"तेज़ बारिशों में....
सब परिंदे,ढूंढ़ते हैं
पनाह! छिपने की

इक परिंदा 'चील' है
जो नहीं करता परवाह

भीगने की..और उड़ता है

बेफिक्री से 'बादलों के पार'
..
"उसी तरह मुश्किलें,

सभी की एक जैसी
कुछ उससे 'हार' जाते हैं

कुछ उसके 'पार' जाते हैं
जो उसके 'पार' जाते हैं

वो ही "सिकंदर" कहलाते हैं "