दैनिक भास्कर ग्रुप के गुजराती अख़बार 'दिव्य भास्कर' ने सूरत का दोपहर के विशेष संस्करण 'DB गोल्ड' की शुरुआत में १२-एपिसोड के लघु उपन्यास को लेने का निश्चय किया था | श्री पंकज त्रिवेदी से भी अलग कथानक वाला लघु उपन्यास मंगवाया गया | उस वक्त श्री पंकज त्रिवेदी ने अपना सिर्फ 6-एपिसोड का लघु उपन्यास लिखकर पूर्ण ही किया था कि यह निमंत्रण आ गया | जब फोर्मेट की बात आई तो १२-एपिसोड की कथा को ही लेने की बात की गई | श्री पंकज त्रिवेदी ने कहा कि मैं कथानक से समझौता नहीं करूंगा | आप चाहें तो 6-एपिसोड की कथा को ही प्रकाशित करें अन्यथा लौटा दें| मगर 'दिव्य भास्कर' ग्रुप के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने अपने फोर्मेट को ख़ास किस्से में बदलकर श्री पंकज त्रिवेदी की कथा "मत्स्यकन्या और मैं" को प्रकाशित किया | आज क्रिसमस के इस पावन अवसर पर उसी कथा को किश्तों में आपके सामने पेश कर रहे हैं |

- नरेन्द्र व्यास
लम्बी कहानी - मत्स्यकन्या और मैं.. - पंकज त्रिवेदी



निर्जन द्वीप पर-

वेलेंटाईन  मनाते युगल को देखकर मछली ने पूछा "आप क्या कर रहे हैं?"

"प्रेम...!" प्रेमी ने जवाब दिया |

"प्रेम इससे होता है...?" मछली ने जिज्ञासा से पूछा |

"तेरे पास दिल कहाँ सो जाने... " युवती ने प्यार में बाधा डालने वाली मछली से ऊंचे स्वर में कहा |

"...मगर सुना है कि दिल हो तो टूट भी जाता है न !" मछली की इस बात से युगल की क्रीडा जल्द ही ख़त्म हो गई | उन लोगों की पलायानता का मैं साक्षी बन गया | "एक बात कहूं ? तुम जब भी याद आती हो, तब मैं दौड़कर चला जाता हूँ उस मछलीघर के पास | तुम्हें शायद आश्चर्य भी होगा | तुम्हारी मौज़ूदगी में जो न कह सका, उस बात को मछलीघर के पास जाकर कह सकता हूँ | तुम्हें याद हैं? मैं हमेशा कहता था; तुम क्यूं रो रही हो?"

तब तुम्हारा हँसता हुआ खिला सा चेहरा बोल उठता "ना रे ना, मैं कहाँ रो रही हूँ!" और तुम अपनी आँखों पर हलके से हाथ फेरने लगती | मगर तुम्हारी आँखों की नमीं, मेरे रोंगटों में उतर जाती, उसी वक्त मैं तुम्हें सवाल पूछता रहता | तुम्हें भी इस बात की ख़बर कहाँ थी? मैं समझ नहीं पाता कि मछलियाँ इतनी प्यारी क्यूं लगती हैं मुझे? मैं तो निरंतर तुझ में ही मत्स्यकन्या को ही देखता हूँ | मेरे प्यार में ऐसा कुछ भी नहीं, जो दूसरों के लिए जरूरी हैं | मैं तो बस चाहता रहूँ , तुम्हारे सौन्दर्य को निहारता रहूँ और बारीक़ी से देखूं तुम्हारे चुलबुलेपन को | मत्स्यकन्या भले ही तुमसे अलग हो | मगर मुझे लगता है कि पुराणों की कथाओं में सब कुछ वास्तविक ही होगा या सिर्फ रोमांचक या कोरी कल्पनाएँ ?

मैंने कईं दोस्तों से सूना था- तुम उसके पीछे इतना पागल क्यूं हो? मछली के दिल नहीं होता, इस बात को जोड़कर तुम्हारे पास भी दिल नहीं है ऐसा कहतें | क्यूंकि मेरे प्यार की अनुभूति को तुमने कभी किसी प्रकार से ज़ाहिर नहीं होने दिया | तुम्हारी ओर से हमेशा शून्यता व्याप्त रहती हैं और मैं समंदर की भाँति तुम्हें देखकर हिलोरे लेता | तुम्हारी बारे में सबलोग मानते थे कि शायद ही.... तुम मुझे चाहती होगी | पता नहीं, तुम चुप क्यूं हो? हो सकता है कि तुम्हारी चुप्पी का कारण... तुम किसी ओर से भी प्यार करती हो... या और कुछ...! तुम शादीशुदा हो और फिर अकेलेपन ने घेर लिया हो तुम्हें | संभव हैं कि तुम नज़र कैद भी हो... ! तुम्हें देखकर मुझे लगता हैं कि - परदेस में बिहाई बेटी और एक्वेरियम की मछली के बीच फर्क सिर्फ इतना ही है कि एक काँच की दीवारों में नृत्य करके फड़फ़ड़ाती हैं... दूसरी पत्थरों की दीवारों में हँसती हुई भी...... !! एक खारेपन में जीए और दूसरी मीठास के बीच भी खारेपन में डूबती हुई जीए !

क्या ख़बर कि तुम कौन हो और तुम्हारा अपना कह सकें ऐसा कौन है? तुम कैसे जी रही हो या जीने का अभिनय करने की तुम्हारी कोइ मजबूरी है? तुम भले ही शीशमहल में रहती हो मगर तुम्हें देखकर सबको लगता है..... मानोगी नहीं शायद मगर कह दूं | हमारे सामने अहर्निश मुज़रा करती मासूम मजबूरी.... उस एक्वेरियम की मछली नहीं बल्कि तुम ही हो शायद... !!

(क्रमशः...)