तुम्हारे चेहरे को मैं यहाँ से पढ़ सकता हूँ

तुमको मैंने दोस्त कहा

यानि हम समान है...

उम्र और विचार से भी हम समान- दोस्त हैं

तुम्हे मेरे लिए सम्मान है तो मुझे भी

हम एकदूजे को समझते है हम

जब दोस्त बनाया तो not good, not bad

क्यूंकि- प्रत्येक इंसान चाहता है....

पूरे परिवार के बावजूद... कोई ऐसा हो,

जिसे हम सबकुछ कह सके खुले मन से

ये मानव स्वभाव है...

कोई इससे परे नहीं

अब तुम कहो, मै गलत हूँ ?

एहसासों के इस रिश्ते को मैंने भी स्वीकार किया है

जानता हूँ कि हम दोनों किसी ऐसी डगर पर आये हैं,

जहाँ पहुँचने हमारा मन भी चाहता था....

जो सबकुछ मिलकर भी अधूरा था

शायद वही सबकुछ हम एकदूजे से पा रहे हैं

हाँ शायद ऐसा ही है

इस संबंध का नाम नहीं, शरीर नहीं, मौजूदगी भी नहीं -

फिर भी यह सब है हम दोनों के साथ...

ईन सब के साथ ही हम मिलते है

और यही अहसास हमारे दिल को - मन को अच्छा लगता है...

तुम्हारे पास सबकुछ है, फिर भी मेरी जगह भी है...

अलग...

शायद तुम भी इसी तरह मेरे अंदर हो...

तुम मुझसे जुदा नहीं हो... कही भी...

शायद धड़कने लगी हो मेरे साथ.....

सच कितना अच्छा लगता है.....