आज मैं खाली खाली सी हूँ
अपने अतीत को टटोल रही,
तमाम चेष्टा के बाद भी
सब बिखरने से रोक पायी !
नहीं मालूम जीने का हुनर
क्यों आया ?
अपने सपनों को पालना
क्यों आया ?
जानती हूँ मेरी विफलता का आरोप
मुझपर हीं है,
मेरी हार का
दंश मुझे हीं झेलना है !
पर मेरे सपनों की परिणति
पीड़ा तो देती है ,
हर हार मुझे
और हराती है !