दिखता कहाँ है ...
मेरी आँखों की ओट में
तुम मेरे साथ हो
चाँद राहों में खो जाये
चांदनी रो पड़े
उससे पहले घर लौट आओ
अब ख्यालों से दिल नहीं भरता ...
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33 Comments
This entry was posted on 11:12 PM and is filed under अतिथि-कविता . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.
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33 comments:
आदरणीय रश्मि दीदी का विश्व्गाथा के पावन परिवार में हार्दिक स्वागत है. आपको अतिथि पाकर विश्व्गाथा का आँगन आज पवित्र हो गया..और आपके स्नेह की सौंधी-सौंधी खुशबू से आपके सम्पूर्ण स्नेह्भाजक आज धन्य हुवे...आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीया दीदी...! श्री पंकज जी को भी तहेदिल से शुक्रिया कि उन्होंने रश्मि दीदी को विश्व्गाथा में आमंत्रिक किया और विश्व्गाथा की पावन धरा को पवित्रता से सिंचित किया...! आभार !!
R Rashmi di, congrate ,
aur Pankaj ji ka bhi dhanyebad
me di ke blog ka regular reader hun,
yaha dekh akr bhi bahut achha laga
सबसे पहले पंकज जी को हार्दिक शुभकामनायें ...रश्मि जी को यहाँ पढ़ना अच्छा लग ..
@@ रश्मि जी ,
आपकी हर कविता मन में उतर जाती है ..
जहाँ मोह की बुलंद दीवारों ने
अपने बुलंद दरवाज़े बन्द कर दिए हैं
कितनी सच बात कह दी है ..और अब सच में ख्यालों से दिल नहीं भरता ....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
चाँद राहों में खो जाये
चांदनी रो पड़े
उससे पहले घर लौट आओ
अब ख्यालों से दिल नहीं भरता ...
pankaj jee,Rashmi jee ko padhna hamesha hi mere liye aik sukhad ahsas rahahe, is kavita ne to dil ke bheeter ghar hi kar liya.
rashami di ki kavita to jitni bar padne ko mile wo kam hi hai ...bahut hi sundar bhav hota hai ...thank u pankj ji ..!!
श्री आलोक जी, संगीता जी और राजीव जी,
बहुत अच्छा लगा आप सब के आगमन से |
स्वागत |
जब भी समय मिले, अपनी एक अप्रकट कविता या गद्य खंड के साथ फोटो भेज देना |
प्रत्येक रविवार को यहाँ एक "अतिथि" की ख़ातिरदारी होगी |
धन्यवाद |
प्रिय नरेन्द्र,
सही कहा, रश्मि जी के आने से "विश्वगाथा" का आँगन पवित्र हो गया | धन्यवाद |
रश्मि जी का नाम तो हमारे दिल मे अंकित हो चुका है। बहुत सुन्दर संवेदनाओं को अन्दर तक छूती हैं उनकी रचनायें। रश्मि जी बहुत बहुत बधाई। आपका धन्यवाद उनकी रचना पढवाने के लिये।
बधाइ..रश्मिजी..सुंदर रचनाके लिए..
nilam doshi
http://paramujas.wordpress.com.
rashmi ji,
aapki rachna mein bhaavnaaon kee gahan anubhooti hoti hai jisme hum sabhi mehsoos karte. badhai aapko aur pankaj ji ko.
* साधना जी, आपकी बात सही है |
* निर्मला जी, ये नाम ही काफी है.... जो जहां भी जाएं,
अपनी किरणों से उजास फैलाती है |
* परम समीपे, धन्यवाद
* जेन्नी बहन, मैं सहमत हूँ आपसे... मैं तो इश्तेहार
देने वाला था कि मेरी बहन खो गयी है... |
रश्मि प्रभा जी अच्छी कविताएं लिखती हैं । मैं उनकी रचनाएं इधर उधर पढ़ता रहता हूं । "लौट आओ" भी प्रभावित करती है । " दिन बिता शाम हुई " में बिता की जगह बीता होना चाहिए !
अच्छी रचना के चयन के लिए संपादक मंडल एवम रश्मि जी को बधाई !
ABHINAV PRAYAS. SHUBHAKAAMNAAYEN
Aparna Manoj : Pankaj ji haardik shubhkaamnaen.. sundar blog aur Atithi ke roop mein Rashmi ji ka aana man moh gaya. Narendr ji ki baat sahi hai.. Rashmi ji ke aane se aangan pavitr ho gaya.. aur jis kavita ki tulsi aangan mein Rashmi ji ne ropi hai wah iski pavitrata ko akshun rakhegi... comment vishvgaatha par post nahin ho paa raha hai.
आदरणीय ॐ जी,
आपकी बात सही है | रश्मि जी ब्लॉग की दुनिया में सफल, सशक्त और लोकप्रिय कवयित्री है | आपके आगमन से हमारा उत्साह बढ़ा है, आशीर्वाद देते रहना | धन्यवाद |
श्री माणिक जी,
आपने इस परिवार को अपना समझा, यही सौभाग्य |
bahut sundar rachnaa rashmi ji ki.dhanyvaad pankaj ji is kavita se Rashmi ji se parichav karvane ke liye..
डॉ. नूतन जी,
आपकी बात सही है, हमारे "अतिथि" के मंच पर रश्मि जी का आना, हमारे लिएँ मायने रखता है, क्यूंकि उनके पास वो सबकुछ है जो कविता की अभिव्यक्ति के लिएँ चाहिए | उनकी सभारता "विश्वगाथा" को हराभरा कर देती है |
Rashmi di ne uss unchai ko chhua hai..........jo sayad har blogger chahta hoga.........:)
ek aur sundar rachna!!
मुकेश जी, आपकी बात सही है | धन्यवाद |
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
इस स्वागत के आगे मैं निःशब्द
सोच रही हूँ
यह स्नेहिल बिरवा आँगन का
किस अतिथि को नहीं भायेगा
जहाँ समय लुप्तप्रायः है
वहाँ इतना स्नेह-
सौभाग्य मेरा ,
कि इतने दिग्गजों ने मुझे सराहा
शुक्रिया
रश्मि जी,
आपकी लिखिनी में जो शब्द और संवेदना की सियाही है,
वो सबके लिएँ मनभावन है |
आँगन चाहे कितना भी सुंदर हो मगर जिस आँगन में तुलसी की पवित्रता और गुलाब सा प्यार न हो तो वह सिर्फ गोबर से लीपा हुआ ही रह जाता है... !
आपके आगमन से यह आँगन ने सोलह शृंगार सज लिएँ है |
मैं भी किन शब्दों में अपने भावों को प्रकट करूँ, यह समज नहीं आता |
- पंकज
बहुत सुन्दर
रश्मि प्रभा जी की बहुत ही संवेदनशील और भावपूर्ण कविता|
पंकज सर इस सार्थक पहले के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद|
राणा प्रतापसिंह,
आपका सौजन्य और खुशी... बहुत ही अच्छा लगा | धन्यवाद |
सच कहा रश्मि जी का नाम एक लकीर बन चूका है...रश्मि जी को प्रथम अतिथि बनने की बहुत बहुत बधाई.
बहुत अच्छी रचना...दिल के पास से होकर गुजर रही है.
सुन्दर अभिव्यक्ति .. लिखते रहिये ...
रात के इस शेष प्रहर में
जहाँ मोह की बुलंद दीवारों ने
अपने बुलंद दरवाज़े बन्द कर दिए हैं
इस घर में आ जाओ
यहाँ तो जो कुछ है
तुम्हारा है ....
बहुत सुन्दर कविता.....ह्रदय को छू लेनेवाले भाव...बधाई....
आदरणीय रश्मि दी.!
विश्व्गाथा के मंच पर आपका आगमन शुभ हुआ, आपकी उपस्थिति से यह मंच सुवासित हुआ....
आदरणीय पंकज जी को आभार, जिन्होंने आपको यहाँ आमंत्रित किया.
"चाँद राहों में खो जाये
चांदनी रो पड़े
उससे पहले घर लौट आओ
अब ख्यालों से दिल नहीं भरता"
ये पंक्तियाँ अंतस को स्पर्श करती हैं.....
आप दोनों को ही हार्दिक शुभकामनाये...
अनामिका, मजाल जी, कैलाश चन्द्र जी और ज्योत्सना जी,
आपने "विश्वगाथा" को परिवार का ही मानकर यहाँ तक आने का कष्ट उठाया उसके लिएँ धन्यवाद | बहुत सारी विधाओं में से आपको सभी प्रकार का साहित्य पढ़ने का आनंद मिलेगा | मैं फिर एकबार रश्मि जी का तहे दिल से आभार मानता हूँ की "जन्माष्टमी" के दिन ही शुरू हें इस ब्लॉग पर आप जैसे गुणवान दोस्तों का आगमन उनकी बदौलत ही हुआ | हमेशा स्वागत ...!!
पंकज जी .. पुनः रश्मि जी की कविता पढ़ी , जितना पढो उतना ही दिल में उतर जाती है.. बहुत सुन्दर ..और आपको बधाई रश्मि जी का साथ विश्वगाथा में.. हमें भी आपके ब्लॉग के माध्यम से उनकी रचना पढने का मौका मिलेगा - आभार
डॉ. नूतन,
पुनः आपने रश्मि जी कविता को लेकर "विश्वगाथा" के आँगन की ओर आपके पाँव बढाएँ | धन्यवाद
Aree Waahhhh....!Love U Maa...
Thx PankajBhai...!
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