राकेश श्रीमाल मध्‍यप्रदेश कला परिषद की मासि‍क पत्रिका कलावार्ता के संपादक, कला सम्‍पदा एवं वैचारिकी के संस्‍थापक मानद संपादक के अलावा जनसत्‍ता मुंबई में 10 वर्ष संपादकीय सहयोग देने के बाद इन दिनों महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय में हैं। जहां से उन्‍होंने 7 वर्ष पुस्‍तक वार्ता का सम्‍पादन किया। वे ललित कला अकादमी की कार्यपरिषद के सदस्‍य रह चुके हैं। वेब पत्रिका कृत्‍या (हिन्‍दी) के वे संपादक है। कविताओं की पुस्‍तक अन्‍य वाणी प्रकाशन से प्रकाशि‍त।

यह न मिल पाने का स्थापत्य है

जिसे बनाया है

समय ने कठोर पत्थरों से

इसकी एक खिड़की पर

जहाँ तुम्हें खड़ा होना था

एक शून्य टंगा हुआ है

इसके दरवाजे को

ढक लिया है

हवा के थपेड़ो ने

कोई नहीं जो आता हो

थोड़ी देर टहलने के लिए यहाँ

किसी ने इसे देखा तक नहीं

यह ऐसा ही स्थिर रहेगा

हमारे न रहने के बाद भी