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Pankaj Trivedi
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अतिथि-कविता
यूं ही जिया / राजेश चड्ढा
राजेश चड्ढ़ा । लोकप्रिय उद्घोषक व शायर। सहज-सरल-समाज सेवी व्यक्तित्व। पंजाबी, हिन्दी व राजस्थानी तीनों भाषाओं में कार्यक्रमों की प्रस्तुति में विशेष महारत। पंजाबी कार्यक्रम ‘मिट्टी दी खुश्बू’ पड़ोसी देशों में भी बेहद लोकप्रिय। इस कार्यक्रम पर कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से लघुशोध भी हुआ। राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित रूपक ‘बीन पर थिरकती जिंदगी’ के प्रस्तुति सहायक। प्रथम नियुक्ति सितंबर १९८६ में उदयपुर आकाशवाणी में हुई। जनवरी १९९१ से सूरतगढ़ आकाशवाणी में सेवारत। इस दौरान देश की सुप्रसिद्ध हस्तियों, पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन, मशहूर शायर निदा फाजली, अर्जुन पुरस्कार विजेता तथा विश्व कप बैडमिंटन चैंपियन प्रकाश पादुकोण तथा सुप्रसिद्ध कॉमेंटेटर मुरली मनोहर मंजुल से रेडियो के लिए साक्षात्कार। १९८० से निरंतर सृजनरत। उन्हीं दिनों से हनुमानगढ़ की साहित्यिक गतिविधियों के संयोजन में प्रमुख भूमिका। अखिल भारतीय साहित्य-विविधा ‘मरुधरा’ के चार सम्पादकों में से एक। इस विविधा का लोकार्पण मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम ने किया। उल्लेखनीय है कि आपकी कहानियां हिन्दी की नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं तथा कहानी लेखन के क्षेत्र में आप सिरसा की भारतीय साहित्य परिषद् से पुरस्कृत भी हो चुके हैं। वर्तमान में आकाशवाणी सूरतगढ़ (राजस्थान) में वरिष्ठ उद्घोषक।
यूं ही जिया
...........
अभिनय-
अगर
कभी किया ,
तो ऐसे किया
जैसे- जीवन हो |
और
जीवन-
जब भी जिया ,
तो ऐसे जिया
जैसे-
अभिनय हो ।
जो-
सहज लगा ,
वही-
सत्य लगा ,
और-
जो सत्य लगा
उसे-
स्वीकार किया |
कभी-
अभिनय में ,
कभी-
जीवन में |
This entry was posted on 7:08 AM
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अतिथि-कविता
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6 comments:
अभिनय ही नहीं अभिनव है जीवन । सत्य है - सहज है और सरल भी यदि आप इसे समझें और मानें तब , अच्छी प्रस्तुति -अच्छे भाव , शुभकामनाएं । - आशुतोष मिश्र "खबरों की दुनियाँ"
Nirmal Paneri
जो सत्य लगा
उसे-
स्वीकार किया |
कभी-
अभिनय में ,
...कभी-
जीवन में .........|सुन्दर शब्दों का समां गमन पंकज जी ..राजेश जी का .See More
11 hours ago · Like
यही तो जीवन की सहज सरल प्रवृति है और यही सच्चे मनुष्य की पहचान .
यदी सहज सरल तरिके से जीवन व्यतित किया जाये तो जीवन मे शांति और स्नेह का अवतरण होना स्वाभाविक हो जाता है ..
जीवन और अभिनय का साम्य...
सुन्दर!
नायक भी हमी और खल नायक भी हमी I बस समय समय पर भूमिका बदल जाती है I कभी एकाकी मंच पर, व् कभी सामूहिक मंच में I अभिनय है या यथार्थ ?रब ही जानेI
जीवन रूपी मंच का निर्देशक एक ही है I
अति सुन्दर दार्शनिक अभिवयक्ति I
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