"खुशगवार लम्हें ....,
'
बारस्ता' गुज़रता समय,
रेत पर क़दमों के निशां
ढूंढ़ती ऑंखें और....
तुमसे
बिछड़ने का डर
...
तुम्हारी 'कविता'.....
तुम्हारे 'शब्द' ....
फिर
मुझे घेर लेते हैं ,
तुम्हारी आँखों में ,
अपनी तस्वीर.......,
देखने
का मोह,
क्यूं छोड़ नहीं पाती ?
तुम्हारे ना होने पर भी,
'
गुज़र' में ,तुम्हारा अहसास ,
मेरा
'मसफ़र' है शायद"