राष्ट्रीय युवा दिवस पर "विश्वगाथा" की ओर से हार्दिक बधाई |

मुझको ऐसे धर्मावलम्बी होने का गौरव है,जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सब धर्मों को मान्यता प्रदान करने की शिक्षा दी। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है, जिसने पृथ्वी की समस्त पीड़ित शरणागत जातियों को तथा विभिन्न धर्मों के बहिष्कृत मतावलंबियों को आश्रय दिया है। -विवेकानंद

(शक्ति जागरण) पहचानो-युवाओं में असीम शक्ति का प्रवाह होता है . . . . . . . .

12जनवरी
भारत विष्व का सबसे युवा-देश है। यदि युवाओं का सही मार्गदर्शन कर उन्हें विष्व निर्माण की ओर उन्मुख कर उनका सुनियोजन किया जाए तो उचित होगा। आजादी के दिनों में जो तूफानी चक्रवातों कोे, युवाओं ने अपने कैरियर को ताक पर रखकर देश के लिए बलिदान कर दिया। ठीक उसी तरह इन दिनों पचास गुनी तीव्रता का प्रवाह होना चाहिए। देश में लगभग चउअन करोड़ युवा हैं। साढ़े पाँच करोड़ युवा विचार क्रांति के प्रवाह से जुड़ने की स्थिति में आए हैं, उन्हें दिशा देकर राष्ट्र निर्माण हेतु प्रवृत्त किया जाना चाहिए। देष को उम्मीद ही नहीं पूरा विष्वास है कि ये युवा सशक्त सृजन की नींव बनेंगे। युवाओं में असीम शक्ति का प्रवाह होता है। युवावस्था में प्रतिभा पराकाष्ठा पर होती है तथा आत्मीय शक्ति का तेज एवं साहस होता है। आज युवा भटक रहे हैं, राजनीति के मोहरे बन रहे हैं एवं व्यसनों की गिरत में आ रहे हैं । भारतीय संस्कृति ज्ञान के अग्रदूतों एवं सांस्कृतिक मण्डलों के सदस्यों द्वारा युवाओं को अपने उद्देश्य से परिचित कराना होगा । उन्हें सामाजिक आंदोलनों से जोड़ेंगे तभी देष आगे बढ़ेगा। युवाशक्ति बिखरी पड़ी है उसे सहेजकर तेजस और बलिदानी प्रवाह में बदलना होगा।

आज सबसे अधिक जरूरत है रोजगार की जिससे युवा व्यस्त भी रहें और उनकी आर्थिक आवष्यकताओं की पूर्ति भी हो सके। वैकल्पिक रोजगार व्यवस्था द्वारा युवाषक्ति को अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है। आर्थिक निश्चिन्तता होने पर युवा पूरी तरह से एकाग्रचित्त से विचार क्रांति अभियान में भागीदारी कर सकते हैं। उन्हें व्यसनों से दूर रहने, संयम बरतने और अपनी शक्ति का नियोजन राष्ट्र के नवनिर्माण की बहुमुखी योजना में करने हेतुु प्रेरित करें। युवाषक्ति एवं नारी-शक्ति साथ होगी तो वह दिन दूर नहीं जब हम सबसे आगे होंगे। युवा शक्ति एक बहुत बड़ी संख्या है जो 10 से 35 वर्ष की आयु से गुजर रहे हैं एवं हमारे राष्ट्र की आधारशिला के साथ ही ज्ञानकोश भी हैं। इसी वजह से भारतीय ज्ञान का परचम विश्व में लहरा रहा है। युवारक्त भविष्य का नेतृत्व हाथ में लेता दिखाई देगा इसके लिए संगठनात्मक पुरुषार्थ अनिवार्य है।

देश का दुर्भाग्य है कि संत, महात्मा, विचारक और भगवानों को भी अब जातिगत और पार्टिगत आधार पर बाँटा जाने लगा है। दुख होता है कि स्वामी विवेकानंद, बाबा आंबेडकर और महात्मा गाँधी को देश की जनता के बीच बाँट दिया गया है। भारत में ही भारत को बाँटे जाने का कुचक्र तो अँग्रेज काल से ही चला आ रहा है, लेकिन खुद भारतीय ही प्रांतवादी, जातिवाद और धर्म के नाम पर लोगों को बाँटने लगे हैं।

देश में उच्चशिक्षा का स्तर बढ़ा अवष्य है, पर यह एकांगी एवं महँगी है। मैनेजमेण्ट आधारित शिक्षा द्वारा हर कोई रातों-रात करोड़पति बनना चाह रहा है। उचित भी है, हमारा देश आर्थिक रूप से पिछड़ा है। इससे आनुपातिक असंतुलन पैदा हो गया है। विज्ञान का महत्व कम होता जा रहा है । विज्ञान पढ़नेवालों तथा पढ़ाने वालों की संख्या निरन्तर कम हो रही है। कार्पोरेट जगत में युवाशक्ति वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की क्रांति लाएगी। युवा नेतृत्व को हमेशा स्वार्थों के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा खिलौना बनाया गया। भाव संवेदना की धुरी चिरयुवा अपने लक्ष्य के लिए गतिशील होने चाहिए। युवाशक्ति ने ही आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्तमान समय को उससे पचास गुना महत्त्वपूर्ण मानना होगा । तभी युवा प्रतिभाएं पराक्रम से नूतन सदी की आधारशिला रख सकेगी। युवाओं को राष्ट्र की राजनीति और समाजतंत्र को परिशोधित कर बदलना है। विश्व के विश्वविद्यालयों व उद्योग जगत में भी यही युवा हमारी नूतन सभ्यता को आगे ले जायेंगे। स्पेस तकनीकी, ब्रह्माण्ड भौतिकी, मिसाइल विज्ञान, गणित और चिकित्सा विज्ञान, सभी में छात्र ग्रेजुएशन कर एम.बी.ए. तथा तकनीकी से जुड़े पाठ्यक्रम को अधिक महत्व देते हैं। पीएससी, आईएएस, यूूूपीएससी आदि परीक्षाओं से जुड़कर राजनीति द्वारा संचालित तंत्र की कड़ी बन रहे हैं।

प्रतिभा का शोषण एवं दिशा हीन भटकाव रोकने के लिए युवाओं में जनचेतना जगाकर ज्ञान का दीपक राष्ट्र के शिक्षा जगत में प्रज्जवलित करना होगा । विज्ञान के क्षेत्र में भारत की मजबूती वैश्विक स्तर पर एक सशक्त आधार प्रदत्त करेगी । भारतीय संस्कृति ने समग्र विश्व को धर्म, कर्म, त्याग, ज्ञान, सदाचार और मानवता की भावना सिखाई है। सामाजिक मूल्यों के हितार्थ संयुक्त परिवार, पुरूषार्थ एवम् गुरूकुल प्रणाली की नींव समन्वय व सौहार्द केन्द्रित है, जबकि अन्य संस्कृतियाँ आत्म केन्द्रित हैं।

आगामी वर्ष में देश में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य करना है। शिक्षा से वंचित हैं, उन्हें शिक्षा मिले, शिक्षा-विद्या से जुड़े तथा रोजगार के साथ स्वावलम्बन पर आधारित हो । साथ ही उच्च शिक्षा उच्च नौकरी आधारित न होकर उच्चतम स्तर के विज्ञान की विभिन्न धुरियों पर चले। वह वैज्ञानिक शोधतंत्र के माध्यम से एक क्रांति लाए। राष्ट्रवादी विचारधारा तीव्रगति पकड़े । देश की शिक्षानीति को प्रभावित करने तथा उसके निर्धारण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में समय जग सकता है। यदि हमारे युवा सम्मेलनों की दिशा इस पर केन्द्रित रही, तो यह असंभव सा दिखने वाला कार्य संभव होगा।

विवेकानंद ने 25 वर्ष की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, धम्मपद, तनख, गुरुग्रंथ साहिब, दास केपिटल, पूँजीवादी दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन की अनेक तरह की विचारधाराओं को घोट दिया था, लेकिन हमारे आज के युवा तो 25 वर्ष की उम्र तक भी स्वयं के धर्म, देश और समाज के दर्शन और इतिहास को किसी भी तरह से समझ नहीं पाते....। वे तो सिर्फ धर्म और राजनीति के तथाकथित ठेकेदारों द्वारा हाँके जाते हैं। फिर क्यों वे विवेकानंद को मानते हैं? शिक्षा में सामाजिक और नैतिक मूल्यों के अभाव ने युवाओं को नैतिक मूल्यों के सरेआम उल्लंघन की ओर अग्रसर किया है, मसलन-मादक द्रव्यों व धूम्रपान की आदतें, यौन-शुचिता का अभाव, कालेज को विद्या स्थल की बजाय फैशन ग्राउण्ड की शरणस्थली बना दिया है।

आज का युवा जिन्दगी को वास्तविक रूप में जीना चाहता है। फिल्मी पर्दे पर पहने जाने वाले अधोवस्त्र ही आधुनिकता का पर्याय बन गये हैं। पर्दे का नायक आज के युवा की कुण्ठाओं का विस्फोट है। युवा वर्ग यह नहीं सोचता कि पर्दे की दुनिया वास्तविक नहीं, पर्दे पर अच्छा काम करने वाला नायक वास्तविक जिन्दगी में खलनायक भी हो सकता है। चरित्रबल और व्यवहारिकता को सफलता के मानदण्ड माना जाता था पर आज सफलता की परिभाषा ही बदल गयी है। आज का युवा अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों से परे सिर्फ आर्थिक उत्तरदायित्वों की ही चिन्ता में है। दुर्भाग्य से आज के गुरुजन भी प्रभावी रूप में सामाजिक और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में असफल रहे हैं।
युवा शब्द अपने आप में ही ऊर्जा और आन्दोलन का प्रतीक है। युवा को किसी राष्ट्र की नींव तो नहीं कहा जा सकता पर यह वह दीवार अवश्य है जिस पर राष्ट्र की भावी छतों को सम्हालने का दायित्व है। भारत की कुल आबादी में युवाओं की हिस्सेदारी करीब 50 प्रतिशत है। इस युवा शक्ति का सम्पूर्ण दोहन सुनिश्चित करने की चुनौती इस समय सबसे बड़ी है।
आइए इस युवा शक्ति का आव्हान करें और देष को मजबूत बनाएं।